सिटी पोस्ट लाइव : महागठबंधन के मुकाबले के लिए बिहार में बीजेपी तमाम छोटे दलों को अपने साथ जोड़ने में जुटी है.जीतन राम मांझी साथ आ चुके हैं.उपेन्द्र कुशवाहा और मुकेश सहनी का साथ आना तय है लेकिन सबसे बड़ा पेंच चिराग पासवान को लेकर फंस गया है.दो धड़े में बंटी एलजेपी के बीच सीटों पर सामंजस्य बिठाने में मुश्किल आ रही है.चिराग पासवान ने कम से कम 6 सीटों की मांग की है जिसमे से एक सीट हाजीपुर भी शामिल है. राज्यसभा की एक सीट वे अतिरिक्त मांग रहे हैं. पारस हाजीपुर सीट को कतई छोड़ना नहीं चाहते और वो भी अपने सभी तीन सांसदों के लिए सीट मांग रहे हैं.
2019 के लोकसभा चुनाव में राजग में एलजेपी को छह सीटें मिली थीं और पासवान को बीजेपी ने राज्य सभा भेंज था.एलजेपी के सभी प्रत्याशी विजयी रहे थे.पार्टी में विभाजन के बाद पारस के साथ चार सांसद आ गए. चिराग अपने खेमे में अकेले सांसद रह गए.लेकिन चिराग पासवान ने मेहनत कर पार्टी को नए सिरे से खड़ा कर लिया .पार्टी का कैडर वोट उनके साथ खड़ा है.ऐसे में चिराग की अनदेखी बीजेपी नहीं कर सकती.पशुपति पारस पार्टी तोड़कर बीजेपी के साथ आये इसलिए उन्हें मझदार में छोड़ने से खराब संदेश जा सकता है.
भाजपा चिराग और पारस की राजनीतिक हैसियत उनके आधार वोट से नाप रही है. लेकिन पासवान की विरासत के दूसरे दावेदार पारस खुद को असली एलजेपी बता रहे हैं.भाजपा कतई नहीं चाहेगी कि चाचा-भतीजा अलग-अलग लड़ें और पासवान वोटों का बिखराव हो, क्योंकि भाजपा के लिए जितना उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी महत्वपूर्ण हैं, उतना ही पारस-चिराग भी.खगड़िया, जमुई और समस्तीपुर सीटें भी चिराग मांग रहे हैं जहाँ से पारस की पार्टी के सांसद हैं.चिराग भाजपा से जहानाबाद सीट मांग रहे हैं, ताकि वहां से पूर्व सांसद अरुण कुमार को उम्मीदवार बनाया जा सके. पार्टी के प्रधान महासचिव संजय पासवान लंबे अरसे से जमुई लोकसभा सीट के पार्टी प्रभारी हैं, उन्हें भी किसी सुरक्षित सीट से लड़ाने की बात है. वह सीट गोपालगंज हो सकती है.
रामविलास पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) की स्थापना 2003 में की थी. लोजपा पहली बार 2005 के फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में अकेले लड़ी थी, तब उसके 178 में से 29 उम्मीदवार जीते.उसे 12.62 प्रतिशत वोट मिला था. यह लोजपा का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है. उसी साल नवंबर के विधानसभा चुनाव में लोजपा ने 203 सीटों पर उम्मीदवारों को लड़ाया, लेकिन जीत सिर्फ 10 सीटों पर हुई.वोट प्रतिशत भी गिरकर 11.10 प्रतिशत पर आ गया. लोजपा 2010 का विधानसभा चुनाव राजद से मिलकर और 2015 का विधानसभा चुनाव भाजपा की साझेदारी में लड़ी.वोट क्रमश 6.74 प्रतिशत और 4. 83 प्रतिशत रहा. इस लिहाज से 2020 के चुनाव में अपने दम पर 5.66 प्रतिशत वोट हासिल करना चिराग की उपलब्धि कही जा सकती है.
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