नीतीश का मुसलमानों से क्यों हुआ मोहभंग, बहुत गहरा है इसके पीछे का जोड़-घटाव
मदनी और एआईएमआईएम ने बोला नीतीश पर हमला, नहीं आया अब तक नीतीश का कोई बयान
सिटी पोस्ट लाइव
पटना: बिहार के सीएम और जदयू सुप्रीमो नीतीश कुमार समावेशी विकास और सभी समुदायों को समान अवसर देने और साथ लेकर चलने की बात करने वाले देश के दिग्गज़ नेताओं में से एक रहे हैं। हालांकि, हालत अब कुछ बदली-बदली सी दिख रही है। अब उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेता मुस्लिम मतों को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। हाल ही में केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ जदयू नेता ललन सिंह ने यह कहकर बिहार की राजनीति में बवाल मचा दिया कि नीतीश सरकार ने मुसलमानों के लिए जितना काम किया उतना आज तक किसी सरकार ने नहीं किया, लेकिन इसके बावजूद मुस्लिम मतदाता जेडीयू को वोट नहीं देते।
सबसे हैरत की बात यह है कि ललन सिंह के बयान पर इतना सियासी बवाल मचने के बाद भी नीतीश कुमार ने इस पर अब तक एक शब्द भी नहीं कहा है। नीतीश कुमार ने इस पर अभी तक कोई बयान नहीं दिया है।
ललन सिंह का बयान और मच गया बवाल
जेडीयू के केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह का हालिया बयान इस मुद्दे पर एक बड़ा विवाद पैदा कर गया है। ललन सिंह ने मुजफ्फरपुर में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि मुस्लिम समुदाय के लोग नीतीश कुमार को वोट नहीं देते। उन्होंने यह भी कहा कि इसके बावजूद नीतीश कुमार ने हमेशा अल्पसंख्यक समाज के लिए काम किया है। उनका यह बयान यह स्पष्ट करता है कि जेडीयू को अब यह भ्रम नहीं रह गया कि मुस्लिम मतदता उनकी पार्टी को समर्थन देते हैं। उन्होंने कहा कि लालू यादव और राबड़ी देवी के समय क्या हालात थे, यह किसी से छिपा नहीं है। लेकिन अब यह देखिए कि नीतीश कुमार ने मदरसों से लेकर उर्दू शिक्षकों तक के लिए क्या-क्या नहीं किया।
क्या कहता है वक्फ़ बोर्ड की बैठक से नीतीश का गायब रहना
नीतीश कुमार की वक्फ़ बोर्ड की बैठक में गैर-मौजूदगी ने भी राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। यह बैठक पटना में उलेमा ए हिंद की ओर से आयोजित की गई थी। बैठक का मकसद नीतीश कुमार पर दबाव डालना था, लेकिन मुख्यमंत्री इस बैठक में शामिल नहीं हुए। जमीयत उलमा ए हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने वक्फ बिल पर सरकार के संशोधनों पर कड़ी आपत्ति जताई। इस मुद्दे पर नीतीश कुमार की चुप्पी और गैर-मौजूदगी ने यह संकेत दिया कि मुस्लिम समुदाय के प्रति उनका रुख अब बदल रहा है। शायद उन्हें भी महसूस हो रहा हो कि काम करने के बावजूद इस समुदाय का वोट उन्हें नहीं मिल पाता।
देवेश चंद्र ठाकुर भी जता चुके हैं नारज़गी
इससे पहले, जेडीयू के सांसद देवेश चंद्र ठाकुर भी खुलकर मुस्लिम और यादव मतों के न मिलने पर अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। उन्होंने सीतामढ़ी में एक आयोजन में कहा था कि अब वे मुस्लिम और यादव समुदाय के लिए कोई काम नहीं करेंगे, क्योंकि इन समुदायों ने उन्हें वोट नहीं दिया। ठाकुर ने कहा था कि मैंने हमेशा बिना भेदभाव के काम किया, फिर भी इन समुदायों ने मुझे वोट नहीं दिया। अब मैं उनका कोई काम नहीं करूंगा।
