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विपक्षी एकता के चक्कर में फंसे नीतीश कुमार, अब क्या होगा?

लोकसभा में कम सीटें पाकर भी नीतीश महागठबंधन नहीं छोड़ते हैं तो वे बने रहेंगे 2025 तक सीएम .

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सिटी पोस्ट लाइव : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की विपक्षी एकता की मुहीम को कांग्रेस ने पलीता लगा दिया है. राहुल गांधी को मानहानि मामले में सजा होने के बाद लगा था कि नीतीश कुमार विपक्ष की खासतौर पर कांग्रेस की मज़बूरी बन जायेगें.लेकिन ममता की सलाह पर दिल्ली की जगह पटना में विपक्षी एकता की बैठक करने के नीतीश कुमार के फैसले से कांग्रेस बिदक गई.उसे अहसाश हो गया कि उसे किनारे लगाने की खेल शुरू हो चूका है.कांग्रेस ने 12 जून को पटना में होनेवाली बैठक को लेकर सहमति तो दे दी लेकिन बैठक के ठीक पहले बैठक में अपने बड़े नेताओं के शामिल होने को लेकर असमर्थता जाता दी.

 

राजनीतिक पंडितों के अनुसार  बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का खेल अब शुरू होगा. अभी तक आरजेडी जानबूझ कर बैकफुट पर था. विपक्षी एकता के बहाने नीतीश कुमार को किनारे लगाने की चाल विफल होते देख आरजेडी में इसके लिए अब दूसरे रास्ते की तलाश शुरू हो गई है. आरजेडी के एक बड़े नेता के मुताबिक नीतीश कुमार ने महागठबंधन में आने की एक ही शर्त रखी थी कि वे सीएम बने रहेंगे। आरजेडी ने उनकी बात मान ली थी. हालांकि इसके पलट आरजेडी ने शर्त रखी थी कि 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर नीतीश कुमार राष्ट्रीय राजनीति में अपनी भूमिका तलाशेंगे. इसके लिए बिहार के महागठबंधन की तर्ज पर वे देश भर में विपक्षी पार्टियों को एकजुट करेंगे. महागठबंधन की ओर से उन्हें पीएम का फेस बनाने की हरी झंडी भी आरजेडी ने दिखा दी थी.

 

जब राहुल  गांधी को दो साल की  सजा हो गई और इस आधार पर उनकी संसद सदस्यता जाने के साथ चुनाव लड़ने की संभावना खत्म हो गई तो नीतीश कुमार अचानक सक्रिय हो गए. हालांकि इस बार उन्होंने एकता के लिए नया फॉर्म्युला निकाला कि वे पीएम पद की रेस में शामिल नहीं हैं. कांग्रेस ने उनकी बात सुनी और उन्हें ही विपक्षी दलों को एकजुट करने का जिम्मा सौंप दिया. इस बीच ममता बनर्जी और आम आदमी पार्टी ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया. ममता ने कांग्रेस के इकलौते विधायक को तोड़ लिया तो आम आदमी पार्टी के महासचिव संदीप पाठक ने बयान दे दिया कि लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP) किसी दल या गठबंधन से समझौता नहीं करेगी. कांग्रेस को एहसास हो गया कि उसके साथ ही खेल की तैयारी में विपक्ष लगा है. लेकिन पटना में बैठक करने के फैसले के बाद कांग्रेस ने अपना पैतरा बदल दिया.नीतीश कुमार की मुहीम की हवा निकाल दी.

 

आरजेडी को अब यह नागवार लगने लगा है  कि सिर्फ 43 विधायकों वाली पार्टी जेडीयू का नेता  सीएम बना हुआ है.दूसरा कि अब नीतीश कुमार का जनाधार भी खत्म हो गया है. उनके अपने ही नेता साथ छोड़ रहे हैं. बिहार में नीतीश कुमार राजनीतिक रूप से इतने कमजोर हो चुके हैं कि उनसे बेहतर हाल में तो मूल महागठबंधन के नेता ही हैं.आरजेडी ने नीतीश कुमार के पर कतरने का जो ब्लू प्रिंट तैयार किया है, उसमें तीन बातें काफी महत्वपूर्ण और तार्किक हैं. नीतीश कुमार का जेडीयू 43 विधायकों के साथ अभी तीसरे नंबर की पार्टी है. साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी को भले ही 16 सीटों पर जीत मिल गई और आरजेडी शून्य पर आउट हो गया था, लेकिन तब नीतीश को बीजेपी का समर्थन था. नीतीश कुमार की असली ताकत आंकने के लिए 2014 के लोकसभा चुनाव को आधार बनाया जाए तो उन्हें सिर्फ दो सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. यानी उनकी अपनी ताकत महज दो सीटों की ही है.

