सिटी पोस्ट लाइव : बिहार में सारे राजनीतिक दल अभी से लोक सभा चुनाव की तैयारी में जुट गये हैं.कांग्रेस पार्टी ने भी अपने तेज तरार्र नेता अखिलेश प्रसाद सिंह को बिहार की कमान सौंपी.लेकिन अखिलेश प्रसाद की राह आसान नहीं है.पार्टी का जो भी अध्यक्ष बनता है पूरी पार्टी उसके खिलाफ खड़ी हो जाती है.अखिलेश सिंह अध्यक्ष तो बन गए हैं लेकिन अपना संगठन नहीं बना पा रहे हैं.प्रदेश उपाध्यक्ष, मंत्री और महासचिव समेत संगठन के अन्य पदों पर किसी की नियुक्ति अभीतक नहीं हो पाई है. इसके जिम्मेवार भी कांग्रेस के शीर्ष नेता हैं. इनमे से कुछ ऐसे नेता हैं जो 75 वर्ष से उपर के हो चुके हैं. लेकिन संगठन के पद उनको भी चाहिए. उनकी इस मंशा से नए लोगों को जगह नहीं मिल पाती. इनमे से कुछ नेता ऐसे है जो वर्षो बरस संगठन में रहे फिर भी वे अपना रिप्लेसमेंट अपनी संतान से ही चाहते हैं. ऐसे में नए चेहरे का कांग्रेस के संगठन में आना संभव नहीं दिखता.
केवल अपने अपने लोगों को संगठन में लाने के फेर में चार साल मदन मोहन झा ने बगैर उपाध्यक्ष, मंत्री और सचिव के सहारे पार्टी चलाई. अब नए बने अध्यक्ष अखिलेश सिंह को बने भी लगभग पांच माह हो गए लेकिन ये भी संगठन नही खड़ी कर सके. कांग्रेस का अंतर्कलह सतह पर तो नहीं दिखता है लेकिन अंदर ही अंदर एक गुट दुसरे गुट को परास्त करने का जंग जारी है.वैसे अखिलेश सिंह कोई इसके पहले अध्यक्ष नहीं, जिन्हे विरोध का सामना करना पड़ा. ये नहीं बनते तो कोई और बनता लेकिन विरोध उन्हें भी झेलना पड़ता.
प्रदेश अध्यक्ष के साथ कांग्रेस के साथ हो गया है कि पूरी ताकत से अपने प्रदेश नेतृत्व के साथ खड़े नहीं हो पाते. अभी अखिलेश सिंह का राजनीतिक हाल भी कुछ ऐसा ही है. कांग्रेस के नेता उनके RJD से मधुर संबंध और उस वीडियो को विरोध का आधार बना रहे हैं जिसमे वे बीजेपी नेता रूड़ी की सभा में भीड़ जुटाने की अपने लोगों से आग्रह करते नजर आ रहे हैं.कांग्रेस के कुछ युवा नेता की बात छोड़ दें तो तमाम सक्रिय और पुराने नेता अखिलेश सिंह के साथ मुस्तैदी से खड़े नहीं हैं. लेकिन खुलकर विद्रोह करने की हिम्मत भी नहीं दिखा रहे हैं.
राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा भी है कि कांग्रेस के अध्यक्ष अखिलेश सिंह और भक्तचरण दास के बीच भी नहीं पट रहा है. कभी मामला अखिलेश सिंह की सूची पर तो कभी भक्तचरण दास की सूची पर अटकता ही रहा है. केंद्रीय नेता के द्वारा समाधान खोजा जा रहा है. बहरहाल,कांग्रेस के पास वक्त है. कांग्रेस के शीर्ष नेता डैमेज कंट्रोल में लगे हैं. कांग्रेस यह जानती है आगामी लोकसभा चुनाव से पूर्व संगठन को खड़ा नहीं किया गया तो इसका नकारात्मक संदेश चुनाव में जायेगा. कुल मिलाकर कांग्रेस एक बार फिर पूर्व की तरह संघर्ष के दौर से गुजर रही है. बिहार प्रदेश कांग्रेस के अंदर नेताओं की स्थिति और उनका राजनीतिक व्यवहार तो कुछ ऐसा ही संदेश दे रहा है.