सिटी पोस्ट लाइव : बिहार की चार सीटों के लिए हुए उप-चुनाव से न तो नीतीश सरकार की सेहत पर कोई फर्क पड़नेवाला है और ना ही तेजस्वी यादव की सरकार बननेवाली है.फिर फिर भी राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जीत हाशिल करने के लिए और आरजेडी सुप्रीमो ने अपनी सीटें बचाने के लिए अपना पूरा जोर लगा दिया. प्रचार के अंतिम दिन लालू प्रसाद यादव का चुनावी जंग में कूद पड़ना, राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है. कहा यह जा रहा है कि दोनों ही आखरी चुनावी जंग के सेमीफाइनल में एक दूसरे को परास्त करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं.आखिरी दिन बेलागंज विधानसभा के चुनावी मैदान में लालू यादव के उतरने का एक विशेष मतलब है. लगभग तीन दशक से बेला में जल रहे लालटेन को जेडीयू के तीर से खतरा दिखने लगा है. यहां की जीत लालू यादव की नजर में बेलागंज की जीत भर से नहीं है. बल्कि लालू यादव जानते हैं कि बेलागंज से हारने का मतलब है आरजेडी के एमवाई समीकरण का बिखर जाना. और लालू यादव इस संदेश के साथ आगामी विधानसभा चुनाव में नहीं जाना चाहते हैं.
बेलागंज के खतरे को भाप कर लालू यादव दल के तमाम मुस्लिम नेताओं के साथ मंचासिन हुए तो इसकी खास वजह है.इस बार बेलागंज में आरजेडी को बड़ी चुनौती मिली है. मुस्लिम-यादव मतों के विभाजन का खतरा मंडरा रहा था.लालू यादव के प्रचार में उतरने से स्थिति थोड़ी संभाली जरुर लेकिन माय समीकरण पहले की तरह सॉलिड नहीं रह पाया. कुछ यादव वोट भी बंटे और मुस्लिम वोट बैंक में बड़ी सेंधमारी हुई. मुस्लिम मत के हकदार के रूप में जनसुराज के मोहम्मद अमजद तो थे ही, उस पर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के उम्मीदवार जमीन अली खान भी मुस्लिम मतों पर दावा कर रहे हैं.लेकिन सबसे ज्यादा मुस्लिम वोट जन सुराज को मिले. इधर यादव जाति से आने वाली जेडीयू की उम्मीदवार मनोरमा देवी भी यादव मत में सेंधमारी करने में कामयाब रहीं. बेलागंज में एमवाई समीकरण को लालू यादव भी इसबार एकजुट नहीं रख पाए. बुधवार को हुए मतदान का परिणाम आने पर ही पता चलेगा कि लालू यादव अपने मिशन में कामयाब होते हैं या नहीं?
बेलागंज विधानसभा नीतीश कुमार के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि मनोरमा देवी जीत जाती हैं तो गया जिला में जेडीयू का खाता खुल जाएगा. गया जिले की 10 विधानसभा सीट में से 5 पर आरजेडी , दो पर बीजेपी और तीन सीट पर हम का कब्जा रहा है.लालू यादव नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को गया जिले से बाहर करने के लिए ही अंतिम समय में चुनावी जंग में उतरे थे.नीतीश कुमार बेलागंज से जीत का संदेश दे कर यह बताना चाह रहे हैं कि आरजेडी का एमवाई अपने गढ़ में ही बिखर गया है.इसीलिए एक रणनीति के तहत यादव जाति से नीतीश कुमार ने मनोरमा देवी को चुनावी जंग में उतारा.नीतीश कुमार का समीकरण यहां यह है कि वे यहां से जीत के साथ यह संदेश देना चाहते हैं कि दांगी, वैश्य और सवर्ण अभी भी एनडीए के साथ हैं.
अपरोक्ष रूप से ही सही पर राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रतिष्ठा रामगढ़ विधानसभा में भी दावं पर लग गई है. जिस तरह से लोकसभा चुनाव में कुशवाहा का एक बड़ा हिस्सा औरंगाबाद, आरा और बक्सर में महागठबंधन के खाते में चला गया था.रामगढ़ विधानसभा उप चुनाव में इसे बीजेपी की तरफ मोड़ना नीतीश कुमार की जिम्मेवारी बनती है. वैसे भी देखें तो रामगढ़ में आरजेडी को अपनी जीती हुई सीट बचानी है .बीजेपी को 2015 विधानसभा चुनाव का इतिहास दोहराना है. पर यह तभी संभव होगा जब कुशवाहा मत नीतीश कुमार के आग्रह पर जनसुराज के साथ नहीं बल्कि बीजेपी के साथ गया होगा.सच्चाई ये है कि बेलागंज में माय समीकरण को सबसे ज्यादा नुकशान जन सुराज ने पहुंचाया है .रामगढ़ में भी नीतीश कुमार को खतरा जन सुराज से ही है क्योंकि प्रशांत किशोर ने वहां से कुशवाहा उम्मीदवार उतारा था.अब 2025 में विधानसभा चुनाव ही होगा. एक तरह से कहा जाए तो यह लालू-नीतीश के लिए उप चुनाव सेमीफाइनल मैच था. इसके बाद दोनों नेता आखिरी जंग के लिए चुनावी मैदान में नजर आएंगे. बिहार में अगले साल अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होगा.लेकिन जन सुराज के उप चुनाव के प्रदर्शन से ही तय होगा कि अगले चुनाव में नीतीश का लव कुश समीकरण और लालू यादव यादव का माय समीकरण कितना काम करेगा.
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