सिटी पोस्ट लाइव : ममता बनर्जी की सलाह पर पटना में 12 जून को विपक्षी एकता पर होनेवाली बैठक आगे बढ़ गई है.बिहार के सीएम नीतीश कुमार और बंगाल की सीएम ममता बनर्जी की मुलाकात 24 अप्रैल को हुई थी. ममता ने नीतीश को सलाह दी कि वे कांग्रेस को साथ वाले गठबंधन का हिस्सा बनने को तैयार हैं. इसके लिए उन्होंने दो शर्तें नीतीश कुमार के सामने रखीं. पहला यह कि विपक्षी एकता को लेकर पहली बैठक पटना में हो. ममता ने दूसरी शर्त यह रखी कि विपक्षी एकता के लिए उन दलों को राज्यों में अगुआ बनाया जाए, जो वहां मजबूत हों. सुनने में तो यह सामान्य और वाजिब बात थी, लेकिन इस प्रस्ताव में भी ममता की चालाकी छिपी थी. दरअसल इन दोनों प्रस्तावों के पीछे ममता के मन में कांग्रेस को नीचा दिखाने का भाव था.
आखिरकार ममता बनर्जी अपने मकसद में कामयाब हो गईं. नीतीश ने 12 जून को पटना में विपक्षी दलों की बैठक रख दी. कांग्रेस ने बैठक को आगे बढ़ाने की मांग की जिससे मानने से इनकार कर दिया गया.फिर कांग्रेस ने बैठक में शामिल होने से मन कर दिया.कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद ने साफ़ कर दिया कि इस बैठक में के डिसीजन मेकर्स दो नेता राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे शामिल नहीं होंगे.फिर क्या था रविवार को बैठक को टाल दिया गया.
ममता बनर्जी को पता है कि कांग्रेस में कहने के लिए आंतरिक लोकतंत्र है, लेकिन व्यवहार में यह क्षेत्रीय क्षत्रपों की तरह अघोषित सुप्रीमो वाली पार्टी है. गांधी परिवार की मर्जी के बगैर कांग्रेस में पत्ता भी नहीं डोल सकता है. ममता चाहती थीं कि कांग्रेस की मठाधीशी खत्म हो. वह दिल्ली में विपक्षी नेताओं को बुला कर मिलने-बात करने का सिलसिला बंद करे. अति उदारता में कांग्रेस तैयार हो भी जाती है तो इसका मतलब साफ है.। कांग्रेस का गुरूर टूट रहा है. कांग्रेस के पास अनुभव की कमी नहीं है. कांग्रेस ममता बनर्जी की कूटनीतिक चाल को बेहतर समझती है. यही वजह रही कि नीतीश कुमार का मन रखने के लिए उन्हें बुला कर खरगे और राहुल ने दिल्ली में बातचीत की. विपक्षी एकता में साथ रहने का वादा किया. पटना में होने वाली विपक्षी दलों की बैठक में कांग्रेस ने शामिल होने का भी आश्वासन दिया.उसने अपनी मठाधीशी बनाए रखने के लिए ये फैसला लिया कि खरगे या राहुल दिल्ली से पटना बैठक में शामिल होने नहीं जाएंगे.
इस बीच कर्नाटक विधानसभा चुनाव परिणाम ने कांग्रेस को ताकत दे दी. कांग्रेस की जीत से न चाहते हुए वे भी खुश हैं, जिन्हें कांग्रेस की प्रगति फूटी आंख भी नहीं सुहाती. ऐसे लोगों में ममता बनर्जी प्रमुख हैं. उन्हें इस बात की खुशी नहीं कि कांग्रेस जीत गई, बल्कि वे इसलिए खुश हैं कि बीजेपी हार गई. साल 2011 में बंगाल से लेफ्ट की विदाई हो गई और ममता सत्ता में आ गईं. तब से अब तक उनकी नजर में कांग्रेस उतनी ही अछूत है, जितने वाम दल. कांग्रेस से अपनी दुश्मनी का इजहार तो उन्होंने विपक्षी एकता के प्रयासों के बीच ही कर दिया, जब बंगाल विधानसभा में कांग्रेस के एकमात्र एमएलए को टीएमसी का हिस्सा बना लिया.
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