बिहार में मकर संक्रांति का है विशेष महत्व, दही-चूड़ा खाने के साथ वचन का भी करना होता है पालन

Rahul K
By Rahul K

सिटी पोस्ट लाइव

पटना। जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, तो उसे संक्रांति कहते हैं। संक्रांति के दिन किए गए शुभ कार्यों को बहुत पुण्यजनक माना जाता है। जब सूर्य देव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो इसे मकर संक्रांति कहा जाता है। यह त्योहार पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, क्योंकि यह एक कृषि पर्व है। इस दिन भगवान सूर्य से अच्छी फसल के लिए प्रार्थना की जाती है। कहा जाता है कि इसी दिन सूर्य देव उत्तरायण होते हैं, जिसके बाद ठंड कम होने लगती है। मकर संक्रांति के दिन पश्चिम बंगाल के गंगासागर में मेला लगता है। पंजाब में इसे लोहड़ी, उत्तराखंड में उत्तरायणी, और केरल में पोंगल के नाम से मनाया जाता है।

धार्मिक दृष्टि से मकर संक्रांति का विशेष महत्व है, क्योंकि सूर्य के उत्तरायण होने से देवलोक में दिन की शुरुआत मानी जाती है। इसे खिचड़ी पर्व भी कहा जाता है, और इस दिन कई स्थानों पर खिचड़ी खाने और दान करने की परंपरा है। बिहार में मकर संक्रांति के अवसर पर दही-चूड़ा खाने को विशेष महत्व दिया जाता है, जिसके पीछे एक दिलचस्प कहानी छिपी हुई है।

वैसे तो मकर संक्रांति का पर्व पूरे देश में मनाया जाता है, लेकिन बिहार में इसका विशेष महत्व है। यहां इस त्योहार के दौरान “तिलकट भरने” की परंपरा निभाई जाती है। इस परंपरा में माताएं अपने पुत्रों को तिल, गुड़ और चावल देकर उनसे यह वचन लेती हैं कि वे बुढ़ापे में उनका सहारा बनेंगे। हालांकि, इस परंपरा में बेटियों को शामिल नहीं किया जाता। घर की बेटियां न तो इस रस्म का हिस्सा बनती हैं और न ही उन्हें इसमें कोई भूमिका दी जाती है। यह एक ऐसी परंपरा है, जो केवल पुत्रों तक ही सीमित रहती है।

माताएं पुत्रों से लेतीं हैं बुढ़ापे में सहारा बनने का वचन

आचार्य प्रभाकर पांडेय बताते हैं कि मकर संक्रांति के दिन घर में तिलकुट भरने की परंपरा निभाई जाती है, जिसमें कुल देवता को तिल, गुड़ और चावल अर्पित किया जाता है। इसके बाद माता अपने पुत्र और पुत्रवधू के साथ इस रस्म को पूरा करती हैं, लेकिन बेटियों को इस परंपरा में शामिल नहीं किया जाता।

बेटियों को अलग रखने का कारण बताते हुए आचार्य प्रभाकर पांडेय कहते हैं कि कुल देवता को अर्पित सामग्री का प्रसाद माताएं अपने पुत्रों को देती हैं और उनसे यह वचन लेती हैं कि वे उनके बुढ़ापे में सहारा बनेंगे। बेटियों को इस रस्म से दूर रखने का कारण यह माना जाता है कि शादी के बाद वे अपने ससुराल के कुल का हिस्सा बन जाती हैं, जबकि पुत्र जीवनभर अपने माता-पिता के साथ रहते हैं और उनके कुल की परंपराओं को आगे बढ़ाते हैं।

बिहार में मकर संक्रांति पर दही-चूड़ा का खास महत्व

मिथिलांचल क्षेत्र में मकर संक्रांति को तिला संक्रांति भी कहा जाता है, जहां इस दिन तिल और गुड़ का भोग देवताओं को चढ़ाने की परंपरा है। खिचड़ी बनाने का रिवाज भी इस पर्व का एक अहम हिस्सा है। लेकिन बिहार में मकर संक्रांति पर दही-चूड़ा खाने की परंपरा विशेष रूप से प्रचलित है, जो सदियों से चली आ रही है।

धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति के समय धान की कटाई पूरी होती है, जिसके बाद चावल का सेवन आरंभ होता है। इस दिन चावल का दान करना बेहद शुभ माना जाता है और चावल खाने को स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना गया है। बिहार में यह विश्वास है कि मकर संक्रांति पर दही-चूड़ा का सेवन करने से सुख-समृद्धि बढ़ती है और कुंडली में मौजूद ग्रह दोषों का निवारण होता है। यह भी कहा जाता है कि यदि परिवार के सभी सदस्य एक साथ दही-चूड़ा खाएं, तो आपसी प्रेम और संबंधों में मजबूती आती है।

ऐसा भी माना जाता है कि मकर संक्रांति प्रकृति की आराधना का त्योहार है, जो सूर्य के उत्तरायण होने की खुशी में मनाया जाता है। इसी वजह से कड़ाके की ठंड के बावजूद लोग सूर्योदय से पहले स्नान करते हैं और सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इस दिन तिल के पौधे के डंठल (तिलाठी) जलाकर ठंड से बचने का प्रयास करते हैं। इसके बाद दही-चूड़ा और तिल के लड्डू का सेवन किया जाता है, जिसे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है।

बिहार में गंगा स्नान का विशेष महत्व

सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के साथ ही खरमास समाप्त हो जाएगा, और इसके बाद शुभ कार्यों की शुरुआत होगी। इस वर्ष सूर्य 14 जनवरी को दोपहर 2:55 बजे मकर राशि में प्रवेश करेंगे, और इसका पुण्यकाल पूरे दिन रहेगा। बिहार में गंगा स्नान का विशेष महत्व है। मकर संक्रांति के दिन सुबह से ही गंगा, कोसी, पुनपुन समेत बिहार की तमाम नदियों पर श्रदृधालुओं की भारी भीड़ देखी जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर सूर्य को अर्घ्य देने से ग्रह दोषों का नाश होता है। इस पावन अवसर पर श्रद्धालु गंगा में स्नान करेंगे, सूर्य देव की आराधना करेंगे और दान-पुण्य कर मकर संक्रांति का त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाएंगे।

डिस्क्लेमर : यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। www.citypostlive.com इसकी पुष्टि नहीं करता। इसके लिए किसी एक्सपर्ट की सलाह अवश्य लें।

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