सिटी पोस्ट लाइव : आईआईटी कानपुर की लैब में टाइटेनियम धातु से यह आर्टिफिशल हार्ट यानी कृत्रिम दिल विकसित किया जा रहा है. तकनीकी भाषा में इसे LVAD यानी Left Ventricular Assist Device कहते हैं. यह उन लोगों के काम आता है, जिनका दिल ठीक से ब्लड को पंप नहीं करता.इस LVAD डिवाइस का शेप पाइप की तरह होगा, जिसे हार्ट के एक हिस्से से दूसरे हिस्से के बीच जोड़ा जाएगा. हृदयंत्र खून को शरीर में पंप कर धमनियों के सहारे पूरे शरीर में पहुंचाएगा. देश के नामी हृदय रोग विशेषज्ञ और सर्जन डॉ. देवी शेट्टी ने हृदयंत्र को गेमचेंजर बताया है. इसे दुनिया का सबसे सस्ता और अत्याधुनिक कृत्रिम दिल बताया जा रहा है. सारे ट्रायल ठीक रहे तो यह 2025-26 में ट्रांसप्लांट के लिए उपलब्ध होगा और इसकी कीमत अधिकतम 10 लाख रुपये होगी. अभी बाजार में मौजूद ऐसी डिवाइस 25 लाख से 1 करोड़ कीमत तक की मिलती है.
IIT कानपुर में विकसित किए जा रहे कृत्रिम दिल ‘हृदयंत्र’ का एनिमल ट्रायल यानी जानवरों पर प्रयोग शुरू हो गया है. यह ट्रायल IIT की लैब के अलावा हैदराबाद की एक कंपनी में हो रहा है. प्रोजेक्ट के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर अमिताभ बंदोपाध्याय के अनुसार सबसे जरूरी काम ‘हृदयंत्र’ में लगे मटीरियल को टेस्ट करना है. इस काम में 6 महीने लगेंगे. जरूरत हुई तो मशीन और मटीरियल में बदलाव भी किए जाएंगे. इसके बाद गाय के बछड़े पर ट्रायल के लिए हमें भारत के बाहर भी जाना पड़ सकता है.
IIT कानपुर के प्रफेसर अमिताभ के अनुसार, हृदयंत्र का डिजाइन कंप्यूटर सिमुलेशन से तैयार किया गया है. जापानी ट्रेन मेग्लेव की तकनीक पर बन रहे हृदयंत्र की सतह खून के संपर्क में नहीं आएगी. पंप के अंदर टाइटेनियम पर ऐसे डिजाइनिंग की जाएगी कि वो धमनियों की अंदरूनी सतह की तरह बन जाए। इससे प्लेटलेट्स सक्रिय नहीं होंगे. प्लेटलेट सक्रिय होने पर शरीर में खून के थक्के जम सकते हैं. ऑक्सिजन का प्रवाह बढ़ाने वाले रेड ब्लड सेल्स भी नहीं मरेंगे.
इंसानी दिल को शरीर के अंदर लोकल इलेक्ट्रिकल फील्ड से ऊर्जा मिलती है, लेकिन हृदयंत्र को बाहर से चार्ज कर ऊर्जा दी जाएगी. मशीन को ऐसे डिजाइन किया जा रहा है कि मोटर का रोटर से संपर्क नहीं होगा. इससे कम आवाज और गर्मी पैदा होगी. ऐसा होगा तो ऊर्जा की मांग भी घटेगी. हृदयंत्र को शरीर में फिट करने के बाद दिल के पास से एक तार बाहर निकलेगा. ‘जिनके शरीर में आर्टिफिशल हार्ट लगा है, उन्हें नहाते या कुछ करते समय चार्जिंग वायर का खयाल रखना होगा, खींचतान की तो कोई गुंजाइश नहीं होगी.
हृदयंत्र के डिजाइन और विकास में अब तक करीब 35 करोड़ रुपये निवेश किए जा चुके हैं. इतनी बड़ी रकम आईआईटी कानपुर ने अपने संसाधनों, सीएसआर और भारत सरकार के फंड के अलावा डोनेशन से जुटाई है. शुरुआती फंड इन्फोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति और उनकी पत्नी सुधा मूर्ति ने दिया है.तकनीकी भाषा में इसे LVAD कहते हैं, यह उनके काम आता है, जिनका दिल ठीक से ब्लड को पंप नहीं करता.इसका शेप पाइप की तरह होगा, जिससे हार्ट के एक हिस्से को दूसरे हिस्से से जोड़ा जाएगा.हृदयंत्र खून को शरीर में पंप कर धमनियों के सहारे पूरे शरीर में पहुंचाएगा.6 महीने में पूरा होगा ट्रायल, नतीजों के मुताबिक मशीन और मटीरियल में बदलाव होगा.
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