नीतीश कुमार की अयोध्या पर चुप्पी, कांग्रेस की बड़ी भूल.

City Post Live

सिटी पोस्ट लाइव :इंडी अलायंस के  नेताओं ने 22 जनवरी को अयोध्या में हो रहे राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह से दूरी बना ली है. कांग्रेस और आरजेडी ने तो समारोह में शामिल होने से सीधे मना कर दिया है. बिहार के सीएम और जेडीयू के नेता नीतीश कुमार ने प्राण प्रतिष्ठा समारोह का न्यौता मिलने या न मिलने की बात अब तक सार्वजनिक नहीं की है, लेकिन सीएमओ तक निमंत्रण पत्र पहुंच गया है, इसकी पुख्ता जानकारी है. अब सवाल उठता है कि जब इंडी अलायंस के दूसरे नेताओं ने अयोध्या जाने से इनकार कर दिया है तो नीतीश क्या करेंगे?

 नीतीश कुमार की पहचान सर्वधर्म समभाव वाले नेता के रूप में रही है. वे मजारों पर चादरपोशी करते हैं तो गुरुद्वारों में भी अक्सर चले जाते हैं. भाजपा के साथ रहने के बाद भी उनकी छवि कट्टर हिन्दुत्व वाले नेता की नहीं रही, लेकिन उनके आचरण से हिन्दू धर्मावलंबी कभी नाराज भी नहीं रहे. अयोध्या जाने के बारे में उनका क्या निर्णय आता है, इस पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं. कहा जाता है- मौनं स्वीकृति लक्षणम. कहीं नीतीश का मौन, उनकी स्वीकृति का सूचक तो नहीं.नीतीश कुमार के करीबी नेता अशोक चौधरी ने तो यहाँ तक कह दिया है कि राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा से देश में उल्लास और हर्ष का माहौल है.

अयोध्या जाने से आरजेडी ने साफ मना कर दिया है.  तेजस्वी यादव तो अपने बयान से पहले ही संकेत दे चुके हैं कि मंदिर में उनकी कोई रुचि नहीं है. उन्होंने हाल ही में अयोध्या प्रसंग पर कहा था कि बीमारी की हालत में आदमी को अस्पताल की जरूरत पड़ती है, मंदिर की नहीं. यानी मंदिर उनकी प्राथमिकता में नहीं है. यह अलग बात है कि राम मंदिर पर लालू परिवार का स्टैंड उनके व्यावहारिक जीवन से मेल नहीं खाता. लालू परिवार तो मंदिर में मुंडन के लिए गया था. खुद लालू और तेजस्वी मंदिरों में जाते रहे हैं. उनके घरों में पूजा-पाठ होते रहे हैं. लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप तो श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त ही बन गए हैं.

कांग्रेस के तीन शीर्ष नेताओं सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी के अयोध्या न जाने की आधिकारिक घोषणा भी हो चुकी है. राहुल गांधी की चिंता है कि अयोध्या जाने का न्यौता स्वीकार करने पर मुस्लिम और ईसाई वोट पार्टी से बिदक सकते हैं. यह भी कहा जा रहा है कि सोनिया न्यौता कबूल करने के पक्ष में थीं, लेकिन खरगे और राहुल के दबाव में उन्हें भी अपना स्टैंड बदलना पड़ा. सोनिया को समझाने के लिए तर्क यह दिया गया कि माइनारिटी वोटरों की वजह से ही राहुल गांधी को वायनाड में जीत हासिल हुई थी. इसलिए कि वायनाड में आधी आबादी अकेले मुसलमानों और ईसाइयों की है. अमेठी में यह समीकरण अनुकूल नहीं था, इसीलिए राहुल को भाजपा की स्मृति ईरानी पटखनी देने में कामयाब हो गईं.

कांग्रेस वर्ष 2014 से ही हवा का रुख भांपने में नाकाम होती रही है. वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी को पीएम फेस बनाए जाने के बाद हिन्दुत्व के उभार को कांग्रेस ने नहीं समझा. कांग्रेस की पराजय हुई. हार की समीक्षा हुई तो एके एंटोनी ने हिन्दुत्व के उभार को देखते हुए कांग्रेस की रणनीति न बन पाना कारण बताया. कांग्रेस ने एंटोनी कमेटी के सुझावों पर गौर नहीं किया. नतीजतन 2019 में उसकी और दुर्गति हो गई. कांग्रेस इस बार भी चूक गई है. उसके पास इसे भुनाने का सुनहरा मौका था. इसलिए राम मंदिर का बंद ताला खुलवाने का श्रेय राजीव गांधी को जाता है. कांग्रेस उसे ही उभार कर अगर बढ़-चढ़ कर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में हिस्सा लेती तो भाजपा की महफिल लूटने में कांग्रेस कामयाब हो जाती.

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