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महाराजगंज के चुनाव में सच्चिदा के आने से लड़ाई दिलचस्प.

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सिटी पोस्ट लाइव :राजपूत और यादव बहुल महाराजगंज सीट पर एनडीए और महागठबंधन के बीच इस बार कड़ा मुकाबला होने की उम्मीद है. 2014 लोकसभा चुनाव में इस सीट पर बीजेपी  का खाता खुला और मोदी लहर में जनार्दन सिंह सिग्रीवाल बाहुबली नेता प्रभुनाथ सिंह को हराकर  पहली बार संसद पहुंचे. 2019 लोकसभा चुनाव में RJD ने प्रभुनाथ सिंह के बेटे रंधीर सिंह को सिग्रीवाल ने हराया.तीसरीबार फिर से सिग्रीवाल पर बीजेपी ने भरोसा जताया है.इसबार ये सीट कांग्रेस के खाते में गई है. कांग्रेस के उम्मीदवार कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह के बेटे आकाश सिंह होगें.

आपातकाल से पहले महाराजगंज सीट कांग्रेस का गढ़ माना जाता था. 4 बार हुए आम चुनाव में पार्टी ने तीन बार जीत दर्ज की थी. जेपी आंदोलन के बाद 1977 के संसदीय चुनाव में महाराजगंज का कांग्रेस का किला ढह गया. जनता पार्टी के उम्मीदवार रामदेव सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी को करारी मात दी.   हालांकि, कांग्रेस के कृष्णकांत सिंह ने 1980 के आम चुनाव में उनसे यह सीट छीन ली.1984 में दोबारा कांग्रेसी ही संसद पहुंचे. इसके बाद इस सीट पर अब तक हुए 8 आम चुनावों में काग्रेस एक बार भी जीत नहीं दर्ज कर सकी है.

महाराजगंज लोकसभा सीट पर पिछले 20 साल से एनडीए का कब्जा है. 1999, 2004 और 2009 में इस सीट पर JDU वहीं 2014 में बीजेपी ने जीत दर्ज की. इस दौरान सिर्फ एक साल के लिए यह सीट RJD  के खाते में थी. 2013 में हुए उपचुनाव में प्रभुनाथ सिंह JDU  छोड़ RJD  का दामन थाम चुके थे और उस चुनाव में सीएम नीतीश कुमार के करीबी JDU के पीके शाही को उन्होंने मात दी थी.लेकिन इसबार बीजेपी के लिए महाराजगंज में भितरघात को रोकना भी बड़ी चुनौती है. पिछले चुनाव में भी स्थानीय बीजेपी नेता सिग्रीवाल का सहयोग करने को तैयार नहीं थे.लेकिन मोदी लहर में वो निकल गए .इसबार यहाँ से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में निर्दलीय विधान पार्षद सच्चिदानंद राय उतरने का ऐलान कर चुके हैं.भूमिहार समाज से आनेवाले इस नेता को समाज का समर्थन मिल गया तो सिग्रीवाल की मुश्किल बढ़ सकती है.

महाराजगंज लोकसभा सीट इस चुनाव में भी हॉट केक है. एक तरफ कांग्रेस के लिए राजनीतिक विरासत को फिर से स्थापित करने की जद्दोजहद है तो दूसरी तरफ सीट बचाने की कवायद है. इस सीट को राजपूत बाहुल्य क्षेत्र माना जाता रहा है. इसबार बीजेपी के प्रत्याशी राजपूत बिरादरी से तो कांग्रेस के प्रत्याशी भूमिहार समाज से आते हैं. निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सच्चिदानंद राय ने ताल थोक कर सिग्रीवाल की मुश्किल बढ़ा दी है. सच्चिदानंद राय का कहना है कि सिग्रीवाल ने कोई काम नहीं किया है.जनता विकल्प की मांग कर रही थी इसलिए उन्होंने मैदान में उतरने का ऐलान किया है.सच्चिदानंद राय चुनाव भले नहीं जीत पायें लेकिन बीजेपी की मुश्किल जरुर बढ़ा सकते हैं.

महाराजगंज संसदीय क्षेत्र में सबसे बड़ा मुद्दा रोजगार का है. यहां से ज्यादातर लोग हर साल रोजगार की तलाश में महानगरों का रुख करते हैं. उच्च शिक्षा के लिए कोई बड़ा संस्थान नहीं है. यही वजह है कि 10वीं या 12वीं के बाद छात्रों को दूसरे शहर जाना पड़ता है. इन सब मुद्दों से ऊपर राष्ट्रवाद और जातीय मुद्दों के आधार पर प्रत्याशी वोट मांग रहे हैं.कांग्रेस  को एम वाय तो बीजेपी  को सवर्ण और अतिपिछड़ों से आस है. 2014 की तरह इस सीट पर भी मोदी फैक्टर हावी है.

महाराजगंज संसदीय क्षेत्र में राजपूत और यादव वोटरों का दबदबा है. यहां मुस्लिम, अतिपिछड़ी और दलित जातियों वोट गेम बदल सकता है. महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र में वोटरों की कुल संख्या 17,99,457  है. इसमें से 950,235 पुरुष और 849,172 महिला वोटर हैं. इस संसदीय क्षेत्र के तहत विधानसभा की 6 सीटें आती हैं-गोरियाकोठी, महाराजगंज, एकमा, मांझी, बनियापुर और तरैया। 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में इन 6 सीटों में से 3 सीटें RJD , 2 JDU  और एक सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की है.

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