सिटी पोस्ट लाइव : प्रशांत किशोर ने सत्ता में आने पर बिहार में शराबबंदी कानून ख़त्म करने का ऐलान किया है. उन्होंने शराब बिक्री से राज्य को मिलनेवाले टैक्स के पैसे से शिक्षा व्यवस्था को सुधारने का दावा किया है. एनडीए समेत अन्य दल शराबबंदी का विरोध करने की हिम्मत नहीं दिखा सके हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्या शराब पर बैन हटाने का फैसला बिहार की राजनीति में गैम चेंजर साबित हो पाएगा?
प्रशांत किशोर का दावा है कि शराबबंदी से बिहार को हर साल 20,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है. ऐसे में वह शराब से बैन हटाकर उससे मिलने वाले रुपयों को उपयोग शिक्षा व्यवस्था पर खर्च करेंगे. पार्टी लॉन्चिंग के दौरान प्रशांत किशोर ने कहा था कि “हमें राज्य में शिक्षा में सुधार करने के लिए 4 लाख करोड़ रुपये से अधिक की आवश्यकता होगी. हम शराब बंदी हटाकर पैसे जुटाएंगे, जो सालाना 20,000 करोड़ रुपये है. मैं दोहराता हूं कि एक बार जन सुराज सत्ता में आ जाती है, तो शराब पर प्रतिबंध को एक घंटे के भीतर हटा दिया जाएगा.
गौरतलब है कि शराबबंदी ने ग्रामीण इलाकों में महिलाओं के बीच नीतीश कुमार की लोकप्रियता को बढ़ाने में मदद की है.. मुख्यधारा की किसी भी पार्टी ने इसके खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई. बिहार में साल 2016 में शराब को बैन किया गया था. जिससे कि प्रदेश में शराब से संबंधित समस्याओं से निपटा जा सकते. यह प्रदेश की महिलाओं से नीतीश कुमार का चुनावी वादा भी था. लेकिन ये भी उतना ही सच है कि शराबबंदी कानून को जमीन पर सरकार लागू नहीं कर पाई है.शराबबंदी के बावजूद, बिहार में अवैध शराब का कारोबार फल फुल रहा है. जहरीली शराब पीने की वजह से लोगों के मरने का सिलसिला जारी है.
जाहिर है शराबबंदी कानून ख़त्म करने से बिहार में कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा.अभी चोरी चुप्पे लोग ज्यादा दाम पर शराब खरीदकर पी रहे हैं. शराबबंदी ख़त्म होने के बाद लोगों को सस्ती शराब मिल पायेगी .शराब की बिक्री से हजारों करोड़ रुपये का जो राजस्व आएगा, उसका उपयोग विकास कार्यों पर किया जा सकेगा.वैसे भी शराबंदी से ज्यादा परेशान गरीब लोग ही हैं.सबसे ज्यादा पिछड़ी और अति-पिछड़ी जाति के लोग ही शराबबंदी की वजह से जेल में हैं.अमीर लोग तो आज भी घर में बैठकर शराब पी रहे हैं.
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