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नई दिल्ली: भारत और नेपाल के बीच एक गहरे रिश्ते की परंपरा रही है, जिसे ओपन बॉर्डर के कारण और भी मजबूत किया गया है। यहाँ तक कि दोनों देशों के बीच शादी संबंध और धार्मिक सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी होते हैं। नेपाल के गढ़ी माई मेले में हर पांच साल में होने वाली बलि देने की प्रथा में बड़ी संख्या में भारतीय नागरिक भी शामिल होते हैं। इस मेले में लोग पशु और पंछियों को लेकर जाते हैं और उन्हें बलि चढ़ाते हैं। हालांकि, भारत और नेपाल के बीच बली प्रथा को लेकर कानूनी मतभेद हैं। भारत में बलि प्रथा पर रोक है, जबकि नेपाल में यह परंपरा वर्षों से जारी है।
भारत में इस प्रथा पर कानूनी प्रतिबंध है, और कोई भी व्यक्ति यहां किसी पशु को बलि नहीं दे सकता। इस कारण प्रशासन और सामाजिक संगठन नेपाल जाने वाले पशुओं पर कड़ी नजर रख रहे हैं। मोतिहारी के एसपी स्वर्ण प्रभात ने इस समस्या को गंभीरता से लिया है और सीमा पर चौकसी बढ़ा दी है, ताकि पशुओं की तस्करी और बलि देने की प्रक्रिया को रोका जा सके। इसके बाद से लगातार पशु पकड़ने की कार्रवाई की जा रही है और तस्करों पर कार्यवाही की जा रही है।
वहीं, पशु बलि की प्रथा को लेकर कर्नाटका से आए विश्व प्राणी कल्याण मंडल के संचालक दयानंद स्वामी ने भी मोतिहारी का दौरा किया। उन्होंने बताया कि गढ़ी माई मेले में बड़ी संख्या में पशुओं को लाकर बलि चढ़ाई जाती है। इस प्रथा को समाप्त करने के लिए उनकी संस्था पुलिस के सहयोग से पशुओं को पकड़ने का प्रयास कर रही है। हालांकि, बिहार सरकार ने भी इस मुद्दे को गंभीरता से लिया है और नेपाल जाने वाले पशुओं पर रोक लगाने के लिए आवश्यक आदेश जारी किए हैं।
मोतिहारी के एसपी स्वर्ण प्रभात ने कहा कि सीमा पर कड़ी चौकसी बढ़ा दी है ताकि पशु तस्करी और बलि देने की घटनाओं को रोका जा सके। लगातार कार्रवाई की जा रही है और हम सुनिश्चित करेंगे कि इस प्रथा पर रोक लगे।
इस घटनाक्रम ने दोनों देशों के बीच कानूनी और सामाजिक असहमति को एक बार फिर से उजागर किया है, और यह सवाल खड़ा कर दिया है कि इस प्रथा को समाप्त करने के लिए और किस कदम की आवश्यकता है? क्या दोनों देशों के बीच एक समान कानूनी ढांचा तैयार किया जा सकता है, जिससे पशु संरक्षण और प्रथा दोनों की रक्षा हो सके.