राजभवन व सरकार में शह-मात का खेल जारी.
राजभवन ने ऑडिट के अधिकार की याद दिलाई तो विभाग ने सभी विवि का ऑडिट कराने का लिया फैसला.
सिटी पोस्ट लाइव : IAS अधिकारी के.के. पाठक ने जबसे शिक्षा विभाग की कमान संभाली है, शिक्षा विभाग को दुरुस्त करने में दिन रात जुटे हैं.लेकिन इस बीच अपने अपने अधिकार को लेकर राजभवन और शिक्षा विभाग आमने सामने आ गये हैं.बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के वित्तीय अधिकार को लेकर राजभवन और सरकार के बीच शुरू हुए शह-मात के खेल की जद में राज्य के सभी विश्वविद्यालय आ गए हैं. पिछले दिनों जब शिक्षा विभाग ने बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के वित्तीय अधिकार पर रोक का आदेश जारी किया तो राजभवन ने इसे कुलाधिपति के क्षेत्राधिकार का अतिक्रमण बताया और शिक्षा सचिव को आदेश वापस लेने के लिए कहा.
राजभवन के अनुसार विश्वविद्यालय अधिनियम के अनुसार शिक्षा विभाग को ऑडिट कराने का अधिकार है. राजभवन ने 17 अगस्त को यह बात कही, शिक्षा विभाग ने 18 अगस्त को ही ऑडिट कराने का पत्र जारी कर दिया. अब एक नहीं, सभी विश्वविद्यालयों की ऑडिट की तैयारी है. शिक्षा विभाग ने तो वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा की ऑडिट रिपोर्ट तो एक सप्ताह में ही मांगी है. विभाग ने वेतन सत्यापन कोषांग के दो लोगों को ऑडिट का जिम्मा दिया है. बीआरए बिहार विश्वविद्यालय में ऑडिट के लिए तीन सदस्यीय ऑडिट टीम भेजी गई है. टीम ने यहां पहुंचने के साथ जांच भी शुरू कर दी है.
विश्वविद्यालय में कक्षा और परीक्षा संबंधी कैलेंडर राजभवन ही जारी करता रहा है. इस बार शिक्षा विभाग ने विश्वविद्यालयों को अलग से कैलेंडर जारी किया है. शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के के पाठक विभाग के कैलेंडर के अनुसार काम नहीं करने पर नाराजगी भी जता चुके हैं. बीआरए विवि के कुलपति और प्रतिकुलपति का वेतन रोकने का आदेश जारी करने के पीछे एक प्रमुख कारण यह भी था.
जून माह में 4 वर्षीय स्नातक कोर्स मामले पर सरकार और राजभवन के बीच टकराव हुआ. राजभवन ने विश्वविद्यालयों को 4 वर्षीय स्नातक कोर्स इसी सत्र से लागू करने का पत्र जारी किया तो शिक्षा विभाग ने राजभवन को पत्र लिखकर इसे लागू नहीं कराने का आग्रह किया. विभाग ने तर्क दिया कि विश्वविद्यालयों में आधारभूत संरचना ही नहीं, शिक्षकों की भी कमी है. इस मामले पर राज्यपाल और शिक्षा मंत्री के अलग-अलग तर्क आए थे.
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