सिटी पोस्ट लाइव : 23 नवम्बर का दिन बिहार की राजनीति के लिए बहुत अहम् है.इसी दिन बिहार विधान सभा की चार सीटों के उप चुनाव के नतीजे सामने आयेगें.ये चुनाव परिणाम अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की दिशा भी तय करेंगे.आरजेडी की साख सबसे ज्यादा दांव पर लगी है.उसके नेतृत्व वाले महागठबंधन की तीन सीटों में से दो पर पिछली बार आरजेडी के प्रत्याशी जीते थे.तरारी में मेल जीता था. चार सीटों के इस उपचुनाव में आमने-सामने के दोनों गठबंधनों (राजग और महागठबंधन) के लगभग सभी घटक दलों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है.जन सुराज पार्टी (जसुपा) ने चुनाव को दिलचस्प बना दिया है.इस चुनाव में जन सुराज का रिजल्ट बहुत मायने रखता है.
बेलागंज, इमामगंज, रामगढ़ और तरारी के विधायकों के सांसद चुने जाने के कारण उन क्षेत्रों में उप चुनाव हुआ है. इसमें जिसकी बढ़त होगी, वह अगली लड़ाई के लिए मजबूत हौसले के साथ आगे बढ़ेगा. हारने वालों के लिए चुनाव परिणाम कमियों-खामियों की पहचान कर अगली रणनीति तैयार करने के लिए सबक मिलेगा.हालांकि, जीत-हार से सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला, लेकिन विधान मंडल में एक-दूसरे पर छींटाकशी तय है. ये चारों सीटें मगध और शाहाबाद परिक्षेत्र की हैं, जहां लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को सबसे अधिक झटका लगा था.विधानसभा के पिछले चुनाव में भी महागठबंधन ने दूसरे क्षेत्रों की तुलना में यहां बेहतर प्रदर्शन किया था.
उपचुनाव मेंसबसे बड़ा दांव आरजेडी का है. उसके नेतृत्व वाले महागठबंधन की तीन सीटों में से दो (रामगढ़ और बेलागंज) पर पिछली बार आरजेडी के ही प्रत्याशी जीते थे. उन दोनों सीटों की पहचान तो जैसे पार्टी के साथ परिवार और पुश्तों से जुड़ी रही है. बेलागंज में सुरेंद्र यादव और रामगढ़ में आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के साथ उनके सांसद पुत्र सुधाकर सिंह की पैठ को चुनौती है. सुरेंद्र और जगदानंद के पुत्र क्रमश: बेलागंज और रामगढ़ में राजद के प्रत्याशी हैं.बेलागंज में इस बार माय (मुस्लिम-यादव) समीकरण में सेंधमारी की चर्चा है तो रामगढ़ में अति पिछड़ा और सवर्ण मतों में विभाजन की. इस महागठबंधन की तीसरी सीट तरारी है, जो बिहार में माले की सबसे मजबूत किलों में से एक है. पिछली बार यहां सुदामा प्रसाद को जिस तरह वैश्य मतदाताओं का समर्थन मिला था, वैसा ही समर्थन उप चुनाव के प्रत्याशी राजू यादव को भी मिला है, इसे लेकर संशय है.इस क्षेत्र में बाहुबली सुनील पांडेय की भी अपना दबदबा है. भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरे उनके पुत्र प्रशांत प्रताप की जीत-हार से उस दबदबे का भी आकलन होगा.
रामगढ़ और तरारी के परिणाम से राजग में भाजपा के बड़े भाई के दावे पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव तय है. चौथी सीट इमामगंज का परिणाम केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी के आखिरी दौर की राजनीति का निर्णायक होगा. हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा से यहां उनके पुत्रवधू दीपा मांझी मैदान में रही हैं. इस तरह यह चौथी सीट भी परिवाद की छाया से मुक्त नहीं.इस परिवारवाद से जन सुराज अभी इसलिए भी अछूती है, क्योंकि उसकी चुनावी राजनीति की अभी शुरुआत ही हुई है.प्रत्यक्ष रूप से वह जातिवादी और व्यक्तिवादी राजनीति का भी विरोध कर रही है . प्रत्याशियों के चयन में उसने सामाजिक समीकरण का पूरा ख्याल रखा है. चुनाव अभियान के दौरान उसके सूत्रधार प्रशांत किशोर बिहार में परिवर्तन का वादा करते रहे परिणाम से पता चलेगा कि जनता ने कितना यकीन किया है.
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