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विपक्षी एकता की राह को कठिन बता रहे हैं प्रशांत किशोर.

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सिटी पोस्ट लाइव : आज बेंगलुरु में भाजपा विरोधी दलों के नेताओं की बड़ी बैठक हो रही है. जन सुराज अभियान को लेकर बिहार के विभिन्न जिलों में पदयात्रा कर रहे चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी इस मीटिंग को बड़ी बारीकी से परख रहे हैं. उन्होंने विपक्षी दलों की एकता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की भविष्य की स्थिति को लेकर बड़ा बयान दिया है. पीके ने विपक्षी दलों की एकता के लक्ष्यों लेकर भी सवाल उठाया है.प्रशांत किशोर ने अपने कहा, विपक्षी एकता को चुनावी लाभ तभी मिलेगा जब ये नेता आकर्षक मुद्दों के साथ जनता के बीच जाएं और उनका समर्थन हासिल करें.

उन्होंने कहा कि  वर्ष 2019 में भी विपक्षी दल एक साथ आए थे, पर इसका कोई असर नहीं हुआ था और बीजेपी शानदार तरीके से जीती थी. जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर ने कहा कि विपक्षी एकता सिर्फ दलों के नेताओं के एकसाथ बैठ जाने से उसका बहुत बड़ा प्रभाव जन मानस पर नहीं पड़ेगा. प्रभाव तब पड़ेगा, जब विपक्षी एकता नेताओं और दलों के साथ मन का भी मेल भी हो, नैरेटिव भी हो, जनता का कोई मुद्दा हो, ग्राउंड पर काम करने वाले वर्कर भी हों और उस समर्थन को जनता की भावना में वोट में बदला भी जाए.

प्रशांत किशोर ने आगे कहा, कई लोगों को ऐसा लगता है कि 1977 में सारे विपक्षी दल एक साथ आकर उन्होंने इंदिरा गांधी को हरा दिया था, ये उन लोगों की सबसे बड़ी बेवकूफी है. 1977 में विपक्षी दलों के एक साथ आने से इंदिरा गांधी नहीं हारी, उस समय इमरजेंसी एक बड़ा मुद्दा था, जेपी का आंदोलन भी था. अगर, इमरजेंसी लागू नहीं की जाती, जेपी मूवमेंट नहीं होता तो सारे दलों के एक साथ आने से भी इंदिरा गांधी नहीं हारतीं.

पीके ने आगे कहा, वर्ष 1989 में भी हमने देखा कि बोफोर्स मुद्दे को लेकर राजीव गांधी की सरकार को हटाकर वीपी सिंह सत्ता में आए थे. दल तो बाद में एक हुए, पहले बोफोर्स मुद्दा बना. बोफोर्स के नाम पर देश में आंदोलन हुआ, लोगों की जनभावनाएं उनसे जुड़ीं. देश के स्तर पर राजनीति में क्या हो रहा है. विपक्ष वाले क्या कर रहे हैं, भाजपा वाले क्या कर रहे हैं, ये मेरे सरोकार का विषय नहीं है.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को विपक्षी दलों की एकता के लिए संभावित गठजोड़ का संयोजक बनाए जाने की चर्चा पर कहा कि आज नीतीश जी जिस भूमिका में हैं, 2019 में उसी भूमिका में थे चंद्रबाबू नायडू, बुरी तरह हारे थे. प्रशांत किशोर ने कहा कि 2019 में भी सारे दल एक साथ हुए थे, बावजूद इसके उसका कोई असर नहीं दिखा था. देश की बात तो छोड़ दीजिए अपने आंध्र प्रदेश में एन चंद्रबाबू नायडू बुरी तरह हार गए थे.

पीके ने आगे कहा, नीतीश कुमार हों या कोई भी, जो विपक्ष को एक साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं, जब तक जनता के मुद्दों पर सहमति नहीं होगी, तब तक मुझे नहीं लगता कि इन प्रयासों का कोई असर होगा. हां, ये जरूर है कि इतने सारे दल एक साथ आएंगे, तो मीडिया के लिए चर्चा का विषय होगा. प्रशांत किशोर ने कहा कि समाज का एक वर्ग जो सामाजिक-राजनीतिक तौर पर जागरूक है, उनके लिए उत्सुकता का विषय हो सकता है, लेकिन इसके परिणाम को लेकर बहुत उत्सुक नहीं हुआ जा सकता.

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