City Post Live
NEWS 24x7

BJP का हिंदुत्व बनाम को क्या नीतीश-तेजस्वी का ‘मंडल-II.

- Sponsored -

- Sponsored -

-sponsored-

सिटी पोस्ट लाइव : साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिली जबर्दस्त जीत मिली थी.ये  कामयाबी उसे  आक्रामक हिंदुत्व की वजह से  हिंदुओं की गोलबंदी की वजह से मिली थी.लेकिन नीतीश सरकार द्वारा जातीय जनगणना के बाद समाज के अत्यंत पिछड़े तबकों (ईबीसी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), एससी और एसटी के लिए नौकरी का कोटा बढ़ाने के फ़ैसले ने बीजेपी की रणनीति को ख़तरे में डाल दिया है.बिहार में ये तबका राज्य की आबादी का 84 फ़ीसदी हिस्सा है. अब तक ये माना जाता रहा है कि इस तबके ने विपक्ष की तुलना में भगवा पार्टी को अधिक मदद पहुंचाई है.

बिहार के जातीय सर्वे से जो तस्वीर निकल कर सामने आई है, माना जाता है कि कुछ अन्य उत्तर भारतीय राज्यों में ऐसी ही स्थिति है. इनमें से तीन राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ भी हैं, जहाँ विधानसभा चुनाव हो रहे हैं.बीजेपी के ख़िलाफ़ जातीय गोलबंदी का फ़ायदा उठाने के लिए 28 विपक्षी पार्टियां ‘इंडिया’ गठबंधन (इंडियन नेशनल डेवेलपमेंट इन्क्लूसिव एलायंस) के बैनर तले राष्ट्रीय स्तर पर जाति जनगणना के लिए दबाव बना रही हैं.विपक्षी पार्टियों के ‘इंडिया’ गठबंधन के सबसे बड़े घटक दल कांग्रेस के नेता राहुल गांधी अपने चुनावी अभियान में जाति जनगणना और सरकारी नौकरियों, ब्यूरोक्रेसी और राजनीतिक व्यवस्था में वंचित तबकों के लिए आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व का वादा कर रहे हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब ये आरोप लगाते हैं कि हिंदू समाज को बांटकर विपक्षी पार्टियां ‘पाप’ कर रही हैं तो इसमें उनकी बेचैनी दिखने लगती है.पांच राज्यों के चुनावी अभियान से समय निकालकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने छह नवंबर को बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में एक जनसभा के दौरान नीतीश कुमार और राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू यादव की ‘तुष्टीकरण की नीति’ के लिए तीखा हमला बोला.बीजेपी जब भी अपने विरोधियों पर तुष्टीकरण का आरोप लगाती है तो इसका मतलब ये निकाला जाता है कि हिंदुओं के हितों के ऊपर अल्पसंख्यकों ख़ासकर मुसलमानों को तवज्जो दे जा रही है.धर्म के नाम पर विभिन्न हिंदू जातियों को एक रखने की कोशिश करते हुए अमित शाह ने अयोध्या में बने रहे राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में भाग लेने की अपील की.

उन्होंने सनातन धर्म पर मंडरा रहे ख़तरे का जिक्र किया और राज्य में नीतीश राज से छुटकारा पाने के लिए बिहार के सबसे लोकप्रिय त्योहार छठ पर्व का जिक्र किया.अमित शाह ने ये भी एलान किया कि साल 2024 के लोकसभा चुनाव प्रचार के सिलसिले में वे अगले 13 हफ़्तों में राज्य के सभी 37 ज़िलों में रैलियों को संबोधित करेंगे.इसी साल मई में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव की चुनावी हार के बाद बीजेपी की बेचैनी और अधिक बढ़ गई लगती है.कर्नाटक में बीजेपी ने हिंदुत्व कार्ड खेला और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मतदाताओं से बजरंग बली के नाम पर वोट देने की अपील की लेकिन इस सबके बावजूद कर्नाटक में बीजेपी को कांग्रेस के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा.

