सिटी पोस्ट लाइव : लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के सुप्रीमो अपनी पार्टी के पांच सांसदों के साथ मोदी सरकार के चेकमेट की भूमिका निभाते नजर आ रहे हैं. चिराग अब सवाल करते हैं और अपनी ही सरकार के फैसले का विरोध भी करते हैं. सवाल है कि क्या सचमुच सरकार में शामिल होकर चिराग का चरित्र बदल चुका है? 9 जून, 2024 को नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली तो पहली बार चिराग पासवान भी मंत्रिमंडल का हिस्सा बने. पीएम मोदी ने चिराग पासवान को कैबिनेट मंत्री बनाया. चिराग को खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई जो उनके दिवंगत पिता रामविलास पासवान संभाला करते थे.
ये बात किसी से छिपी नहीं है कि पिता रामविलास पासवान के निधन के बाद 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू का खेल बिगाड़ा था जो बीजेपी की सहयोगी थी. चिराग ने बीजेपी के एक भी कैंडिडेट के खिलाफ अपना उम्मीदवार नहीं उतारा और बेहिचक बताते रहे कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हनुमान हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी जेडीयू की सीटों में बट्टा लगने के लिए चिराग पासवान को जिम्मेदार ठहराया और बीजेपी से कड़ी शिकायत की. इस कारण बीजेपी चाहकर भी लंबे समय तक चिराग पासवान का साथ नहीं रह सकी. बावजूद इसके चिराग अपने स्टैंड पर कायम रहे और वक्त-वक्त पर खुद को मोदी का हनुमान बताते रहे.
2024 का लोकसभा चुनाव हुआ तो चिराग की एनडीए में वापसी हो गई. नीतीश भी ‘रात गई बात गई’ की तर्ज पर चुनाव में चिराग के दिए झटके को भूलकर आगे बढ़ गए और एनडीए के साथ ही चुनावी मोर्चा संभाला. अब नीतीश और चिराग, दोनों की पार्टी मोदी सरकार के हिस्सा हैं. चिराग की पार्टी 100% का स्ट्राइक रेट जारी रखते हुए सभी पांच उम्मीदवारों को लोकसभा भेजने में कामयाब रही. पार्टी के मुखिया होने के नाते चिराग खुद मोदी मंत्रिमंडल में शामिल हुए.
मोदी 3.0 सरकार के अभी तीन महीने ही पूरे किए कि चिराग ने तीन अहम फैसलों पर आपत्ति जता दी. मोदी सरकार ने वक्फ बोर्ड की असीमित शक्तियों में कटौती वाला विधेयक संसद की पहली बैठक में पेश किया तो चिराग मकर द्वार से बाहर आते वक्त संवाददाताओं से बोले- हमारी पार्टी चाहती है कि बिल को पहले संसदीय समिति के पास भेजा जाए. इससे पहले, उनकी सांसद शांभवी चौधरी ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर उंगली उठाई थी जिसमें देश की शीर्ष अदालत ने राज्यों को एससी-एसटी श्रेणी की जातियों में उपवर्गीकरण का अधिकार दिया था. फिर चिराग ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा कि उनकी पार्टी सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सहमत नहीं है, इसलिए अदालत में फैसले की समीक्षा के लिए याचिका दायर की जाएगी.
फिर बारी आई केंद्रीय सचिवालय में लेटर एंट्री से भर्तियों की तो चिराग पासवान ने खुलकर कहा कि उनकी पार्टी आरक्षण के बिना लेटरल एंट्री से भर्तियों के पक्ष में नहीं है. जेडीयू ने भी यही रुख अपनाया. दरअसल, संघ लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) ने कुल 45 पदों पर भर्ती के लिए 17 अगस्त को विज्ञापन जारी किया था. इसमें लेटरल एंट्री सिस्टम के तहत विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों से आवेदन मंगाए गए. कांग्रेस पार्टी समेत अन्य विपक्षी दलों ने इस भर्ती में आरक्षण प्रक्रिया का पालन नहीं करने का विरोध किया. लोकसभा चुनावों में आरक्षण के मुद्दे पर तगड़ा झटका खाई मोदी सरकार ने 20 अगस्त को विज्ञापन वापस लेने की चिट्ठी यूपीएससी चेयरमैन प्रीति सूदन को लिख दी. मोदी सरकार नहीं चाहती है कि विपक्ष के हाथों आरक्षण का मुद्दा सौंपा जाए.
चिराग को तो 2015 का बिहार विधानसभा चुनाव भी आरक्षण के मुद्दे पर सजग रहने को प्रेरित कर रहा होगा. तब संघ प्रमुख मोहन भागवत ने एक इंटरव्यू में आरक्षण पर पूछे गए सवाल पर सिर्फ इतना कहा था कि संविधान की भावना के मुताबिक अब वक्त आ गया है कि आरक्षण व्यवस्था की समीक्षा हो. विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था.संभवतः चिराग के हनुमान से लक्ष्मण बनने की प्रेरणा भी यही है- जातीय राजनीति, आरक्षण जैसे मुद्दों पर नो कंप्रोमाइज.
आखिर हनुमान चिराग के राम मोदी भी तो यही कर रहे हैं. तभी तो चिराग की आपत्तियों वाले तीनो मुद्दे उनके मन के मुताबिक सुलझ चुके हैं. वक्फ संशोधन विधेयक संसदीय समिती के पास जा चुकी है, सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मोदी सरकार की सफाई आ चुकी है कि संविधान की भावना का ख्याल रखते हुए एससी-एसटी श्रेणी में उपवर्गीकरण की व्यवस्था लागू नहीं होगी और बिना आरक्षण लेटरल एंट्री से भर्ती का विज्ञापन रद्द किया जाता है.
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