लालू की चाल से बचे तो BJP के चक्रव्यूह में फंसे नीतीश.
CM की कुर्सी बचाने के फेर में बिहार सीएम नीतीश कुमार कर बैठे सबसे बड़ी राजनीतिक भूल!
सिटी पोस्ट लाइव : पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के इस दावे को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विधान सभा भंग करना चाहते थे.राजनितिक गलियारे में भी ये चर्चा है कि नीतीश कुमार बीजेपी के साथ इसी शर्त पर आना चाहते थे कि विधान सभा और लोक सभा का चुनाव एकसाथ हो.लेकिन बीजेपी इसके लिए तैयार नहीं हुई.बीजेपी ने नीतीश कुमार पर सबसे पहले RJD का साथ छोड़ने का दबाव बनाया फिर पहले सरकार बनायेगें फिर देखेगें आगे क्या करना है?
पहले नंबर की पार्टी से तीसरे नंबर की पार्टी बनने की कसक नीतीश कुमार के मन में है. यह दीगर बात थी कि तीसरे नंबर की पार्टी रहने पर भी बीजेपी ने उन्हें सीएम के रूप में प्रोजेक्ट किया. पर यह कहीं उपकार करने जैसा लगा. राजनीतिक गलियारों में भी बीजेपी के इस बड़प्पन की चर्चा हुई. पर जेडीयू के भीतर इस बात का मलाल था कि इस तीसरे नंबर की पार्टी बनाने की वजह भी अपरोक्ष रूप से भाजपा ही हैं. तर्क यह दिया जा रहा था कि मोदी के हनुमान चिराग पासवान ने जेडीयू की लंका में आग लगाई. यह बात तब और भी मुखर हुई कि जब जेडीयू ने भाजपा से नाता तोड़कर RJD के साथ महागठबंधन की सरकार बनाई. तब जेडीयू की तरफ से यहां तक की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह आरोप लगाया कि भाजपा जेडीयू को तोड़ना चाहती थी. इस कार्य हेतु आरसीपी लगे हुए थे.आज भी मुख्यमंत्री के करीबी नेताओं की जुबान पर ये बात आ ही जाती है.
राजनीतिक गलियारों में इस बात की भी चर्चा है कि विधायकों के नंबर गेम को लेकर नीतीश कुमार परेशान भी थे. वे चाहते भी थे कांग्रेस के विधायकों को तोड़कर जेडीयू विधाएक की संख्या बढ़े.इस कार्य के लिए कहा जाता है कि नीतीश कुमार ने अशोक चौधरी को यह जिम्मेदारी दी गई.लेकिन इसबार सफलता नहीं मिली.अशोक चौधरी ने जब JDU ज्वाइन किया तो उनके पीछे पीछे कांग्रेस के विधान परिषद के चारों विधान पार्षद भी जेडीयू में आ गये.तीसरे नंबर की पार्टी का दंश जेडीयू को महागठबंधन में भी झेलना पड़ा. विधायकों की कम संख्या को लेकर लोचा तब सामने आया जब लोकसभा सीट शेयरिंग पर बात होने लगी. तब महागठबंधन की स्टेयरिंग पर बैठे राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने लोकसभा सीटों के बंटवारे का आधार विधायकों की संख्या बना डाला. लेकिन तब जेडीयू ने इस समीकरण को नकार लोकसभा की सीटिंग सीट को आधार बनाया. नतीजा यह हुआ कि महागठबंधन का साथ छोड़ना पड़ा और एनडीए के साथ शामिल होना पड़ा.
अब जेडीयू का एनडीए में आने की वजह क्या रही होगी और समझौता के बिंदु क्या क्या रहे होंगे, यह तो कोई नहीं जानता. लेकिन राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा जरूर हुई कि नीतीश कुमार लोकसभा और राजसभा चुनाव एक साथ करना चाहते हैं. अब जेडीयू ऐसा क्यों चाहता था उसके कई कारण भी हैं. पहली जरूरत तो यह थी कि जेडीयू तीसरे नंबर की पार्टी से छुटकारा चाहती है.दूसरी बड़ी बात यह भी है कि नरेंद्र मोदी के चेहरे और राम लहर में चुनावी बेड़ा पार भी करना चाहती है. लोकसभा और विधान सभा साथ-साथ होने से 2029 तक नरेंद्र मोदी पीएम रहेंगे तो नीतीश कुमार भी अगले पांच सालों के लिए सीएम रहेंगे. एक बड़ा कारण यह भी है कि जेडीयू के भीतर यह अविश्वास भी है कि 2025 के विधान सभा तक हालात कितनी ठीक-ठाक रहेगी या नहीं. ऐसा इसलिए भी कि बिहार में सरकार तो बनी पर मंत्री वही बने जिसे बीजेपी ने चाहा. नीतीश कुमार की पसंद को दरकिनार किया गया.सुशील मोदी एक जमाने में बीजेपी के सबसे बड़े चेहरे हुआ करते थे.लेकिन आज हाशिये पर हैं.इसकी वजह भी उनकी नीतीश कुमार के साथ अच्छे सम्बन्ध ही थे.
लोकसभा के साथ विधान सभा का चुनाव होता है तो फायदा में नीतीश कुमार ही रहेंगे. ऐसा इसलिए कि बार-बार गठबंधन बदलने से नीतीश कुमार की इमेज पर प्रभाव पड़ा है. एक विश्वसनीय चेहरा नहीं रह गए. ऐसे में नरेंद्र मोदी के चेहरे और बीजेपी के सांगठनिक स्थितियों का लाभ लेकर जेडीयू अपनी स्थिति को बेहतर कर सकती है. लेकिन जेडीयू के अंदरखाने में क्या चल रहा है यह तो उसके रणनीतिकार ही जानते होंगे. पर भाजपा के रुख से तो लगता है कि लोकसभा और बिहार विधान सभा का चुनाव एक साथ तो नहीं होने जा रहा है.बीजेपी को भी पता है कि अगर ऐसा हुआ तो नीतीश विधान सभा की बराबर बराबर सीटों पर लड़ना चाहेगें.ऐसे में वो फिर से 70 से ज्यादा सीटें जीतकर 20 25 में अपना सीएम बनाने के बीजेपी के सपने पर पानी फेर सकते हैं.
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