सिटी पोस्ट लाइव : कांग्रेस ने विपक्षी एकता में जुटे नीतीश कुमार को ही झटका दे दिया है.नीतीश कुमार ने भी गेंद कांग्रेस के पाले में फेंक चुप्पी साध ली है.उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कमान संभाल ली है.तेजस्वी यादव और ललन सिंह ने साझी प्रेस कॉन्फ्रेंस में बैठक टलने की जानकारी दी. आखिर ऐसा क्या हो गया कि विपक्षी एकता के लिए ऐड़ी छोटी का जोर लगाने वाले नीतीश ने अचानक मौन साध लिया. बैठक टलने की जानकारी भी उन्होंने आधिकारिक रूप से तब दी, जब पूरी दुनिया को इसकी खबर हो चुकी थी. बैठक की नई तारीख बताने के लिए उन्होंने तेजस्वी और अपनी पार्टी जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह को आगे क्यों किया किया ?
आरजेडी के भरोसेमंद सूत्र बताते हैं कि नीतीश कुमार को जब यह सूचना मिली कि 12 जून की बैठक में राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे नहीं आएंगे तो उन्हें जोर का झटका लगा. उनको तब भी ऐसा ही झटका लगा था, जब महागठबंधन का नेता बन कर बिहार की सत्ता संभालते ही वे लालू यादव के साथ पिछले साल सोनिया से मिलने दिल्ली गए थे. सोनिया से मुलाकात की न कोई तस्वीर जारी हुई और न बातचीत का ब्यौरा ही नीतीश, लालू या सोनिया गांधी की ओर से दिया गया. उसके बाद से नीतीश ने करीब सात-आठ महीने तक चुप्पी साध ली थी. कांग्रेस ने 12 जून की बैठक में राहुल या खरगे के शामिल होने से इनकार कर दिया तो विपक्षी एकता के प्रयास में जुटे नीतीश के लिए यह अब तक का सबसे बड़ा झटका लगा.
फिर शुरू हुई लालू यादव की इंट्री,लालू यादव ने सोनिया गांधी से फोन पर बात की तब जाकर 23 जून की तारीख तय की गई, जिसमें खरगे और राहुल के भाग लेने का कांग्रेस ने आश्वासन दिया है.यही वजह है कि तेजस्वी ही अब नीतीश कुमार से अधिक विपक्षी एकता की बात करने लगे हैं.अब सवाल उठता है कि बिहार में सात दलों का महागठबंधन पहले से है. नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार भी ठीक ढंग से चल रही है. नीतीश कुमार ने तो अब पीएम बनने से भी इनकार कर दिया है. ऐसी स्थिति में आरजेडी को विपक्षी एकता की हड़बड़ी क्यों है ? यह बात नीतीश कुमार भी बेहतर समझते हैं कि आरजेडी उनको किनारे लगाने के लिए बेचैन है. आरजेडी इस मौके के इंतजार में है कि नीतीश राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकता बनाने के लिए जितनी जल्दी हो बिहार छोड़ें.
अपनी ओर से तो नीतीश कुमार ने आरजेडी को पहले ही आश्वस्त कर दिया है कि 2025 का चुनाव तेजस्वी के नेतृत्व में ही महागठबंधन लड़ेगा. अब लगता है कि आरजेडी इतना लंबा इंतजार करने के मूड में नहीं है.आरजेडी में विधायक सुधाकर सिंह हल्ला ब्रिगेड के अगुआ हैं. उनका कहना है कि बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं. यानी देश की कुल सीटों में 7-8 प्रतिशत. बिहार में नीतीश कुमार अकेले देश की दिशा तय नहीं कर सकते. इसके लिए कांग्रेस को साथ लेना ही पड़ेगा. कम से कम 50 प्रतिशत हिस्सेदारी वाले दलों के नेताओं को लेकर ही विपक्षी एकता की बात की जा सकती है. ममता बनर्जी की सलाह पर नीतीश ने बैठक का स्थान और तारीख तय किए थे. कांग्रेस को नीतीश ने बताया था कि वह चाहे तो उसके लिए विपक्षी दलों को वे एकजुट कर सकते हैं. कांग्रेस से हमेशा अनबन रखने वाली टीएमसी नेता ममता बनर्जी और आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल को उन्होंने राजी भी कर लिया था. पर, कांग्रेस के एक इनकार से उनकी सारी तैयारी धरी रह गई.
सच यह है कि कांग्रेस विपक्ष की फिलवक्त बड़ी पार्टी है. चार राज्यों में उसकी सरकार है. तीन राज्यों में वह सरकार में साझेदार है. क्षेत्रीय दलों के डिक्टेशन पर चलना उसकी गरिमा के अनुकूल नहीं है. ममता बनर्जी ने कांग्रेस का गुरूर तोड़ने के लिए ही नीतीश को विपक्षी बैठक पटना में बुलाने की सलाह दी थी. कांग्रेस ने बैठक में खरगे-राहुल के शामिल होने में परेशानी बताकर बैठक को खटाई में डाल दिया.बकौल नीतीश कुमार, बैठक में पार्टी प्रमुखों के भाग न लेने पर उसका कोई महत्व ही नहीं रह जाता. उन्होंने यह भी कहा था कि जब वे लोग खाली होंगे और जहां चाहेंगे, वहीं बैठक होगी.
नीतीश कुमार जिन दिनों विपक्षी एकता को लेकर चुप बैठे हुए थे, तेजस्वी यादव घूम-घूम कर विपक्षी एकता की जमीन तैयार करने में लगे थे. तेजस्वी एमके स्टालिन के जन्मदिन समारोह में शामिल होने चेन्नई गए. उनकी दिल्ली की बैठक में शामिल हुए. अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन से संपर्क बनाए रखा. उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे तो उनके मित्र ही हैं. तेलंगाना के सीएम केसी राव से भी उन्होंने नजदीकी बनाए रखी. नीतीश जब दूसरे राज्यों के सीएम से मिलने यात्रा पर जाते हैं तो तेजस्वी भी साथ रहते हैं. अब देखना है कि नई तारीख पर विपक्षी एकता की बैठक कितना कामयाब रहती है. केसी राव और नवीन पटनायक ने बैठक में आने से मना कर दिया है. कांग्रेस के नेताओं पर ही बैठक का सारा दारोमदार है.
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