सिटी पोस्ट लाइव : विपक्षी एकता को लेकर पटना में होनेवाली बैठक में बिहार महागठबंधन में शामिल 7 दलों के साथ साथ दुसरे 11 दल शामिल होगें.विपक्षी एकता की बैठक की तारीख तो तय हो गई है लेकिन जिन आठ दलों पर सारा दारोमदार है वो अलग अलग राग अलाप रहे हैं. सपा नेता अखिलेश यादव यूपी की कुल 80 में 80 लोकसभा सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं. आम आदमी पार्टी के महासचिव संदीप पांडेय अपने दम पर चुनाव लड़ने की बात पहले ही कर चुके हैं. शरद पवार की पार्टी एनसीपी के अंदर घमाशन मचा हुआ है. दक्षिण के राज्यों में केसी राव (KCR) ने विपक्षी एकता की मुहिम से दूरी ही बना ली है. ममता बनर्जी बंगाल में कांग्रेस को आंख दिखा रही हैं. रही सही कसर कांग्रेस पूरी कर रही है. तेजस्वी यादव और ललन सिंह ने साझे प्रेस कांफ्रेंस में कांग्रेस से मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी के बैठक में शामिल हने की घोषणा कर चुके हैं, लेकिन सच यह है कि कभी नीतीश तो कभी खरगे-राहुल को अभी लगातार फोन ही कर रहे हैं. लालू ने जब न्यौता देने के लिए खरगे को फोन किया तो उन्होंने बात ही पलट दी, यह कर- Happy Birth Day Lalu ji !
दरअसल अखिलेश के साथ परेशानी यह है कि पिछले लोकसभा चुनाव में मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से गठजोड़ कर वे देख चुके हैं कि फजीहत के सिवा कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है. शायद इसीलिए वे पार्टी की तैयारी में पीछे रहना नहीं चाहते हैं. विपक्षी दलों की बैठक में शामिल होने का अरविंद केजरीवाल ने भरोसा दिया है, लेकिन वे आ जाएं तब बात साफ होगी कि उनकी पार्टी अलग चुनाव लड़ेगी या साथ रहेगी. वैसे पंजाब और दिल्ली में जिस तरह केजरीवाल ने कांग्रेस के हाथ से सत्ता छीनी है, उसे देख कर यही लगता है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में बात नहीं बनेगी.
दक्षिण के राज्यों में तेलंगाना के सीएम और बीआरएस के नेता केसी राव ने विपक्षी एकता पर साफ चुप्पी साध ली है. जिस नीतीश कुमार के महागठबंधन का सीएम बनने पर केसीआर बधाई देने पटना पहुंचे थे, अब दोनों में संवाद भी नहीं हो रहा. केसी राव के लिए तेलंगाना में कांग्रेस पुरानी दुश्मन है तो बीजेपी नये दुश्मन के रूप में सिर उठा रही है. आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम चंद्रबाबू नायडू अगर बीजेपी से मिल गए तो तेलंगाना में केसीआर की मुश्किल बढ़ जाएगी. कर्नाटक में जेडीएस के संस्थापक पूर्व पीएम एचडी देवेगौड़ा के संकेत भी अच्छे नहीं. कर्नाटक में कांग्रेस से बुरी तरह हारने के बाद अब उन्हें बीजेपी में बुराई नहीं दिखती. वे तो अलल ऐलान कहते हैं कि कोई भी ऐसी पार्टी नहीं, जिसका कभी न कभी बीजेपी से रिश्ता न रहा हो.
बंगाल में ममता बनर्जी ने अब तक के अपने रुख से स्पष्ट कर दिया है कि विपक्षी एकता बन भी जाती है तो कांग्रेस को उनकी मर्जी से सीटें नहीं मिलेंगी. लोकसभा चुनाव के पहले तो उन्होंने कांग्रेस को ही खत्म करने का मन बना लिया है. कांग्रेस के इकलौते विधायक को तो उन्होंने तोड़ा ही है, उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस के एक समर्थक की हत्या भी कर दी है. नीतीश से मुलाकात के के बाद विपक्षी एकता का उन्होंने जो फार्मूला सुझाया था, उससे भी साफ है कि ममता के मन में कांग्रेस के प्रति कोई सहानुभूति नहीं है. उन्होंने कहा था कि जो दल जिस राज्य में मजबूत हैं, वहां सीट बंटवारे से लेकर चुनाव प्रचार तक वही करेगा. इससे पहले तो देश में कांग्रेस रहित विपक्ष की मुहिम चला चुकी हैं. यह अलग बात है कि उन्हें शरद पवार और उद्धव ठाकरे जैसे नेताओं ने पहले ही इस मामले में यह कह कर निराश कर दिया था कि बिना कांग्रेस देश में विपक्षी एकता की बात बेमानी है.
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