सिटी पोस्ट लाइव : बिहार की तीन सीटें ऐसी हैं, जिसे लेकर भारी सस्पेंस बना हुआ है. सीवान और पूर्वी चंपारण के लिए अभीतक महागठबंधन अपना उम्मीदवार तय नहीं कर पाया है. सीवान से अभी तक RJD ने और पूर्वी चंपारण से अभी तक वी आई पी ने अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है. सीवान से हिना शहाब के निर्दलीय चुनाव लड़ने की चर्चा है . पूर्वी चंपारण से बीजेपी ने अपने कद्दावर नेता राधामोहन सिंह को दसवीं बार चुनावी मैदान में उतार दिया है, लेकिन वीआईपी अभी तक अपना उम्मीदवार तय नहीं कर सकी है. रोजाना एक नया नाम उभर रहा है, लेकिन फाइनल “डील” अब तक नहीं हो सकी है. काराकाट एक ऐसी सीट है, जहां भोजपुरी फिल्मो के सुपर स्टार पवन सिंह के उतरने के ऐलान से अब त्रिकोणीय मुकाबले की उम्मीद बनी है.
आखिर आसनसोल से भाजपा का टिकट छोड़ कर काराकाट से चुनाव लड़ने के पीछे पवन सिंह का इरादा क्या है? वे एनडीए कैंडिडेट को जिताना चाहते है या हराना? आखिर वे किसके इशारे पर चुनावी मैदान में है? अब तो यह भी खबर आ रही है कि वे बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं. कुछ विश्लेषकों का यह भी कहना है कि भाजपा उपेन्द्र कुशवाहा को सबका सिखाना चाहती है, इसलिए पवन सिंह भाजपा के इशारे पर चुनाव लड़ रहे हैं और अपनी जाति के वोट वे काटेंगे.
काराकाट कुशवाहा बहुल क्षेत्र है. जातिगत आंकडे़ के हिसाब से इस क्षेत्र में राजपूत, कुशवाहा, यादव जाति के मतदाताओं की संख्या अच्छी-खासी है. इसके 6 विधानसभा क्षेत्रों पर महागठबंधन का कब्जा है. जिसमें से 5 पर राजद और एक पर भाकपा(माले) काबिज है. इस लिहाज से महागठबंधन की स्थिति काफी मजबूत मानी जा सकती है. दूसरी तरफ, पवन सिंह के आने से राजपूत मतदाताओं का वोट उन्हें मिलेगा, जो कहीं न कहीं उपेन्द्र कुशवाहा (एनडीए-भाजपा) के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है.अब यह देखना होगा कि क्या राजद अपना वोट बैंक पूरी तरह से राजा राम सिंह कुशवाहा (भाकपा (माले)) के पक्ष में शिफ्ट करवा पाती है. अगर ऐसा हो जाता है तो निश्चित ही पवन सिंह एनडीए उम्मीदवार उपेन्द्र कुशवाहा के लिए एक भारी सिरदर्द साबित हो सकते हैं.
अब 2024 में हिना शहाब निर्दलीय लड़ कर क्या कर सकती है? अंदरखाने यह खबर थी कि लालू यादव एक बार फिर से हिना शहाब को टिकत देने के मूड में थे लेकिन तेजस्वी इसके खिलाफ थे. हिना शहाब ने साफ़ कर दिया है (अब तक की स्थिति) कि वे निर्दलीय लड़ेंगी. पप्पू यादव ने उन्हें अपना समर्थन दिया है और ओवैसी ने भी उन्हें समर्थन देने की बात कही है. यही से मामला उलझाऊ हो जाता है, जिससे कहीं न कहीं राजद भ्रम की स्थिति में है. हिना शहाब हारती हैं या जीतती हैं, यह महत्वपूर्ण नहीं है लेकिन वह सीवान समेत पूरे बिहार के अल्पसंख्यकों के बीच शायद यह मैसेज देने में सफल हो सकती है कि उनके पति के साथ राजद के लोगों ने न्याय नहीं किया, साथ नहीं दिया. साथ ही पप्पू यादव अगर उनके समर्थन में उतर कर सीवान में रैली कर देते है तो फिर “माई” समीकरण को डेंट लगाने का खतरा रहेगा. फिर इसका असर पड़ोस के सारण पर भी होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.
मोतिहारी एक ऐसा लोकसभा क्षेत्र है, जहां से पूर्व केन्द्रीय मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता राधामोहन सिंह दसवीं बार चुनाव लड़ रहे है. जाहिर हैं, वे अपनी जीत को ले कर आशान्वित तो हैं लेकिन, जब से यह सीट राजद ने वीआईपी को दिया है, तब से यहाँ एक अजीब किस्म की कशमकश चल रही है. रोज एक नया नाम सामने आ रहा है. इससे न सिर्फ विपक्ष बल्कि निर्वर्तमान सांसद भी कन्फ्यूज्ड होंगे, भले वह कन्फ्यूजन उपरी तौर पर न दिख रहा हो. इस क्षेत्र में महागठबंधन की तरफ से अब तक कोइ दमदार उम्मीदवार सामने दावेदारी करने नहीं आया है जो इतने वरिष्ठ नेता को एक फाइट तक दे सके. विश्लेषकों का मानना है कि यहाँ राधामोहन सिंह के लिए चुनाव केकवॉक है, यानी उनके सामने कोई है ही नहीं. हालांकि, राजनीति इतनी आसान नहीं होती और अतिआत्मविश्वास राजनीति में कई बार भारी पड जाता है. शायद यही वजह है कि राधामोहन सिंह को यह कहना पडा कि मुकेश सहनी अगर निषाद हितैषी है तो वे किसी निषाद (सहनी) को टिकट दे कर दिखाएं. इसके पीछे वजह है कि वे मुकेश सहनी को बैक फुट पर लाना चाहते है. जबकि सच्चाई यह है कि इस क्षेत्र से अगर ऐसे किसी भूमिहार या वैश्य उम्मीदवार को मुकेश सहनी टिकट देते हैं जो साम-दाम-दंड-भेद का माहिर खिलाड़ी हो तो फिर राधामोहन सिंह के लिए यह चुनाव एक कड़ी टक्कर में बदल सकता है.