सिटी पोस्ट लाइव :राजभवन में बिहार के सीएम नीतीश कुमार और बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी के एकसाथ पहुँचने को लेकर बिहार में अटकलों का बाज़ार गरम है. राज्यपाल से मुलाकात के लिए नीतीश कुमार का अचानक राज भवन पहुंचना और पीछे से बीजेपी के राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी का आना महज संयोग था या कुछ और ? हालांकि राजभवन ने नीतीश कुमार के राज्यपाल से मिलने को महज शिष्टाचार भेंट बताया है.
लेकिन लोगों को 2017 की याद आ रही है, जब महागठबंधन से रिश्ता तोड़ कर नीतीश कुमार राजभवन पहुंचे थे. तब भी सुशील कुमार मोदी उनके साथ गए थे. यह सवाल इसलिए भी गंभीर हो गया है कि तेजस्वी यादव अभी विदेश भ्रमण पर हैं. नीतीश कुमार को जबरन राष्ट्रीय राजनीति में धकेलने के लिए आरजेडी बेताब है. नीतीश के राजभवन पहुंचते ही बुधवार को दिन भर बिहार के सियासी हल्के में भूचाल आ गया था. तरह-तरह की अटकलें लगने लगीं. पीछे से सुशील कुमार मोदी के पहुंचने से अफवाहों को और बल मिला. ऐसा इसलिए हुआ कि पहली बार नीतीश कुमार ने जब महागठबंधन का साथ छोड़ा था तो उसके सूत्रधार सुशील कुमार मोदी ही थे. सत्ता परिवर्तन का केंद्र भी राजभवन ही बना था.
आरजेडी के लोग जब तक हकीकत समझ पाते, तब तक काम तमाम हो चुका था. बीजेपी के सहयोग से नीतीश एनडीए के सीएम बन गए थे. विपक्षी एकता के लिए नीतीश से एक कदम आगे बढ़ कर आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू यादव और उनके बेटे डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव जिस तरह सक्रिय रहे, शायद वह नीतीश को रास नहीं आया होगा. बैठक में लालू की उपस्थिति और महफिल लूटने की उनकी अदा ने भी नीतीश के मन को जरूर चोट पहुंचाई होगी.नीतीश कुमार ने भले आरजेडी के उकसावे पर विपक्षी एकता का बीड़ा उठाया, पर दो दलों की प्रत्यक्ष नाराजगी से अब उन्हें भी लगने लगा है कि विपक्षी एकता का हाल 2019 जैसा ही न हो जाए. तब आंध्रप्रदेश के तत्कालीन सीएम चंद्रबाबू नायडू ने विपक्षी एकता का बीड़ा उठाया था. नीतीश की कोशिश से तो 15 दल ही साथ आ पाए. नायडू की पहल पर करीब 20 दल एकजुट हुए थे. चुनाव की घोषणा से लेकर टिकट बंटवारे तक विपक्षी एकता टांय-टांय फिस्स हो गई थी.
ममता बनर्जी कांग्रेस और वाम दलों के साथ आने को तैयार तो हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल में वे दोनों दलों को भाजपा की ही श्रेणी में रख रही हैं. आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल तो रोज-रोज शर्तें थोप रहे हैं. तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन की भी कांग्रेस से खुन्नस है. इसीलिए उन्हें मनाने के लिए तेजस्वी यादव चेन्नई गए थे. वे आए भी तो बैठक में शामिल होने के बाद प्रेस कांफ्रेंस छोड़ कर चले गए. संभव है कि नीतीश को विपक्षी एकता की नाकामी का एहसास अभी से होने लगा हो.
सीएम नीतीश कुमार और पूर्व डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी की संयोगवश राजभवन में हुई मुलाकात के बाद बुधवार से ही बिहार में सियासी अटकलों का बाजार गर्म है. कयास लगने लगे हैं कि नीतीश कुमार फिर कोई खेल करने वाले हैं. हालांकि अटकलों पर विराम तब लगा, जब सुशील मोदी ने सफाई दी कि यह महज संयोग था कि एक ही वक्त दोनों राजभवन पहुंच गए. हालांकि सीएम नीतीश कुमार की ओर से आधिकारिक बयान नहीं आया कि वे क्यों गए थे. इसकी भरपाई राजभवन ने कर दी. राजभवन ने कहा कि यह शिष्टाचार भेंट थी. फिर भी अटकलों पर अभी तक विराम नहीं लगा है. इसकी वजह यह है कि नीतीश कुमार ने पिछले 10 साल में जिस तरह पाला बदल की राजनीति की है, उसे देखते हुए लोगों के मन में उनके प्रति हमेशा संशय ही बना रहता है.
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