सिटी पोस्ट लाइव
पटना: बिहार के सात विश्वविद्यालयों में 177 करोड़ रुपये से अधिक की गड़बड़ी सामने आने के बाद इनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की तैयारी की जा रही है। यह राशि खर्च की जा चुकी है, लेकिन अब तक इसका कोई व्यय विवरण या उपयोगिता प्रमाण पत्र महालेखाकार को उपलब्ध नहीं कराया गया है। महालेखाकार की नाराजगी के बाद शिक्षा विभाग को इस मामले की जानकारी दी गई थी। इसके बाद शिक्षा मंत्री ने एक उच्च स्तरीय बैठक कर संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे एक सप्ताह के भीतर पूरी जानकारी और आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत करें। यदि समय सीमा के भीतर कागजात नहीं दिए गए तो विश्वविद्यालयों के खिलाफ मामला दर्ज करने का आदेश दिया जाएगा।
राज्य के विश्वविद्यालयों में वित्तीय कुप्रबंधन का मामला तब उजागर हुआ जब 12 फरवरी को शिक्षा विभाग ने कुलपतियों और कुलसचिवों की बैठक बुलाई ग। इस बैठक में एजी ऑफिस की रिपोर्ट रखी गई, जिसमें वित्तीय गड़बड़ी का खुलासा हुआ। जानकारी के मुताबिक, वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय (आरा) में 142 करोड़ 52 लाख रुपये की अनियमितता सामने आई है। विश्वविद्यालय ने उत्तर पुस्तिकाओं की खरीद के लिए जेम पोर्टल या निविदा प्रक्रिया का पालन नहीं किया, बल्कि एक निजी एजेंसी को ठेका दे दिया। जब शिक्षा विभाग ने इस पर स्पष्टीकरण मांगा, तो अब तक कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला।
पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय में भी वित्तीय गड़बड़ी के मामले सामने आए हैं। यहां साढ़े चार करोड़ रुपये की उत्तर पुस्तिकाओं की खरीद नियमों के विपरीत की गई, और विश्वविद्यालय ने इसकी अंकेक्षण रिपोर्ट भी जमा नहीं की। इसके अलावा, विश्वविद्यालय ने 3 करोड़ 42 लाख रुपये के खर्च में से केवल 70 लाख रुपये का हिसाब दिया, जबकि शेष 2 करोड़ 72 लाख रुपये का कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराया गया। शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारियों के अनुसार, बीआरए बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर ने 3 करोड़ 70 लाख रुपये खर्च किए, लेकिन इसका कोई उपयोगिता प्रमाण पत्र शिक्षा विभाग को नहीं सौंपा। इसके अलावा, विश्वविद्यालय ने बिना निविदा जारी किए ही 1 करोड़ 10 लाख रुपये के प्रश्न पत्र और उत्तर पुस्तिकाएं एक निजी एजेंसी से खरीद लीं।
बता दें दरभंगा में ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय का 1 करोड़ 45 लाख रुपये के खर्च का कोई हिसाब नहीं दिया गया। यहां 18 लाख 27 हजार रुपये की कंप्यूटर खरीद में नियमों का उल्लंघन हुआ। जबकि कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय में बिना वेतन सत्यापन किए 16 करोड़ 39 लाख रुपये का भुगतान किया गया। वहीं तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में 4 करोड़ रुपये के खर्च का कोई उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं दिया गया।
मधेपुरा में बीएन मंडल विश्वविद्यालय में 5 करोड़ 50 लाख रुपये की वित्तीय गड़बड़ी सामने आई है। शिक्षा विभाग के निर्देश के अनुसार, यदि तय समय सीमा के भीतर सभी विश्वविद्यालय खर्च का उचित विवरण प्रस्तुत नहीं करते, तो उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएगी। इस मामले में कई बड़े अधिकारियों पर गाज गिर सकती है, और व्यापक स्तर पर जांच शुरू होने की संभावना है।