टाडा बंदियों की रिहाई लिए माले करेगा आंदोलन.

City Post Live

सिटी पोस्ट लाइव : पूर्व सांसद बाहुबली नेता आनंद मोहन सहित 27 कैदियों को रिहा करने के बाद बिहार में टाडा बंदियों की रिहाई की मांग तेज हो गई है. महागठबंधन में शामिल पार्टी माले की मांग पर जब कोई कार्रवाई नहीं हुई तो अब माले ने इसको लेकर आंदोलन करने का बड़ा फैसला लिया है.भाकपा माले के राज्य सचिव कुणाल ने टाडाबंदियों की रिहाई नहीं किए जाने पर गुरुवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखा है .अपनी इस मांग पर गंभीरतापूर्वक विचार करने की मांग की है.

राज्य सचिव कुणाल और फुलवारी शरीफ से माले विधायक गोपाल रविदास ने कहा है कि कैदियों की रिहाई में बरती गई अपारदर्शिता के खिलाफ 22 सालों से जेल में बंद सभी टाडाबंदियों की रिहाई की मांग पर आज  28 अप्रैल को गांधी मैदान में गांधी मूर्ति के समक्ष भाकपा-माले के विधायक एक दिन का धरना देगी और अपना विरोध दर्ज करेगी. कुणाल ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कहा है कि बिहार सरकार ने हाल ही में 14 वर्ष से अधिक की सजा काट चुके 27 कैदियों की रिहाई का आदेश जारी किया, लेकिन यह रिहाई सिर्फ चुनिंदा लोगों की हुई है, जिसके कारण आम जनमानस में कई प्रकार के संदेह उत्पन्न हो रहे हैं.

उन्होंने कहा है कि हमारी पार्टी के विधायकों ने अरवल के भदासी कांड के टाडाबंदियों की रिहाई के सवाल पर विगत दिनों मुख्यमंत्री से दो-दो बार मुलाकात की. लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं दिख रही.1988 को हुए भदासी कांड की दुर्भाग्यपूर्ण घटना में 14 निर्दोष लोगों को फांसी की सजा दी गई थी और उनके ऊपर जनविरोधी टाडा ऐक्ट उस वक्त लगाया गया जब वह पूरे देश में निरस्त हो चुका था. 2003 में इन सभी को आजीवन कारावास की सजा भी सुना दी गई.14 टाडाबंदियों में से अब तक 6 की मौत जेल में ही हो चुकी है.

एक टाडाबंदी त्रिभुवन शर्मा को 2020 में पटना उच्च न्यायालय के आदेश से रिहा किया जा चुका है, लेकिन शेष 6 टाडाबंदी जगदीश यादव, चुरामन भगत, अरविंद चौधरी, अजित साव, श्याम साव और लक्ष्मण साव अब भी जेल में ही हैं. इन टाडाबंदियों ने 22 साल से अधिक की सजा काट ली है. इनकी उम्र भी 80 वर्ष के आसपास हो गई है. सबके सब बूढ़े व बीमार हैं और इसकी प्रबल संभावना है कि उसमें कुछ और की मौत हो जाए। छह में तीन फिलहाल हॉस्पीटल में भर्ती हैं.

माले का कहना है कि कानून सब के लिए बराबर होना चाहिए. इसमें राजनीति ठीक नहीं. 1988 में अवरल में भदासी कांड हुआ था. विवाद तालाब पर कब्जे को लेकर था. तालाब में पानीफल सिंघाड़ा की खेती होती थी जिस तालाब पर सामंती लोगों का कब्जा था. इसको लेकर जुलूस में पुलिस का प्रतिवाद किया गया. पुलिस ने फायरिंग की और पुलिस फायरिंग में तीन लोगों की मौत हो गई थी. एक दारोगा की इसमें मौत हो गई थी.

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