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बिहार के दूसरे जेपी बनने की राह पर प्रशांत किशोर…

राह बहुत मुश्किल है लेकिन हौसले इतने बुलंद हैं, माहौल इतना अनुकूल है कि बंधने लगी हैं उम्मीदें.

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सिटी पोस्ट लाइव : कांग्रेस की नेत्री इंदिरा गाँधी के ज़माने व्यवस्था परिवर्तन की जो लड़ाई जेपी ने शुरू की थी ,उसे फिर से बिहार से दुहराने की कोशिश हो रही है.लेकिन फर्क इतना भर है कि जिस व्यवस्था के खिलाफ जेपी ने आन्दोलन खड़ा किया, उस व्यवस्था से आम जनता खुद आजीज आ चुकी थी.इमरजेंसी से त्रस्त  जनता ने जेपी का का साथ दिया और वो कांग्रेस को उखाड़ फेंकने में सफल रहे.लेकिन नई व्यवस्था अस्थाई साबित हुई.लेकिन बिहार से इसबार व्यवस्था परिवर्तन की जो लड़ाई शुरू हो रही है, वह बिहार के लिए बिहार से शुरू हो रही है.यानी बिहार में सत्ता और व्यवस्था परिवर्तन के लिए शुरू हो रही है.लेकिन न तो इमरजेंसी वाला माहौल है और ना सत्ता के खिलाफ आन्दोलन खड़ा कर देनेवाला आक्रोश है.

 

बिहार में सत्ता के साथ साथ व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई की शुरुवात देश के जानेमाने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर कर चुके हैं.पिछले दो साल से वो जन-सुराज अभियान के तहत बिहार में पैदल यात्रा कर रहे हैं.जाति-मजहब के नाम पर बटे बिहारियों को समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि इससे उनका और उनके बिहार का कितना नुकशान हो रहा है.वो लोगों को समझा रहे हैं कि बिहार के नेताओं को बिहार या फिर बिहार के लोगों की चिंता नहीं है.वो समाज को बांटकर सत्ता पर काबिज होना चाहते हैं या फिर काबिज हैं.उनकी चिंता राज्य में नीति के राज्य की स्थापना नहीं बल्कि वो राज पर काबिज रहने की राजनीति कर रहे हैं.

 

वो बिहार के लोगों को समझा रहे हैं कि बिहार के नेताओं को किसी जाति-मजहब से कुछ लेनादेना नहीं है.उन्हें केवल सत्ता में बने रहने या फिर अपने परिवार और बच्चों की चिंता है.वो लोगों को समझा रहे हैं –कबतक आप किसी नेता और उसके परिवार के लिए वोट देते रहेगें.आपका जीवन तो तभी बदलेगा जब आप अपने बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखकर वोट देगें.प्रशांत किशोर समझाते हैं –लालू यादव को यादवों की चिंता नहीं है, उन्हें अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंता है.नीतीश कुमार को बिहार की नहीं बल्कि अपनी कुर्सी की चिंता है.अगर वाकई आम लोग अपने और अपने बच्चों के जीवन में बदलाव लाना चाहते हैं तो उन्हें अपने ऐसे लोगों को चुनना होगा जो उनकी फ़िक्र करें.

 

शुरू में तो प्रशांत किशोर के जन-सुराज अभियान को राजनीतिक दलों ने गंभीरता से नहीं लिया.लेकिन इस अभियान का जो असर बिहार में दिखने लगा है, उसने स्थापित राजनीतिक दलों के नेताओं की नींद उड़ा दी है.प्रशांत किशोर का जन सुराज अभियान 2 अक्टूबर को राजनीतिक दल का रूप लेनेवाला है.लेकिन उसके पहले पटना के बापू सभागार में जन-सुराज के आयोजित कार्यक्रमों में जिस तरह से लोग उमड़ रहे हैं, प्रशांत किशोर पर भरोसा जाता रहे हैं ,बिहार में सत्ता के खिलाफ एक जन-आन्दोलन खड़ा होने का संकेत मिल रहा है.बीजेपी को छोड़कर अभीतक किसी राजनीतिक दल ने बाप्पो सभागर में कार्यक्रम करने की हिम्मत नहीं दिखाई है.लेकिन प्रशांत किशोर अपना हर कार्यक्रम उसी में कर रहे हैं.सबसे ख़ास बात उनके कार्यक्रमों में जन-सैलाब उमड़ रहा है.प्रशांत किशोर के इस दावे को बल मिल रहा है कि पार्टी के स्थापना दिवस के दिन एक करोड़ से ज्यादा लोग जन-सुराज की सदस्यता लेगें.

 

अगर वाकई प्रशांत किशोर जन-सुराज से पहले झटके में ही एक करोड़ लोगों को जोड़ने में कामयाब होते हैं तो वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था की चूलें हिल जायेगीं.सबसे ख़ास बात-प्रशांत किशोर जाति-मजहब की दिवार तोड़ने की बात कर रहे हैं लेकिन साथ ही साथ बिहार के राजतीय समीकरण को भी नजर-अंदाज नहीं कर रहे हैं.वो जिसकी जीतनी आबादी ,उसकी उतनी हिस्सेदारी की बात कर रहे हैं.उनका ध्यान अति-पिछड़ा, पिछड़ा और अल्पसंख्यक समाज पर ज्यादा है.पार्टी का पहला प्रदेश अध्यक्ष भी वो दलित को बनाने जा रहे हैं.संगठन के महत्वपूर्ण पदों पर अति-पिछड़ा और पेछ्दा समाज के लोगों को जगह देने की रणनीति अपना रहे हैं.उनकी यह राजनीतिक सोंच कम करती हुई दिखाई दे रही है.हर जाति के युवा-बुजुर्ग और पढ़े लिखे लोग उनके साथ तेजी से जुड़ रहे हैं.

 

अगर वाकई प्रशांत किशोर सफल हो जाते हैं तो वो बिहार के दुसरे  जेपी हो जायेगें. जननायक जेपी को तो अनुकूल माहौल मिला था लेकिन प्रशांत किशोर तो अपनी मेहनत और रणनीति के जरिये माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं.उनको चुनौती देनेवाले नीतीश कुमार अपने जीवन का आखिरी राजनीतिक पारी खेल रहे हैं. तेजस्वी यादव की चुनौती ये है कि उनके सत्ता में आने पर लोग लालू-राबड़ी के पुराने राज के लौट आने को लेकर सशंकित हैं.ये दोनों परिस्थितियां प्रशांत किशोर के लिए अनुकूल हैं.प्रशांत किशोर कितनी सीटें जीतेगें, किसी को ठीक ठीक अभी अंदाजा नहीं लेकिन बिहार की राजनीति में अगले चुनाव में वो सबके लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं, इसको लेकर किसी को शक नहीं.लेकिन प्रशांत किशोर तो जेपी की बराबरी तभी कर पायेगें ,जब वो बिहार में सत्ता और व्यवस्था परिवर्तन करने में कामयाब होगें.

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