सिटी पोस्ट लाइव :अब से दो साल पहले दिये लालू प्रसाद यादव का बयान लोगों को याद आने लगा है. कांग्रेस के दलित नेता भक्त चरण दास को उन्होंने ‘भकचोन्हर’ कहा था. दूसरे प्रदेशों के लोग भले ‘भकचोन्हर’ का अर्थ न समझें, लेकिन बिहार के भोजपुरी अंचल के लोग इसका अर्थ ठीक से समझते हैं. दरअसल मूर्ख के अर्थ में इसका प्रयोग भोजपुरी इलाके में होता है.लालू यादव अकेले ऐसे नेता नहीं हैं जो राजनीति में इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करते हैं.
बिहार के ज्यादातर नेता आजकल इसी तरह के बयान दे रहे हैं. लालू यादव ने तो केवल ‘भकचोन्हर’ से ‘आंत में दांत’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया.लेकिन बिहार के दुआरे नेता बहुत आगे निकल चुके हैं.ऊटपटांग बयानबाजी से कोई दल अछूता नहीं है.नेताओं को न अपने दल की छवि, सिद्धांत या उसूलों से कोई मतलब रह गया है और न व्यक्तिगत छवि की कोई चिंता है. गुरुवार को जब जेडीयू के कुछ नेता भाजपा में शामिल हुए तो जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह नीतीश कुमार के भाजपा के साथ जाने के सवाल पर भड़के तो कहा कि सात जन्म में भी यह संभव नहीं होगा. जाने की बात तो छोड़िए, भाजपा तो थूकने लायक भी नहीं रह गई है.
ठाकुर प्रकरण पर तो बिहार के नेता ऐसे हमलावर हो गए हैं कि जीभ खींच लेने और सेकेंड में गर्दन काट लेने की बात करने लगे हैं.राजपूत नेता की छवि वाले आनंद मोहन मनोज झा की जीभ खींच लेने की बात कह रहे हैं. उनके बेटे और आरजेडी विधायक चेतन आनंद अपने ही सांसद को ‘दोगलापन’ से बचने की सलाह दे रहे हैं. भाजपा के विधायक राघवेंद्र प्रताप सिंह सेकेंड में गर्दन काट लेने की बात कह रहे हैं,
दूसरे दलों के नेता राजनीतिक लाभ-हानि देख कर इस पर कुछ बेढंगा बोल जाएं तो बात समझ में आती है, लेकिन अब तो अपने ही सुप्रीमो की अवहेलना कर नेताजी उटपटांग बोलने लगे हैं. ठाकुर प्रकरण पर लालू यादव ने मनोज झा का बचाव करते हुए आनंद मोहन के बारे में कहा है कि उन्हें न अक्ल है और उनकी शक्ल ही ऐसी है. उनके बेटे चेतन को तो अभी बुद्धि ही नहीं है.
नीतीश कुमार ने जब महागठबंधन से अलग होने का फैसला किया तो लालू ने ही उन्हें पलटू राम कहा था. काफी समय तक उनके बड़े बेटे तेजप्रताप यादव उन्हें पलटू चाचा कह कर पुकारते रहे. नीतीश के लिए लालू ने एक बार यह भी कहा था कि उनके आंत में दांत है. लालू यादव का तो यह अंदाज ही रहा है, इसलिए उनके कहने को लोग मजाक में उड़ाते रहे हैं, लेकिन अगर आरजेडी के नेता उन्हीं के तर्ज पर बयान देने लगें तो दलीय अनुशासन का अंदाजा लगाया जा सकता है.