सिटी पोस्ट लाइव : बिहार में जातीय जनगणना पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने अभी इनकार कर दिया है. अब इस मामले में 14 अगस्त को सुनवाई होगी.जातीय जनगणना से बिहार की सियासत में बड़ा बदलाव आ सकता है. वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, बिहार की जनसंख्या 10.38 करोड़ थी. इसमें 82.69% हिंदू और 16.87% आबादी मुस्लिम समुदाय की है. हिंदू जनसंख्या में 17% सवर्ण, 51% ओबीसी, 15.7% अनुसूचित जाति और करीब 1 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति है. एक आकलन के अनुसार, बिहार में 14.4% यादव समुदाय, कुशवाहा यानी कोइरी 6.4%, कुर्मी 4% हैं. सवर्णों में भूमिहार 4.7%, ब्राह्मण 5.7%, राजपूत 5.2% और कायस्थ 1.5% हैं.
17वीं बिहार विधानसभा की तस्वीर ये बताती है कि अभी राजनीति में पिछड़ों और अति पिछड़ों का वर्चस्व है. विधान सभा पहुंचने वाले सर्वाधिक 54 चेहरे यादव जाति के हैं, जबकि अन्य पिछड़ी जाति और अति पिछड़ी जातियों से सदन में आने वालों की संख्या 46 है.सामाजिक आधार पर वर्तमान विधानसभा में 40% से अधिक संख्या में पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों के सदस्य हैं. एनडीए से 14 यादव चुनाव जीते हैं , महागठबंधन से 40 यादव जीते हैं. हालांकि, पिछले चुनाव की तुलना में यह संख्या 7 कम है.
सवर्ण जातियों के प्रतिनिधियों की संख्या 64 है. इनमें एनडीए के 45 महागठबंधन के 17 और लोजपा और निर्दलीय से एक-एक है. इनमें राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण और कायस्थ शामिल हैं. मुस्लिम सदस्यों की संख्या 20 है, जिसमें 14 महागठबंधन से और 5 एआईएमआईएम एवं एक बसपा से जीते हैं. हालांकि, बसपा के जमा खान बाद में JDU में शामिल हो गए.39 दलित और महादलित सदस्य भी सदन में हैं. इनमें एनडीए के 22 और महागठबंधन के 17 सदस्य हैं, जबकि विधानसभा पहुंचने वाले वैश्य चेहरों की संख्या 20 है.
इन 20 चेहरों में से 14 एनडीए से हैं. बिहार विधानसभा में जातिवार स्थिति देखें तो कुल 54 यादव हैं. मुसलमानों की संख्या 20 है और सवर्णों की संख्या 64 है. पिछड़े और अति पिछड़ों की संख्या 45, वैश्य 20 और दलित समुदाय से 39 सदस्य हैं.जदयू के 43 प्रत्याशियों में 9 सवर्ण, 8 दलित, 6 यादव और पिछड़ा अति पिछड़ा समुदाय के 20 विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए थे. जबकि भाजपा के 74 प्रत्याशियों में यादव 7, भूमिहार 8, राजपूत 17, ब्राह्मण 5, कायस्थ 3, ईबीसी 4 और वैश्य 14 हैं. कुर्मी-कुशवाहा 6 और एससी-एसटी की संख्या 10 है. वहीं, जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा यानी हम से 3 दलित और 1 सवर्ण जीते हैं. विकासशील इंसान पार्टी के 1 यादव, 2 राजपूत और 1 दलित विधायक सदन में पहुंचे. हालांकि, ये सभी चारो बाद में भाजपा में शामिल हो गए. जबकि, लोजपा से एक सवर्ण जाति के प्रत्याशी जीतकर सदन पहुंचे थे जो जदयू में शामिल हो गए थे.
राजद से जीते 74 प्रत्याशियों में यादव 36, कुशवाहा 6, राजपूत 5, भूमिहार 1, ब्राह्मण 2, अति पिछड़ा 5, दलित 8 और मुस्लिम 9 जीते हैं. वहीं, कांग्रेस से जीते हुए उम्मीदवारों में राजपूत जाति के 2, भूमिहार 3, ब्राह्मण 3, दलित 4, यादव 1, वैश्य 1, मुस्लिम 4 और अनुसूचित जाति से 1 विधायक बने. भाकपा माले से कुशवाहा 4, यादव 2, दलित 3, मुस्लिम 1 और वैश्य 2 जीते. जबकि, सीपीएम से 1 कुशवाहा और 1 यादव जाति के विधायक बने. सीपीआई से 1 भूमिहार और 1 दलित विधायक बने. वहीं, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम से 5 मुस्लिम विधायक बने. बसपा के 1 विधायक भी मुस्लिम थे जो बाद में जदयू में शामिल हो गए, जबकि एक निर्दलीय भी जीते जो भूमिहार जाति से आते हैं.
बिहार के सांसदों में जातियों की हिस्सेदारी देखें तो अति पिछड़ा वर्ग-7, एससी वर्ग से 6, यादव-5, कुशवाहा 3, वैश्य-3, कुर्मी- कायस्थ 1-1, राजपूत 7, भूमिहार 3, ब्राह्णण-2 और मुस्लिम-2 सांसद बने हैं. बहरहाल, जाति जनगणना के शोर में इस ओर ध्यान देना आवश्यक है कि क्या जनसंख्या की भागीदारी के हिसाब से क्या प्रतिनिधित्व में उचित हिस्सेदारी मिल रही है?
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