सिटी पोस्ट लाइव :जेडीयू नेता और केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने मुसलमानों को लेकर जो बयान दिया है या उनसे पहले सीतामढ़ी के सांसद देवेश चंद्र ठाकुर ने जो लोकसभा चुनाव के बाद कहा था कि मुसलमानों और यादवों का वो काम नहीं करेगें , उससे जेडीयू की नई राजनीतिक धारा का अंदाज लगता है. दोनों ने बयान सार्वजनिक तौर पर दिया है लेकिन नीतीश कुमार खामोश हैं.इससे यही लगता है कि जेडीयू भी आने वाले समय में बीजेपी के हिन्दुत्व की लाइन पर ही अगला चुनाव लडेगी. वक्फ बोर्ड संशोधन बिल पर जेडीयू का अब तक जैसा रुख रहा है, उससे भी यही संकेत मिलता है.
उपचुनाव में आरजेडी अपना सबसे मजबूत किला नहीं बचा सकी. सहयोगी सीपीआई (एमएल) की तरारी सीट बचाने में भी आरजेडी मददगार साबित नहीं हुआ.रामगढ़ में आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह अपने बेटे हार गये तो बेलागंज में राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की तमाम कोशिश के वावजूद माय समीकरण काम नहीं आ सका.आरजेडी का पारंपरिक मुस्लिम-यादव (एम-वाई) समीकरण तो टुटा ही साथ ही तेजस्वी का एटूजेड का फार्मूला भी काम नहीं आया.इससे आरजेडी की चिंता बढ़ गई है.
पार्टी के भीतर भी अब माय-बाप जैसे समीकरण के खिलाफ आवाज उठने लगी है. रामगढ़ में अपने बेटे को नहीं जिता पाने वाले जगदानंद सिंह को अध्यक्ष पद से हटाने की मांग भी होने लगी है. आरजेडी के पूर्व एमएलसी आजाद गांधी तो आश्चर्य जताते है कि जगदानंद सिंह ने अभी तक प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा क्यों नहीं दिया है.तेजस्वी यादव पर इस बात का दबाव बन रहा है कि अब वे तालमेल की राजनीति से परहेज करें. ऐसी स्थिति में अनुमान लगाया जा रहा है कि तेजस्वी यादव यूपी के पूर्व सीएम और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव की पीडीए (पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक) की तरह कोई नया समीकरण बना सकते हैं. लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने इसी कंबिनेशन के सहारे यूपी में कामयाबी हासिल की थी. यानी तेजस्वी यादव की राजनीतिक धारा अब पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यकों को साथ लेकर चलने की हो सकती है.
लोकसभा चुनाव में आरजेडी के कुल 23 उम्मीदवारों में सिर्फ दो ही सवर्ण उम्मीदवार थे. उनमें एक जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह भी थे, जो चुनाव जीत गए. आरजेडी के प्रति सवर्णों की नाराजगी भी रही है. खासकर लालू यादव के राबाल साफ करो आह्वान के साथ ही सवर्णों ने आरजेडी से किनारा कर लिया था. फिर भी जगदानंद सिंह और अनंत सिंह जैसे कुछ सवर्ण नेता आरजेडी के साथ खड़े थे.तेजस्वी अगर पार्टी के पिछड़े-अति पिछड़े नेताओं की सलाह मान लेते हैं तो उन्हें सवर्ण वोटों का मोह त्यागना पड़ेगा. इसके लिए पार्टी में तेजस्वी के करीबी नेताओं का जोर भी है. अगर जगदानंद सिंह से आरजेडी ने इस्तीफा ले लिया तो यह साफ हो जाएगा कि पार्टी नए समीकरण पर काम कर रही है. इस नए समीकरण में तब पिछड़े-अति पिछड़ों के अलावा मुस्लिम और दलित ही रह पाएंगे, जो अखिलेश यादव के पीडीए का कंसेप्ट है.
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