 

नीतीश कुमार लव-कुश समीकरण के नेता 1994 से ही बने हुए हैं. हालांकि दो जातियों के वोट से उनकी कामयाबी संदिग्ध थी, पर बीजेपी का लगातार साथ मिलते रहने से उसके वोट भी नीतीश कुमार को ट्रांसफर होते रहे. अब समीकरण टूट चुका है. जेडीयू से अलग होकर अपनी पार्टी आरएलजेडी (RLJD) बनाने वाले उपेंद्र कुशवाहा ने कुशवाहा बिरादरी को नीतीश से झटक लिया है. जेडीयू से ही अलग हुए नीतीश के स्वजातीय कुर्मी जाति के आरसीपी सिंह अब बीजेपी में जाकर कुर्मी वोटरों को भी बांटते हैं. अपने दम पर लड़े चुनावों में नीतीश कुमार को जो 16-18 प्रतिशत वोट मिल रहे हैं, उसमें 10-12 प्रतिशत वोट तो लव-कुश समीकरण वाले ही होते थे. अन्य जातियों में चार-पांच प्रतिशत वोट ही उन्हें मिलते थे. जाति-जमात के जकड़न में फंसे नीतीश के पास आज की तारीख में बमुश्किल 10 प्रतिशत वोट भी नहीं होंगे.

अब सवाल उठता है कि जब आरजेडी को जेडीयू या नीतीश कुमार की असलियत मालूम है तो वह उन्हें क्यों ढो रहा है? दरअसल आरजेडी को यह अंदाजा नहीं था कि नीतीश इस दुर्गति को प्राप्त होंगे. उसे तो अनुमान था कि वे पीएम बनें न बनें, पर बिहार का पिंड वे इसी बहाने छोड़ देंगे. यही वजह रही कि महागठबंधन में नीतीश के दोबारा आने के बाद से ही यह आवाज गूंजने लगी थी कि नीतीश पीएम मटेरियल हैं. वह पीएम फेस हैं। नीतीश अंतरराष्ट्रीय राजनीति में जाएंगे. बिहार की गद्दी तेजस्वी यादव को सौंप देंगे. नीतीश ने तेजस्वी यादव के नेतृत्व में 2025 का विधानसभा का चुनाव लड़ने की बात कह कर कयासों की पुष्टि भी कर दी. जब नीतीश ने विपक्षी एकता की बात आगे बढ़ाने में आनाकानी शुरू की तो आरजेडी के हल्ला बोल ब्रिगेड ने उनकी खटिया खड़ी करनी शुरू की.

नीतीश कुमार को लेकर महागठबंधन में बखेड़ा लोकसभा चुनाव से शुरू होगा. आरजेडी ने तय किया है कि सीट शेयरिंग के वक्त नीतीश कुमार की 2014 में जीतीं लोकसभा सीटों और 2020 के विधानसभा चुनाव में जीती सीटों को आधार बनाया जाएगा. ऐसा हुआ तो नीतीश कुमार के पास महागठबंधन छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा. अपमान की घूंट पीकर रह भी गए तो उन्हें सीएम की कुर्सी तो छोड़नी ही पड़ेगी.लेकिन  आरजेडी को भय है कि अभी कोई कदम उठाया तो नीतीश कुमार बिदक सकते हैं और पाला बदल कर  वे बीजेपी के साथ जा सकते हैं. हालांकि अमित शाह और जेपी नड्डा जैसे बीजेपी के बड़े नेता कई बार यह कह चुके हैं कि नीतीश की घर वापसी की अब दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं है.लेकिन राजनीति में कोई बात ब्रह्म वाक्य या आखिरी नहीं होती. इसलिए आरजेडी लोकसभा चुनाव तक इंतजार करेगा. लोकसभा में कम सीटें पाकर भी अगर नीतीश महागठबंधन नहीं छोड़ते हैं तो वे जरूर 2025 तक सीएम बने रहेंगे.

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