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नीतीश सच में BJP से निभाएंगे रिश्ते?

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सिटी पोस्ट लाइव :मोतीहारी सेंट्रल यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में नीतीश के एक बयान के बाद लोगों के जेहन में एक सवाल उठने लगा कि नीतीश विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’के साथ हैं कि एनडीए के साथ.उन्होंने व्यंग्य के लहजे में भाजपा नेताओं के लिए एक ऐसी बात कह दी, जिसे लेकर जेडीयू को  जवाब देते नहीं बन रहा. नीतीश ने  कहा था कि राज्यों में सेंट्रल यूनिवर्सिटी खोलने की अवधारणा बनी तो उन्होंने यूपीए सरकार के तत्कालीन शिक्षा मंत्री से मुलाकात की. उनसे मोतीहारी में सेंट्रल यूनिवर्सिटी खोलने का प्रस्ताव दिया. मंत्री ने बात सुनी और खाना भी खिलाया, लेकिन सलाह नहीं मानी. एनडीए सरकार बनने पर मोतीहारी में सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाने का मार्ग प्रशस्त हुआ. इसी क्रम में उन्होंने सामने बैठे एनडीए के नेताओं की ओर इशारा करते हुए कहा- तब हम साथ थे. याद है न 2005। हमारी दोस्ती तब भी थी. अब भी है. जब तक हम जीवित रहेंगे हमारा-आपका संबंध रहेगा.

 

राजनीति में लोग भले सैद्धांतिक तौर पर एक दूसरे के कटु आलोचक होते हैं, लेकिन व्यावहारिक तौर पर ऐसा नहीं होता. वे एक दूसरे से मिलते-बतियाते हैं, एक दूसरे के पारिवारिक आयोजनों में शामिल होते हैं. इसका अर्थ तो यह कत्तई नहीं होता कि उनकी दलीय निष्ठा बदल गई है. मुलायम सिंह यादव के घर वैवाहिक कार्यक्रम में पीएम नरेंद्र मोदी ने भी शिरकत की थी. मुलायम सिंह ने भरी संसद में कहा था कि उनकी इच्छा है कि नरेंद्र मोदी फिर प्रधानमंत्री बनें. इसका अर्थ यह तो नहीं हुआ कि मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी का भाजपा में विलय हो गया या सपा ने बीजेपी के साथ जाने का फैसला कर लिया. राजनीति की इस सच्चाई को जो नहीं जानते, वे नीतीश कुमार के बयान पर तमतमा रहे हैं.

आरजेडी के नेता लालू यादव कहते रहे हैं  कि नीतीश के दांत उनकी आंत में हैं. यानी उनके मन की बात कोई नहीं जानता. नीतीश के फैसलों से भी ऐसा ही जाहिर होता है. पहले जनता पार्टी, फिर जनता दल, समता पार्टी और अब जेडीयू तक का सफर करने वाले नीतीश कुमार तीन बार एनडीए का साथ छोड़ चुके हैं .तीसरी बार आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन के साथ हैं. इसलिए उनका अगला कदम क्या होगा, यह उनके सिवा कोई नहीं जानता. महागठबंधन के साथ जाते ही जेडीयू के छोटे-बड़े नेताओं के लगातार साथ छोड़ते जाने से नीतीश आहत जरूर हैं.उनकी परेशानी इस बात को लेकर भी है कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में उन्हें सिटिंग सीटों की संख्या के बराबर विपक्षी गठबंधन में हिस्सेदारी मिलती नहीं दिख रही है. विरोधी जेडीयू के खत्म होने की भविष्यवाणी करते रहते हैं. इसलिए नीतीश फिर एनडीए के साथ चले जाएं तो कोई अचरज की बात नहीं होनी चाहिए.।

इस साल चार ऐसे मौके आए, जिससे लगा कि नीतीश भले विपक्षी एकता मुहिम के अगुआ बने हुए हैं, लेकिन एनडीए के प्रति उनके मन में अब भी आकर्षण बना हुआ है. सबसे पहले चौती छठ का प्रसाद खाने वे भाजपा के एमएलसी संजय मयूख के घर अपने मंत्रियों के साथ पहुंच गए थे. दूसरा मौका राष्ट्रपति द्वारा ळ 20 के आयोजन के दौरान आया, जब राष्ट्रपति भवन में आयोजित भोज में उन्होंने पीएम के साथ न सिर्फ शिरकत की, बल्कि आपसी सौहार्द जताती पीएम मोदी के साथ उनकी तस्वीरें भी सामने आईं.। तीसरा मौका जनसंघ (अब भाजपा) के नेता दीनदयाल उपाध्याय की उन्होंने जयंती मनाई. चौथा मौका मोतीहारी में भाजपा नेताओं से मरते दम तक रिश्ता बरकरार रखने का उनका भाषण था. इन्हीं वजहों से आरजेडी को हमेशा यह भय बना रहता है कि वे फिर न दगा दे दें.

मोतीहारी में नीतीश की भाजपा से ताजिंदगी रिश्ते निभाने वाली बात पर आरजेडी में भारी गुस्सा है. आरजेडी के मुख्य प्रवक्ता और लालू यादव के परिवार के करीबी शक्ति सिंह यादव ने कहा है कि नीतीश कुमार आरोप मोतीहारी में सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाए जाने का श्रेय नरेंद्र मोदी को देते हैं और यूपीए सरकार का उपहास करते हैं, लेकिन वे मोदी से कई चीजें मांगते रह गए, मिला क्या ? वहीं बिहार के डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव का कहना है कि रिश्ते तो हैं ही. हर दल के नेता से सबंध है. हम लोग मिलते भी रहते हैं. एक दूसरे का सुख-दुख भी बांटते हैं. तेजस्वी को नीतीश के बयान में कोई गड़बड़ी नहीं दिखती. जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह को तो नीतीश के बयान पर कुछ सूझा ही नहीं. वे बिना कुछ बोले पत्रकारों के सवाल सुन कर खिसक लिए.। अलबत्ता केसी त्यागी ने नीतीश का बचाव किया. त्यागी ने कहा है कि नीतीश कुमार निजी रिश्तों को काफी तरजीह देते हैं. दूसरी पार्टियों के नेताओं के साथ भी नीतीश के मधुर संबंध हैं. इसका अर्थ यह नहीं निकाला जाना चाहिए कि उनका इरादा बदल गया है.

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