सिटी पोस्ट लाइव : “बिहार में कुशवाहा वोटर भले ही क़रीब 4.2% हैं, लेकिन बिहार की राजनीति के सेंटर स्टेज में बने हुए हैं.दरअसल, कुशवाहा संगठित वोट बैंक है और राजनीतिक रूप से सजग और महत्वाकांक्षी भी है. कुशवाहा वोटरों ने हर पार्टी में अपनी जाति के उम्मीदवार को वोट दिया है. यानी वो किसी पार्टी से बंधे हुए नहीं, बल्कि अपनी जाति को राजनीतिक तौर पर आगे बढ़ाने की कोशिश में दिखते हैं.यहीं वजह है कि सभी दलों की नजर आज कुशवाहा वोटर पर है.
कुर्मी की आबादी नालंदा, भागलपुर और पटना में है, लेकिन कोइरी (कुशवाहा) वोटर राज्य में बड़े इलाक़े में फैले हुए हैं, ये वोटर राज्य की कई सीटों पर हार जीत का फ़ैसला कर सकते हैं.चुनावी समीकरणों के लिहाज से भी बात करें तो राज्य में यादव आबादी क़रीब 14 फ़ीसदी है.कुशवाहा 4.2% हैं और मुस्लिम 16 फीसदी के आसपास हैं.लेकिन लोक सभा चुनाव में एनडीए और इंडिया गठबंधन ने मिलाकर 16 यादवों और 11 कोइरी को टिकट दिया है जबकि दोनों समुदायों की आबादी में बड़ा अंतर है.सबसे ज्यादा आबादी होने के वावजूद मुस्लिम समाज के चार नेताओं को ही महागठबंधन में टिकेट मिला.
कुशवाहा वोटरों के सियासी महत्त्व का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोक सभा चुनाव हार जाने के बाद भी बीजेपी ने उपेन्द्र कुशवाहा को राज्य सभा भेंजने का फैसला लिया है.कुशवाहा समाज के नेता सम्राट चौधरी पहले से ही बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के साथ साथ राज्य के उप-मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हैं.जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा भी इसी समाज से आते हैं. जेडीयू ने कुशवाहा समुदाय से आने वाले भगवान सिंह कुशवाहा को बिहार विधान परिषद का उम्मीदवार बनाया है.आरजेडी ने भी अभय कुशवाहा को ही संसदीय दल का नेता बनाया है.बिहार में कुशवाहा वोटरों की आबादी ओबीसी वर्ग में यादवों के बाद सबसे ज़्यादा है और वो किसी दल के प्रति समर्पित नहीं हैं. इसलिए हर पार्टी कुशवाहा वोटरों को रिझाने की कोशिश में लगी हुई है.”
माना जाता है कि बिहार में ‘एनडीए’ और ‘इंडिया’ दोनों ही गठबंधनों के बीच अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में बहुत ही क़रीबी मुक़ाबला हो सकता है.राज्य में साल 2020 के विधानसभा चुनावों में भी काफ़ी कड़ा मुक़ाबला हुआ था और उसमें आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी.चुनावों में वोटों का एक छोटा अंतर भी जीत और हार का फ़ैसला कर सकता है, इसलिए हर पार्टी कुशवाहा वोटरों को अपनी तरफ खींचने में लगी है.
बीजेपी को लगता है कि भूमिहार, ब्राह्मण और कायस्थ उनके अपने वोटर हैं, इसलिए लोकसभा चुनावों में भी इस वर्ग को बीजेपी ने बहुत महत्व नहीं दिया.जबकि जेडीयू कुर्मी वोटरों को अपना मानती है और आरजेडी यादव वोटरों को अपना मानती है.सबसे ख़राब हालत बिहार में मुसलमानों की है. राज्य में क़रीब 18 फ़ीसदी की आबादी होने के वावजूद बिहार की 40 लोकसभा सीटों में महज़ 4 सीट पर मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारा गया था.
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