सिटी पोस्ट लाइव : बिहार में सत्ता परिवर्तन हो चुका है .नीतीश कुमार बीजेपी के साथ नई सरकार बना चुके हैं.लेकिन विश्वास मत से पहले जिस तरह से जीतन राम मांझी ने सरकार पर दबाव बना दिया है , चुनौती बढ़ गई है.विधानसभा में सत्ताधारी राजग और विपक्षी महागठबंधन के बीच संख्या बल का अंतर मामूली है, ऐसे में सभी पार्टियों के लिए अपने विधायकों को एकजुट रखने की चुनौती है. कांग्रेस के लिए यह चुनौती कुछ अधिक है.
विश्वास मत के लिए पहले पांच फरवरी की तारीख थी, जो एक सप्ताह आगे बढ़ा दी गई है. अब 12 फरवरी को विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत होगा. इसका कारण जनवरी के पहले सप्ताह में राज्यपाल राजेन्द्र विश्वनाथ आर्लेकर की व्यस्तता बताई जा रही, जबकि राजनीतिक गलियारे में जोड़-तोड़ के प्रयास की चर्चा है.तेजस्वी यादव लगातार कह रहे हैं कि अभी खेला बाकी है.उनका कहना है कि अभी वो अपना पत्ता नहीं खोलेगें.
कांग्रेस भी इसे खतरे की घड़ी मान रही है. छह वर्ष पहले भी उसके साथ नीतीश कुमार कर चुके हैं. तीन विधान पार्षदों (रामचंद्र भारती, दिलीप चौधरी, तनवीर अख्तर) को लेकर पार्टी के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी जेडीयू के साथ चले गए थे. चौधरी स्वयं भी विधान पार्षद थे. उन्हें मंत्री बनाकर नीतीश कुमार ने ईनाम भी दिया था.इसबार भी कांग्रेस के विधायकों पर डोरे डाले जा रहे हैं. सत्ता के साथ बिहार का राजनीतिक समीकरण भी बदल चुका है. ऐसे में कांग्रेस अब नए समीकरण के हिसाब से अपनी चुनावी रणनीति बना रही है. इसके लिए आलाकमान ने शनिवार को दिल्ली में बिहार कांग्रेस के प्रमुख नेताओं की बैठक बुलाई है. शनिवार शाम पांच बजे राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के साथ बैठक होगी. उसके लिए प्रमुख नेता दिल्ली पहुंच चुके हैं.
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