सिटी पोस्ट लाइव : अनुसूचित जातियों में क्रीमी लेयर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को वापस लेना हो या फिर लेटरल एंट्री पर यू-टर्न.मोदी सरकार के इस रुख को देखकर तो यही लगता है कि वह बैकफूट पर आ गई है. समान नागरिक संहिता (यूसीसी), वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक 2024, डिजिटल इंडिया अधिनियम और नई औद्योगिक नीति सहित कई आर्थिक सुधारों जैसे कई ऐसे मामले हैं जो ठंडे बस्ते में पड़े हुए हैं. जाति जनगणना, किसानों के आंदोलन, बेरोजगारी के मामले जैसी कई चुनौतियाँ सरकार के सामने हैं.
सरकार देश के भीतर हो रही अशांति और विरोध से तो जूझ ही रही है, साथ ही देश की सीमाओं के बाहर भी हालात ठीक नहीं है. बांग्लादेश में तेजी से बिगड़ते हालात चिंता का विषय हैं. वहां बढ़ते इस्लामीकरण और भारत विरोधी गतिविधियां बड़ी चुनौती बनती जा रही है. यूक्रेन और इजरायल में युद्धों के साथ दुनियाभर में अस्थिरता है.सवाल उठता है कि क्या बीजेपी को फिर से मजबूत होने के लिए मध्यावधि चुनाव का विकल्प देखना चाहिए. लेकिन ये सफल होगा इसकी क्या गारंटी. सवाल यह है कि क्या मोदी गुजरात की उपलब्धि को अब दोहरा सकते हैं? एक बात तो साफ है कि मोदी अब उतने युवा नहीं रहे जितने 2002 में थे। 22 साल किसी की ऊर्जा और क्षमताओं पर भारी पड़ते हैं.
केंद्रीय चुनाव राज्य चुनावों की तुलना में कहीं अधिक जटिल होते हैं. हर राज्य की अलग-अलग प्राथमिकताएं और मजबूरियां हैं. 28 राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेशों में नैरेटिव मैनेज करना कोई मजाक नहीं है. पार्टी और उसके कैडर भी कुछ महीने पहले हुए आम चुनावों से थक चुके हैं.इसलिए, भले ही मध्यावधि चुनाव हों, हम अभी इसके करीब भी नहीं हैं. लेकिन इससे भी बड़ी बात यह है कि अभी कोई एक बड़ा मुद्दा नहीं है जिस पर मोदी संसद को भंग कर सकें और नया जनादेश मांग सकें.
सोशल मीडिया पर बहुत चर्चा हो रही है कि भारत पश्चिम बंगाल को नॉर्थ ईस्ट से जोड़ने वाली हमारी ‘चिकन नेक’ को चौड़ा करने के लिए अटैक कर सकता है. सैन्य दृष्टि से यह बहुत मुश्किल ऑपरेशन नहीं है. लेकिन इसका राजनीतिक और कूटनीतिक नतीजा अनुमान से कहीं ज्यादा हो सकता है. इससे भी बदतर, इसके दीर्घकालिक रणनीतिक और सैन्य परिणाम हो सकते हैं. हम इसे जिस भी तरह से देखें, यह एक बहुत ही जोखिम भरा ऑपरेशन होगा, जिसके लिए साहस, दृढ़ संकल्प, संसाधन और भंडार की आवश्यकता होगी जो पूरे देश को झकझोर कर रख देगा.
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