नए साल में अपने दुर्गुणों पर विजय पाने का लें संकल्प : पवित्रानन्द

Rahul K
By Rahul K

सिटी पोस्ट लाइव

रांची । रांची के योगदा सत्संग आश्रम में वर्ष के अंतिम रविवारीय सत्संग को संबोधित करते हुए स्वामी पवित्रानन्द ने योगदा भक्तों से कहा कि जीवन एक यात्रा है और इस यात्रा में नया वर्ष हमारे लिए एक नया अवसर लेकर आता है। यह नये अवसर को पाकर हम अपने जीवन यात्रा को और बेहतर बना सकते हैं तथा स्वयं को जागृत कर उस ब्रह्मांड के सार को जान सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अतीत में पड़ कर कभी वर्तमान को न भूलें। वर्तमान ईश्वर के द्वारा दिया गया अनमोल उपहार हैं।

जिसका हम फायदा उठाकर बेहतर स्थिति में आ सकते हैं अर्थात ईश्वर को पा सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस ईश्वर प्राप्ति में हमारे गुरु परमहंस योगानन्द जी हमें बेहतर स्थिति में लाने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। जब माया हमें प्रभाव में लेने की कोशिश करती हैं तो उस माया से बचाने का काम अपने गुरुजी का ही हैं। इसलिए हमें अपने गुरु से सदैव प्रेम करना सीखना चाहिए। हम बेहतर स्थिति में हो, इसके लिए हमें गुरु के प्रति प्रेम व भक्ति हर हाल मे रखनी होगी। उन्होंने कहा कि जब गुरु जी का जन्मदिन आता हैं तो आपने देखा होगा कि हर भक्त अपने-अपने ढंग से गुरु के प्रति प्रेम प्रदर्शित करता हैं।

वो अपने-अपने तरीके से गुरु को प्रसन्न करने के लिए नाना प्रकार के फल-फूल और उपहार गुरु को समर्पित करते हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि गुरुजी को इन सभी से अलग आपके अंदर जो छुपी बुराई हैं, जो पाप हैं। वो उन्हें चाहिए, ताकि वे अपने प्रभाव से आपके अंदर छुपी बुराई और पाप को भस्मीभूत कर दें और आपको रत्नाकर से वाल्मीकि बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा दें। उन्होंने कहा कि गुरुजी ने तो हम सब से वादा किया है कि जो कोई भी योगदा के पाठ को पढ़ेगा और उसी प्रकार जीवन यात्रा जारी रखेगा, वे उसके हर समस्याओं का निदान करेंगे। उसके ईश्वर पाने की जो लालसा है। उसे पूरी करने में उसकी मदद करेंगे। बशर्ते उसकी ध्यान व साधना में कोई रुकावट न हो, वह इसका अभ्यास करना कभी नहीं छोड़ें।

पवित्रानन्द ने कहा कि जो भी कोई ध्यान व साधना को नहीं छोड़ता, वो धीरे-धीरे स्वत: परमहंस योगानन्द जी की सहायता से ईश्वर के निकट चला जाता है। जो क्रियावान हैं, उनके लिए तो यह कार्य सहज व सरल है। क्योंकि क्रिया योग से ईश्वरीय चेतना को पाना बहुत ही आसान है। उन्होंने कहा कि एक बार जब वे योगदा आश्रम में टहल रहे थे। तभी एक युवा ने हमसे आकर पूछा कि क्या आप हर प्रकार से मुक्त हो चुके हैं। उसके इस प्रश्न से वे हतप्रभ रह गये। क्योंकि हर प्रकार से मुक्त हो जाना इतना आसान नहीं, जितना समझा जा सकता है। इसके लिए सबसे पहले अपनी सोच को ठीक करना पड़ता है।

अपने दृष्टिकोण को बदलना होता है। अगर दृष्टिकोण गलत हैं तो फिर ईश्वरीय चेतना से आप दूर हो गये, माया आपको प्रभाव में ले लेगी। लेकिन अगर आपका दृष्टिकोण सही हैं तो फिर आप ईश्वरीय चेतना से ओत-प्रोत होते जायेंगे। उन्होंने कहा कि इसके लिए आपको सबसे पहले संकल्पित होना पड़ेगा। बिना संकल्प के कुछ भी संभव नहीं। एक संकल्प आपके जीवन को परिवर्तित कर सकता है। फिर आप इस संकल्प के माध्यम से अगर आप प्रतिदिन ध्यान करना शुरू करते हैं।

क्रिया योग में आसक्त होते जाते हैं तो फिर ईश्वरीय चेतना को प्राप्त करने में दूरी कहां?

उन्होंने इसी बीच एक प्रतिज्ञान भी कराया, जिस प्रतिज्ञान को सभी योगदा भक्तों ने अपने मन में धारण किया। उन्होंने इस बात को बार-बार दुहराया कि गुरु की सेवा, संकल्प, अच्छी सोच, एक सुंदर दृष्टिकोण प्रत्येक व्यक्ति के जीवन यात्रा में बेहतर उद्देश्यों को प्राप्त करने में मदद करती है। उन्होंने कहा कि अगर आप अपने जीवन यात्रा को बेहतर बनाना चाहते हैं तो इस नये वर्ष में सबसे पहले अपने अंदर छुपे दुगुर्णों की एक सूची बनाइये और उन दुगुर्णों पर धीरे-धीरे विजय प्राप्त करने का प्रयास करिये। अगर आपका संकल्प सत्य है और आपने स्वयं को सुंदर दृष्टिकोण से ओत-प्रोत कर रखा हैं और गुरु सेवा में तल्लीन हैं तो आप एक दिन पायेंगे कि आपके अंदर के सारे के सारे दुर्गुण समाप्त हो चुके हैं। आप ईश्वरीय चेतना को प्राप्त कर चुके हैं और आप सही मायनों में हर प्रभाव से मुक्त हो चुके हैं, जो प्रत्येक साधनारत व्यक्ति की चाहत होती हैं।

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