साल 1990 में तत्कालीन विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू की और इससे देश में ‘मंडल लहर’ शुरू हो गई.मंडल की राजनीति पर खड़ी हुईं क्षेत्रीय पार्टियों ने लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व वाली बीजेपी को हिंदी पट्टी के राज्यों में चुनौती दी.मंडल कमीशन का ज़ोरदार समर्थन करके बिहार में लालू प्रसाद यादव और उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह का राजनीतिक उदय हुआ.उन्होंने अगड़ी जातियों के ख़िलाफ़ पिछड़ों को लामबंद किया. ज़्यादातर लोग इसे ही ‘मंडल बनाम कमंडल’ की राजनीति के तौर पर जानते हैं.लालकृष्ण आडवाणी ने बाबरी मस्जिद के ख़िलाफ़ और अयोध्या में उसी जगह पर राम मंदिर के निर्माण के लिए कैम्पेन चलाया. इसे ही ‘कमंडल’ की राजनीति कहा गया.लालू यादव और मुलायम सिंह यादव बीजेपी की हिंदुत्व की राजनीति के ख़िलाफ़ चैंपियन बनकर उभरे.

लेकिन वे दोनों जिस जनता दल परिवार का हिस्सा था, उसमें कई बार टूट हुई और अलग हुए धड़ों ने बीते सालों में कई बार भारतीय जनता पार्टी के साथ हाथ मिलाया.उदाहरण के लिए, नीतीश कुमार ने बिहार में लालू यादव से अलग होकर अपनी समता पार्टी बनाई जो 1996 के बाद लंबे समय तक बीजेपी के साथ रही.ठीक इसी तरह, मुलायम सिंह यादव से भी अलग होकर कई नेताओं ने अपनी-अपनी जातियों को संगठित किया और बीजेपी के साथ साझेदारी की.

इसी प्रक्रिया में बीजेपी को भी पिछड़े वर्गों में अपनी पैठ बनाने का मौका मिला. साथ ही बीजेपी ने सोशल इंजीनियरिंग में अपने प्रयोग किए, हिंदी पट्टी में अपने कैडर में पिछड़े वर्ग के नेताओं को मजबूत बनाया.दलितों की पार्टी कही जाने वाली बहुजन समाज पार्टी भी मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी से अलग होकर बनी थी.इसी प्रयोग के तहत मायावती भारतीय जनता पार्टी के समर्थन में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं और बीजेपी को दलित मतदाताओं के बीच अपना आधार मजबूत करने का मौका मिला. नीतीश कुमार और लालू यादव देश भर में ग़ैर बीजेपी पार्टियों को सगंठित करने की कोशिश तेज़ कर रहे हैं. बिहार का कास्ट सर्वे इसी कड़ी का हिस्सा है.नब्बे के दशक में कांग्रेस की क़ीमत पर आगे बढ़ने वाली क्षेत्रीय पार्टियां अब विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के बैनर तले कांग्रेस के साथ आ गई हैं.

साल 2024 के लोकसभा चुनाव में ये विपक्षी गठबंधन सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के सामने संभावित ख़तरे के तौर पर उभरती हुई दिख रही है.ऐसा लगता है कि बिहार में हुए जाति सर्वे ने मजबूत कही जाने वाली बीजेपी की कमज़ोरियों को उजागर कर दिया है.नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की जोड़ी ने बिहार में हालात बदल दिए हैं.राज्य सरकार ने हाल ही में नए भर्ती किए गए शिक्षकों को 1.2 लाख नियुक्ति पत्र सौंपे हैं.नीतीश और तेजस्वी बेरोज़गारी, ग़रीबी, असामनता, आवास, स्वास्थ्य, लोकतंत्र और संविधान का बचाव, कॉरपोरेट भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे उठा रहे हैं.उन्होंने सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े तबकों के लिए नौकरियों में कोटा बढ़ाकर 75 फ़ीसदी कर दिया है.राजनीतिक विश्लेषक इस घटनाक्रम को नब्बे के दशक की तरह ही ग़ैरबीजेपी पार्टियों के दिन बदलने वाला ‘मंडल-II’ का उभार करार दे रही हैं.

- Sponsored -

-sponsored-

Subscribe to our newsletter
Sign up here to get the latest news, updates and special offers delivered directly to your inbox.
You can unsubscribe at any time

-sponsored-

Comments are closed.