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ना-ना के बहाने नीतीश कुमार ठोक रहे दावा.

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सिटी पोस्ट लाइव :30 अगस्त और  1 सितंबर का दिनI.N.D.I.A गठबंधन के लिए बेहद ख़ास है. 31अगस्त और 1 सितंबर को मुंबई में विपक्ष की बैठक होनी है. इस बैठक से पहले विपक्षी पार्टियों का जुटान पटना और बेंगलुरु में हो चुका है. इन दोनों बैठकों में यही चर्चा रही कि सीएम नीतीश कुमार को संयोजक बनाया जा सकता है, लेकिन अब तक यह नहीं हो सका है. बैठक से पहले  नीतीश कुमार ने साफ कर दिया है कि उनको  कुछ नहीं बनना है. इस बयान के बाद मुंबई में I.N.D.I.A की बैठक से पहले नीतीश कुमार चर्चा में हैं.

नीतीश कुमार का यह बयान बहुत हल्का बयान नहीं है. सियासी गलियारों में चर्चा है कि नीतीश कुमार ने यह बयान RJD  सुप्रीमो लालू प्रसाद तक अपना संदेश पहुंचाने के लिए दिया है.लालू यादव के बयान के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को यह लग गया है कि I.N.D.I.A. गठबंधन के अंदर एक संयोजक नहीं होंगे. नीतीश कुमार ने संयोजक पद को नकार कर लालू प्रसाद को यह मैसेज दिया है कि संयोजक नहीं बनाया जाता है तो कोई दिक्कत नहीं. वे 2025 तक सीएम बने रहेंगे. नीतीश कुमार को मालूम है कि लालू प्रसाद की चाहत क्या है? लालू प्रसाद चाहते हैं कि नीतीश कुमार 2025 चुनाव से पहले तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपें. लालू प्रसाद की चाहत तभी पूरी होगी, जब नीतीश को राष्ट्रीय संयोजक का पद मिले, ताकि पीएम पद के लिए भविष्य की सीढ़ी तैयार हो जाए.

नीतीश कुमार और लालू प्रसाद के बीच अंदरुनी खींचतान भी चलती रहती है. दोनों की अपनी-अपनी महत्वाकांक्षा है. यह कांग्रेस को भी मालूम है.मुंबई में होने वाली बैठक से पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी दिल्ली स्थित मीसा भारती के आवास पहुंचे, जहां लालू प्रसाद से मुलाकात की. लालू प्रसाद ने गर्मजोशी से राहुल का स्वागत किया और आगामी रणनीति पर चर्चा की. हाल के दिनों में लालू प्रसाद ने बयान दिया कि चार राज्यों पर एक संयोजक बनाए जाएंगे. यह ऐसा फॉर्मूला है, जो नीतीश कुमार को I.N.D.I.A. गठबंधन के राष्ट्रीय संयोजक बनने से रोकता है.

कांग्रेस जितना अधिक लालू प्रसाद पर भरोसा करती है, उतना नीतीश कुमार पर नहीं. इसकी वजह है कि लालू प्रसाद बीजेपी के साथ नहीं जा सकते हैं, जबकि नीतीश कुमार बीजेपी के साथ आते-जाते रहे हैं.राजनीतिक पंडितों का मानना है कि उनके गठबंधन के सहयोगी भी नहीं कह रहे कि नीतीश को संयोजक बनना चाहिए.इसलिए  ना… ना के बहाने संयोजक पद पर सीएम नीतीश कुमार दावा ठोंक रहे हैं.  नीतीश कुमार कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं. 2014 चुनाव में हार हुई तो नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे दिया. जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिए, लेकिन छह महीना भी बर्दाश्त नहीं कर पाए. खुद मुख्यमंत्री बन गए. 2015 में लालू प्रसाद के साथ गए और कहा कि मिट्टी में मिल जाएंगे बीजेपी के साथ नहीं जाएंगे.

2017 में बीजेपी के साथ चले गए. फिर कहा कि लालू प्रसाद के साथ नहीं जाएंगे. अभी लालू प्रसाद के साथ हैं. 2020 में कहा कि भाजपा बड़ी पार्टी है इसलिए मैं मुख्यमंत्री नहीं बनूंगा, लेकिन, मुख्यमंत्री बन गए. राजनीतिक पंडितों के अनुसार नीतीश कुमार गठबंधन में संयोजक का काम कर रहे हैं और कह रहे हैं कि नहीं बनना है संयोजक. यह उनकी रणनीति का हिस्सा है.नीतीश कुमार के करीबी रहे और पूर्व एमएलसी प्रेम कुमार मणि कहते हैं कि नीतीश कुमार की राजनीति बहुत ढुलमुल रही है. कभी लालू हटाओ, कभी लालू के साथ, कभी मोदी जी की जय, कभी पीएम का विरोध. ऐसे व्यक्तित्व वाले नेता को कौन संयोजक बनाएगा. बिहार में महागठबंधन के अंदर भी बहुत असहज स्थिति है. कम विधायक होने के बावजूद नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने हुए हैं और अधिक विधायकों वाले तेजस्वी उपमुख्यमंत्री. यह लोकतंत्र की प्रकृति के विपरीत है.

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