वोटों का जोड़-घटाव और जेडीयू की दुविधा
2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू ने 115 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से करीब 10% मुस्लिम उम्मीदवार थे। लेकिन, मुस्लिम समुदाय ने किसी भी जेडीयू उम्मीदवार को जीताने में मदद नहीं की और उनका झुकाव हमेशा राष्ट्रीय जनता दल की तरफ़ रहा। 2024 लोकसभा चुनाव में भी जेडीयू के मुस्लिम उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा।
जेडीयू को अब यह एहसास हो गया है कि मुस्लिम समुदाय उनके समर्थन में आगे नहीं आ रहा है, जबकि नीतीश कुमार ने कई योजनाओं के माध्यम से मुस्लिम समुदाय को आगे बढ़ाने की कोशिश की। तो अब सवाल यह है कि क्या जेडीयू भी मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने की कोशिशें करना छोड़ देगी और बीजेपी की एक हैं, तो सेफ़ हैं के रास्ते पर चल पड़ेगी?
इस समय बिहार विधानसभा में जेडीयू का एक भी मुस्लिम विधायक नहीं है पर पार्टी के अंदर यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या मुस्लिम वोटों के बिना वे आगामी चुनावों में अपनी पकड़ बना पाएंगे।
नायडू और नीतीश के सेक्युलरिज़्म पर सवाल
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के सेक्युलरिज्म पर अब मुस्लिम नेताओं ने सवाल उठाए हैं। इन नेताओं ने वक्फ़ बोर्ड संशोधन बिल के खिलाफ सख्त रुख अपनाने का दबाव नीतीश और नायडू पर बनाने की कोशिश की है। साथ ही, भाजपा पर सांप्रदायिक राजनीति करने का आरोप लगाया है।
मदनी का नीतीश को इशारा
जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने केंद्र की भाजपा सरकार पर सांप्रदायिक राजनीति को बढ़ाने का आरोप लगाया है। मदनी ने कहा कि भाजपा देश को हिंदू-मुसलमान के आधार पर बांटने की कोशिश कर रही है और वक्फ़ संपत्ति पर कब्जा करने के लिए वक्फ़ बोर्ड संशोधन विधेयक लाया गया है। मदनी ने यह भी कहा कि देश की एकता हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई के मिलजुलकर रहने से ही मुमकिन है, न कि नफ़रत और बंटवारे की राजनीति से। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर यह विधेयक पारित होता है, तो धर्मनिरपेक्षता का दावा करने वाले दल भी इसकी जिम्मेदारी से नहीं बच पाएंगे। मदनी का यह बयान साफ तौर पर जदयू और टीडीपी जैसे दलों पर दबाव बनाने के लिए था, ताकि वे इस बिल के खिलाफ खड़े हों और विधेयक को संसद में पारित न होने दें।
एआईएमआईएम ने भी किया हमला
एआईएमआईएम के बिहार के अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने भी नीतीश कुमार पर हमला बोला। उनका कहना था कि नीतीश कुमार एक तरफ भाजपा के साथ हैं, तो दूसरी ओर मुसलमानों के हितैषी होने का दावा करते हैं, जो कि दोहरा चरित्र है। उन्होंने कहा कि अगर नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू वक्फ़ बिल के पक्ष में रहते हैं, तो इससे मुसलमानों को भारी नुकसान होगा। अख्तरुल ने यह भी कहा कि इस बिल के जरिए मुसलमानों के अधिकारों पर हमला किया जा रहा है और मस्जिदों तक को उनसे छीन लिया जाएगा। उन्होंने सवाल किया कि अब मुसलमानों को क्या करना होगा। अपने मुंह पर पट्टी बांधनी होगी या अपनी गर्दन झुका देनी होगी?
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