सिटी पोस्ट लाइव : कर्नाटक विधान सभा चुनाव में जीत के बाद जिस तरह से कांग्रेस का हौसला बढ़ा है और उसने जिस तरह से पांच राज्यों के लिए हो रहे विधान सभा चुनाव में अपने सहयोगी क्षेत्रीय दलों को ठेंगा दिखा दिया है, उससे साफ़ है कि ईन राज्यों में कांग्रेस को मिलनेवाली सफलता ही इंडिया गठबंधन के लिए खतरनाक साबित होगी.कांग्रेस क्षेत्रीय दलों पर लोक सभा चुनाव में हावी होने की कोशिश करेगी .अगर ऐसा उसने किया तो इंडिया गठबंधन का बिखरना तय है. लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) तक विपक्षी एकता का क्या हस्र होने वाला है, इसके रूझान पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले ही मिलने लगे हैं. विपक्षी गठबंधन में शामिल कई दल एक दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार उतार कर ‘एकता’ की अब तक की उपलब्धि को ठेंगा दिखा रहे हैं.
कांग्रेस के खिलाफ समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी और जदयू ने तो अपने उम्मीदवार मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh), राजस्थान (Rajasthan) और छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में उतारे ही थे, तेलंगाना में अब सीपीएम ने भी अपने उम्मीदवार उतार कर विपक्षी एकता की हवा निकाल दी है. आरंभ से लेकर इंडिया अलायंस बनने तक बिहार के सीएम नीतीश कुमार की उल्लेखनीय भूमिका रही है. पटना में विपक्षी दलों की पहली बैठक में ही तय हुआ था कि भाजपा का विरोध सभी दल मिल कर करें. चार महीने में ही हालात बदल गए. इस महीने होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में विपक्षी एकता की पहली परीक्षा थी. परीक्षा के पहले ही एकता का परिणाम प्रतिकूल आता दिख रहा है.
नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने मध्य प्रदेश में 5 उम्मीदवार उतार दिए तो आम आदमी पार्टी ने भी अपने 70 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. छत्तीसगढ़ में आप ने सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की घोषणा की थी. हालांकि उसने 57 सीटों पर ही अपने उम्मीदवारों को उतारा है. तेलंगाना में तो आम आदमी पार्टी ने सभी 119 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है.पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी तो शुरू से ही कांग्रेस और वाम दलों के खिलाफ रही हैं. उनके लिए वाम दल और कांग्रेस ठीक भाजपा की तरह ही दुश्मन पार्टियां हैं. नीतीश के कारण ममता ने विपक्षी एकता में शामिल होने का फैसला तो किया, लेकिन बंगाल में उनका आचरण एकजुटता के पैमाने पर कभी खरा नहीं उतरा.
नीतीश कुमार, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव या वाम दलों के नेताओं ने विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार उतारे हैं तो इसकी वजह कांग्रेस की ओर से वे अपनी पार्टियों की उपेक्षा बताते हैं. कांग्रेस इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रही. कांग्रेस को उम्मीद है कि कर्नाटक की तरह वह करिश्मा दिखाएगी. अब तक के ओपिनियन पोल भी कांग्रेस के पक्ष में ही आए हैं. कांग्रेस यह भी गुमान है कि हाशिये पर खड़ी कांग्रेस ने जब कर्नाटक में जीत हासिल की तो तमाम विपक्षी दलों का झुकाव उसकी ओर हुआ. विपक्षी एकता की बुनियाद पड़ी और कांग्रेस को नापसंद करने वाले अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी जैसे नेता भी उसकी मातहती कबूल करने को तैयार हो गए थे. अगर कांग्रेस ने पांच राज्यों के चुनाव में अपनी जमीन मजबूत करने में कामयाबी पा ली तो उसे बाकी विपक्षी दलों को काबू करने में आसानी होगी.
कांग्रेस यह भूल गी है कि विधानसभा चुनावों के परिणाम का लोकसभा चुनाव पर असर पड़ने की कोई गारंटी नहीं. राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में पिछले विधानसभा चुनाव में जनता ने भाजपा के बजाय कांग्रेस को तरजीह दी थी आश्चर्य यह कि उसके कुछ ही महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव में 50 फीसद से अधिक वोट भाजपा ने हासिल कर लिए. तीनों राज्यों की कुल 65 में 62 सीटें भाजपा की झोली में चली गईं.अगर कांग्रेस जीत भी गई तो लोक सभा चुनाव में उसकी बढती महत्वकांक्षा की वजह से सीटों के बटवारे को लेकर क्षेत्रीय दलों के साथ घमाशान होना तय है.
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