बिहार के कांशी राम बन पायेगें प्रशांत किशोर?

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सिटी पोस्ट लाइव : प्रशांत किशोर ने एक दलित चेहरे को अध्यक्ष बना दिया है लेकिन पार्टी चलाने के लिए नेता होना जरूरी है. जो मनोज भारती नहीं हैं. वो पढ़े लिखे हैं लेकिन पॉलिटिक्स में क्या कर पाएंगे, ये देखना दिलचस्प होगा. पार्टी लॉन्च करने के दौरान प्रशांत किशोर ने बताया कि जनसुराज ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ साथ संविधान निर्माता बी आर आंबेडकर की तस्वीर वाले झंडे का आधिकारिक आवेदन चुनाव आयोग में दिया है. ऐसे में ये सवाल अहम है कि बीते दो साल से महात्मा गांधी की तस्वीर के साथ जनसुराज अभियान चला रहे प्रशांत किशोर ने आंबेडकर को अपने झंडे में जगह क्यों दी?

पीके महात्मा गांधी और आंबेडकर को एक साथ लाकर नई पॉलिटिक्स की है. उनकी तैयारी बहुत लॉजिकल है. वो सत्तासीन पार्टियों के लिए ख़तरा साबित होंगे. अभी पार्टियां मध्यवर्ती जातियों पर फोकस कर रही हैं और इस बीच पीके ने एक दलित को अध्यक्ष बनाकर बहुत हिम्मत का काम किया है. प्रशांत किशोर की राजनीति को पहले ही पॉलिटिकल थिंकर्स ‘डीईएम’ यानी दलित, अति पिछड़ा और मुसलमान, केंद्रित बता रहे हैं. बिहार में हुई जातिगत गणना में दलितों की आबादी 19.65 फीसदी, अति पिछड़े 36.01 फ़ीसदी और मुस्लिम 17.70 फ़ीसदी हैं. “आज की राजनीति में प्रशांत किशोर की  लड़ाई धर्म आधारित राजनीति करने वालों से है. प्रशांत किशोर दोनों को एक ही झंडे में लाकर गांधीवादियों और आंबेडकरवादियों को एक होने का संदेश देना चाहते है.

पार्टी बनने की पूरी प्रक्रिया में सबसे ज्यादा अहम प्रशांत किशोर ने पार्टी में खुद को ”बैकस्टेज या नेपथ्य” में रखा है. उन्होंने कहा है कि ”पार्टी बनने के बाद जो काम मैं पिछले दो साल से कर रहा हूं, वही काम आगे करता रहूंगा. मैं अभी अररिया – सुपौल इलाके की यात्रा कर रहा था. दो- तीन दिन बाद उसी इलाके में वापस जाकर यात्रा करूंगा. जब तक लोगों को जागरुक नहीं करूंगा, मेरी यात्रा जारी रहेगी. जनसुराज अभियान के जरिये प्रशांत किशोर बिहार की जनता को जागरुक करेगें और मनोज भारती  संगठन के काम को आगे बढ़ाएगें. दरअसल, बिहार के तीन दशकों से  बिहार की राजनीति में अपर कास्ट भूमिका बहुत कम है. प्रशांत किशोर ब्राह्मण हैं, इसलिए भी उन्होंने खुद को पीछे और एक दलित चेहरे को सामने रखा है.”

कांशीराम जी ने भी मायावती को आगे बढ़ाकर काम किया था और यूपी की राजनीति जो अपरकॉस्ट और ओबीसी के हाथ में थी, उसको दलितों के हाथ में लाए. हालांकि, बिहार में दलित आबादी में से पासवान जाति के नेता चिराग पासवान हैं, इसलिए पीके दलित मुस्लिम कॉम्बिनेशन पर काम कर रहे हैं. “नीतीश कुमार के स्वास्थ्य, बीजेपी का चेहरा विहीन होना और राजद का लालू के साए से ना निकल पाने के चलते बिहार में एक पॉलिटिकल वैक्यूम है. ऐसे में पीके की पार्टी लॉन्च करने की टाइमिंग परफेक्ट है.प्रशांत किशोर की चुनावी सफलता भविष्य के गर्भ में है. लेकिन प्रशांत किशोर बीते दो सालों से बिहार की राजनीति में हलचल पैदा कर रहे हैं. देखना होगा कि वो अपने इस ‘मोमेंटम’ को कितना बरकरार रखते हुए उसे चुनावी सफलता में तब्दील कर पाते हैं.

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