किसने की बिहार में अतिपिछड़ों की हकमारी?

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सिटी पोस्ट लाइव : जातिवार गणना की सर्वे रिपोर्ट जारी होने के बाद सामाजिक न्याय की बात फिर से उठने लगी है.एक खास  वर्ग के  हकमारी की बात उठाई जा रही है. लेकिन, जी नेता और पार्टियाँ सवाल उठा रही हैं , वहीं सत्ता पर पिछले 35 साल से काबिज हैं. बिहार में सत्ता के शीर्ष पर विगत 76 वर्षों में 35 वर्षों से तक पिछड़े व अति पिछड़े वर्ग के लोग ही सत्ताधीश रहे हैं.फिर पिछड़े क्यों आज भी पिछड़े हुए हैं?उनके पिछड़ेपन के लिए कौन जिम्मेवार है?

 

विगत 35 वर्षों में सत्ता सात नेता सत्ता के शीर्ष पर रहे. नीतीश कुमार 17 वर्षों से अधिक समय से मुख्यमंत्री हैं. इनके पूर्व राबड़ी देवी सात वर्ष 190 दिन और लालू प्रसाद यादव सात वर्ष 130 दिनों तक मुख्यमंत्री रहे. बिहार में अनुसूचित जाति (SC) के लोगों को तीन बार मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला. हालांकि, इनमें से किसी ने इस पद पर एक वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं किया. रामसुंदर दास 302 दिन, जीतनराम मांझी 278 दिन तथा भोला पासवान शास्त्री 112 दिन मुख्यमंत्री रहे थे.

 

पिछड़े वर्ग से दरोगा प्रसाद राय 310 दिन, सतीश प्रसाद सिंह 5 दिन तथा बीपी मंडल 51 दिनों तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे. सत्ता के शीर्ष पर केवल एक कर्पूरी ठाकुर अति पिछड़ा वर्ग से रहे. वह दो वर्ष 98 दिनों तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे. इन 76 वर्षों में एक मौका अल्पसंख्यक समाज से अब्दुल गफूर को भी मिला था और वह एक वर्ष 283 दिन तक मुख्यमंत्री रहे. बीते 76 वर्षों में अनारक्षित श्रेणी के मुख्यमंत्री बने और इनका शासन करीब 37 वर्ष 197 दिनों तक रहा.

 

बिहार सरकार ने सोमवार को जाति आधारित गणना सर्वे की रिपोर्ट सार्वजनिक की. इसमें खुलासा हुआ कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) राज्य की कुल आबादी का 63 प्रतिशत है. राज्य की कुल जनसंख्या 13.07 करोड़ से कुछ अधिक है, जिनमें 36 प्रतिशत के साथ ईबीसी सबसे बड़ा सामाजिक वर्ग है. इसके बाद ओबीसी 27.13 प्रतिशत है. इसके बाद 19 प्रतिशत अनुसूचित जाति के लोगों की संख्या है. ऐसे में एक बार फिर जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी की बात उठने लगी है.

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