सिटी पोस्ट लाइव : नए साल के पहले दिन लालू यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को महागठबंधन के साथ आने का न्यौता देकर राजनीतिक पारा बढ़ा दिया.लालू यादव के ऑफर पर नीतीश कुमार की चुप्पी और मुस्कराहट ने बीजेपी और आरजेडी दोनों की बेचैनी बढ़ा दी.नीतीश कुमार की इस मुस्कराहट ने बीजेपी की बेचैनी बढ़ा दी और आरजेडी की उम्मीद जगा दी.बिहार में भाजपा के पास एक भी ऐसा चेहरा नहीं जिसका राज्यव्यापी अपील हो. नीतीश कुमार के सामने उसे खड़ा किया जा सके. लोकसभा में भाजपा की 2019 वाली स्थिति नहीं है. मोदी सरकार चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार के बदौलत चल रही है. ऐसे में इस समय भाजपा को नीतीश कुमार की हर बात माननी मजबूरी है. JDU के पास 12 लोकसभा सांसद हैं, जो सरकार के लिए अहम है.
बिहार में नीतीश कुमार के पास 16% वोट है. वह कोइरी, कुर्मी और महादलित समुदाय के सबसे बड़े नेता हैं. अपने करीब 16% EBC वोट बैंक के बल पर नीतीश कुमार सत्ता के केंद्र में बने हुए हैं.सोशल इंजीनियरिंग और धर्म के नाम पर बीजेपी भले ही यूपी में जाति समीकरण तोड़ने में कामयाब रही हो, लेकिन बिहार में कामयाब नहीं हो पाई है. यही वजह है कि नीतीश कुमार को साथ रखना बीजेपी और आरजेडी दोनों की मजबूरी है.नीतीश कुमार की विकासवादी और सेक्यूलर छवि भाजपा को सूट करती है. लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने नीतीश कुमार को तोड़कर INDIA गठबंधन को मनोवैज्ञानिक तौर पर कमजोर कर दिया था.बीजेपी के साथ गठबंधन में रहकर नीतीश कुमार पहले से ज्यादा मजबूत नेता बनकर उभरे हैं. इस गठबंधन के पक्ष में खास बात यह है कि बीजेपी का वोटर बेस सवर्ण जाति, गैर-यादव अन्य पिछड़ी जातियों (OBC) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) है.
नीतीश की पार्टी का EBC, गैर-यादव OBC के साथ-साथ लव-कुश (कुर्मी-कोइरी), महादलित (SC) मुख्य वोट बैंक है. यही वजह है कि गठबंधन में होने पर इन जातियों के वोट दोनों दलों को थोक में मिलते हैं.भाजपा ने 2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया. इससे नाराज होकर नीतीश कुमार ने जून 2013 में 17 साल से NDA के साथ चला आ रहा गठबंधन तोड़ दिया. नीतीश ने उस समय संघ-मुक्त भारत का आह्वान करते हुए घोषणा की थी कि मिट्टी में मिल जाएंगे, बीजेपी के साथ वापस नहीं जाएंगे. नीतीश को RJD का समर्थन मिला और वो मुख्यमंत्री बने रहे.
लेकिन नीतीश कुमार की यह राजनीतिक यात्रा RJD के साथ भी लंबे समय तक नहीं चल पाई. तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो नीतीश ने उनसे इस्तीफा मांगा, लेकिन उन्होंने नहीं दिया.इस्तीफा देने के बाद नीतीश कुमार ने कहा कि तेजस्वी मुझसे मिले, मैंने उनसे इस्तीफा नहीं मांगा था. केवल उन पर लगे आरोपों पर स्पष्टीकरण मांगा था. CM नीतीश कुमार ने नैतिकता का हवाला देते हुए खुद ही इस्तीफा दे दिया और रातोंरात बीजेपी के साथ हाथ मिला लिया.