सिटी पोस्ट लाइव :एक ज़माना था जब छात्र राजनीति के सूरमा देश की राजनीति की दिशा तय करते थे.1970 के दशक में छात्र राजनीति में लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की इंट्री हुई. पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ का अध्यक्ष रहते हुए वे राजनीतिक जगत की सुर्खियों में आ गए थे.पटना विश्वविद्यालय के छात्र संघ से ही सुशील मोदी, रविशंकर प्रसाद, अश्विनी चौबे, अनिल शर्मा आदि मुख्य धारा की राजनीति में आए.लालू यादव की अध्यक्षता वाली समिति में सुशील मोदी महासचिव और रविशंकर संयुक्त सचिव हुआ करते थे. लालू तो राजद के संस्थापक ही हैं, जबकि सुशील मोदी और रविशंकर प्रसाद राज्य-राष्ट्र में महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं.
1977 में पटना विश्वविद्यालय में पहली बार विद्यार्थी परिषद को जीत दिलाकर अश्विनी चौबे अध्यक्ष बने थे. प्रदेश की सरकार से होते हुए केंद्र सरकार तक पहुंचे. गैर-राजनीतिक संगठन के बूते 1980 में अध्यक्ष बन अनिल कुमार शर्मा ने एक नया ही इतिहास रचा. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष से होते हुए वे अब भाजपा का झंडा उठा लिए हैं. लेकिन छात्र राजनीति के दिन अब लद गये हैं.आज मुख्यधारा की राजनीति से धीरे धीरे छात्र नेता गायब होते जा रहे हैं.उनकी जगह अब राजनेताओं के रिश्तेदार लेने लगे हैं.
जेएनयू में वामपंथी छात्र संगठन की राजनीति से कांग्रेस में आए कन्हैया कुमार को बेगूसराय कीसीट नहीं मिली.अब वो किसी दूसरी सीट से लड़ने की उम्मीद लगाए हुए हैं. महागठबंधन में बेगूसराय भाकपा के खाते में चली गई है, जहाँ से कन्हैया कुमार लड़ना चाहते थे.पटना साहिब संसदीय क्षेत्र से रविशंकर प्रसाद और उजियारपुर से नित्यानंद राय दोबारा प्रत्याशी हैं. जदयू ने महाराष्ट्र में छात्र संगठन से उभरे देवेश चंद्र ठाकुर को आगे कर सीतामढ़ी में मैदान मारने का दांव चला है. ठाकुर अभी बिहार विधान परिषद के सभापति हैं.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद, पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी आदि छात्र संगठनों से होकर ही राजनीति के आसमान में चमके हैं.बिहार की विधायी राजनीति में उन सबका उल्लेखनीय योगदान है. यह प्रमाण है कि कालेज-विश्वविद्यालय के किताबी पाठ ही नहीं, बल्कि वहां पढ़े-पढ़ाए गए राजनीतिक ककहरा भी भविष्य में कद-पद बढ़ाने वाले होते हैं.1970 के दशक में छात्र राजनीति में लालू प्रसाद का पहली बार प्रवेश हुआ. पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ का अध्यक्ष रहते हुए वे राजनीतिक जगत की सुर्खियों में आ गए थे.पटना विश्वविद्यालय के छात्र संघ से ही सुशील मोदी, रविशंकर प्रसाद, अश्विनी चौबे, अनिल शर्मा आदि मुख्य धारा की राजनीति में आए.
1977 में पटना विश्वविद्यालय में पहली बार विद्यार्थी परिषद को जीत दिलाकर अश्विनी चौबे अध्यक्ष बने थे. प्रदेश की सरकार से होते हुए केंद्र सरकार तक पहुंचे. छात्र संघ में लालू की टीम में रहे बाल मुकुंद शर्मा अभी राजनारायण चेतना मंच के अध्यक्ष हैं. वे नीतीश कुमार की राजनीतिक शैली को सबसे अलग मानते हैं.वह कहते हैं कि राजनीति में अच्छे लोग नहीं आएंगे तो बुरे लोग हावी हो जाएंगे. ऐसे में राजकाज और समाज पर बुरा असर पड़ेगा. 1974 के आंदोलन के दौरान नीतीश की राजनीतिक शुचिता आज भी अनुकरणीय है.
Comments are closed.