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अखिलेश प्रसाद के  एक ट्वीट से खड़ा हो गया सियासी तूफान.

महागठबंधन की मीटिंग से पहले बिहार में

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सिटी पोस्ट लाइव : बिहार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह के एक ट्वीट ने बिहार की सियासत में ऐसा बवाल खड़ा कर दिया है.उन्होंने अपने नेता  राहुल गांधी के जन्मदिन पर एक ट्वीट किया और उन्हें भावी प्रधानमंत्री बताया.उन्होंने  अपने नेता के लिए अच्छी सेहत की कामना की और उन्हें देश का अगला प्रधानमंत्री बताया. लेकिन इस ट्वीट के बाद ऐसा बवाल मचा कि अखिलेश सिंह को इस  ट्वीट को अपने टाइमलाइन से हटाना पड़ गया.

क्या कोई अलिखित सहमति हुई है कि कोई भी अपने खुद को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार न बताए? पिछले दिनों नीतीश कुमार और उनके सिपहसालारों ने मीडिया में इस बात को दोहराया कि नीतीश पीएम पद के उम्मीदवार नहीं हैं. यही वो बिहार है, जहां साल भर पहले जद(यू) के कार्यकर्ता नीतीश को अगला प्रधानमंत्री बताकर पार्टी काडर का मन बहलाया करते थे. भारत जोड़ो यात्रा के दौरान तो काँग्रेस ने राहुल गांधी को भावी प्रधानमंत्री” के तौर पर ही प्रचारित किया था. गठबंधन के नेता एक-एक शब्द तौल-तौल कर बोलने लगे. काँग्रेस कहाँ चुनाव लड़े, यह कौन तय करेगा?

क्षेत्रीय पार्टियां नहीं चाहती कि काँग्रेस उन राज्यों में चुनाव लड़े जहां क्षेत्रीय पार्टियां मजबूत हैं. मसलन आज के समय में बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सबसे बड़ी पार्टी है, तो काँग्रेस बिहार में चुनाव न लड़े.इस तरह की बात कुछ महीने पहले राजद नेता और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कही भी थी. तो क्या काँग्रेस बिहार में चुनाव न लड़े, जहां वो दशकों तक सत्तारूढ़ रही थी. तो क्या काँग्रेस पंजाब में चुनाव न लड़े, जहां वो कुछ पिछले वर्ष तक सत्ता में थी, जहां काँग्रेस मुख्य अभी भी विपक्षी दल की भूमिका में है. क्या काँग्रेस दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी के लिए मैदान खाली छोड़ दे? अरविंद केजरीवाल के कुछ मंत्रियों ने पिछले दिनों इसी आशय का बयान भी दिया था.

ममता बनर्जी चाहती हैं कि काँग्रेस बंगाल छोड़कर बात करे. कल को शरद पवार कह सकते हैं कि काँग्रेस महाराष्ट्र में चुनाव न लड़े जहां एनसीपी मजबूत है. बिहार बीजेपी के एक नेता चुटकी लेने वाले अंदाज़ में कहते हैं कि राहुल गांधी की स्थिति देवदास फिल्म ने शाहरुख खान जैसी हो गई है. अगर ऐसा चलता रहे तो महागठबंधन के लोग ही “काँग्रेस मुक्त भारत” का सपना पूरा कर देंगे. काँग्रेस को लोक सभा में क्या हाथ आएगा? भारत जैसे बहुविध राजनीतिक और सामाजिक संस्कृति वाले देश में 543 सीटों का बंटवारा काफी कठिन है.


दक्षिण में तेलंगाना, केरल, आंध्रा और तेलंगाना में क्षेत्रीय पार्टियां सत्ता में हैं, क्या काँग्रेस इन राज्यों मेन चुनाव न लड़े? भारत की गलाकाट राजनीतिक परिवेश में क्या ऐसा संभव लगता है? महागठबंधन के हिसाब से 474 सीटों पर विपक्ष अपना साझा उम्मीदवार उतारना चाहती है, कम से कम नीतीश कुमार का यही फॉर्मूला है. इस गणित के हिसाब से काँग्रेस के हिस्से में मात्र 244 सीटें रह जाएंगी. इन सीटों में से काँग्रेस कितनी सीटें जीत सकेंगी?

तब काँग्रेस कार्यकर्ताओं का क्या होगा? काँग्रेस मुख्यतया तीन-चार राज्यों तक सिमट गई है. राजस्थान, छत्तीसगढ़ और हिमाचल में काँग्रेस की सरकारें हैं. पिछले दिनों कर्नाटक में अपनी सरकार बनाने के बाद क्या काँग्रेस अपने कार्यकर्ताओं को घर बैठने को कहेगी? काँग्रेस के लिए धर्मसंकट जैसी स्थिति बन गई है, जिससे उसे बाहर निकलना होगा. विपक्षी दलों के अंदर इस बात को लेकर डर है कि अगर काँग्रेस ने अपना जनाधार वापस हासिल कर लिया तो क्षेत्रीय दलों का क्या होगा?


पटना में 23 तारीख को होने वाली महागठबंधन की मीटिंग से पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एक अजब सी शर्त रखी है, उन्होने मांग की है कि वो “सबसे पहले” दिल्ली पर केंद्र के अध्यादेश पर चर्चा करे. केजरीवाल की इस ज़िद ने जद यू और राजद के अलावा काँग्रेस को भी मुश्किल में डाल दिया है. अब तक काँग्रेस ने केजरीवाल को अध्यादेश के मुद्दे पर साथ देने का वादा नहीं किया है. बिहार काँग्रेस के कई नेताओं ने तो केजरीवाल के इस रुख पर ऐतराज जताते हुए कहा है कि किसी एक राज्य का विषय उठाना सही नहीं नहीं है. तो क्या केजरीवाल रंग में भंग डालना चाहते हैं? आज भले ही महागठबंधन में शामिल दलों का कुनबा अच्छा खासा बड़ा दिखता है लेकिन उनके मतभेदों और विसंगतियों की फेहरिश्त दिन-ब-दिन लंबी होती जा रही है.

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