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प्रयागराज: बचपन में मां के कहने पर गीता और भागवत पुराण का पाठ करने वाली एक बेटी संन्यासिनी बन गईं। श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़े की महामंडलेश्वर जय अंबानंद गिरि का जीवन एक अद्भुत परिवर्तन की गाथा है। वे पांच भाई-बहनों में दूसरे स्थान पर थीं। उनकी मां शिक्षित नहीं थीं, लेकिन धार्मिक प्रवृत्ति की थीं।
मां अक्सर उन्हें अपने पास बैठाकर गीता और अन्य धार्मिक ग्रंथों का पाठ करने को कहती थीं। पढ़ाई के साथ उन्होंने शास्त्रों का भी गहन अध्ययन किया। शिक्षा पूरी करने के बाद एक मल्टीनेशनल कंपनी में मैनेजर बनीं, लेकिन भौतिक सुखों को त्यागकर आध्यात्मिक मार्ग की ओर अग्रसर हो गईं।
अंबानंद गिरि को छह भाषाओं का ज्ञान है। उनके सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में अनुयायी हैं। इंस्टाग्राम पर 78 हजार से अधिक और फेसबुक पर 3.50 लाख से ज्यादा लोग उन्हें फॉलो करते हैं। उनका जीवन आध्यात्मिकता और संन्यास की प्रेरणादायक मिसाल बन चुका है।