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BJP से जुदा होने के लिए तैयार हैं नीतीश कुमार.

नाराजगी के कई कारण , CM बिदके तो BJP पर टूट सकता है मुसीबतों का पहाड़, जानिये कहानी....

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सिटी पोस्ट लाइव :ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार ने पहले से ही ऐसे मुद्दों की पड़ताल कर ली है, जो बीजेपी  से उनके अलग होने का आधार बन सकें. बिहार को विशेष राज्य के दर्जे की दराज में दबी मांग को जेडीयू की ओर से पुनर्जीवित करना इसी बात की ओर इशारा करता है. जेडीयू कार्यकारिणी की बैठक में प्रस्ताव पास कराने से लेकर बयानों तक नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के नेता यह मांग करने लगे हैं. हम (से) के संस्थापक, बिहार के पूर्व सीएम और फिलवक्त केंद्र में मंत्री जीतन राम मांझी ने जेडीयू की मांग को खारिज करने वाला बयान देकर आग में घी डालने का काम किया है. मांझी ने इसे असंभव बताया है.

झारखंड में बीजेपी  छोड़ निर्दलीय के रूप में पूर्व सीएम रघुवर दास को हराने वाले सरयू राय अब नीतीश कुमार के करीब पहुंच गए हैं. पखवाड़े भर के अंतराल पर दोनों की दो बैठकें हो चुकी हैं. अब तो सरयू राय की जेडीयू में स्वागत की औपचारिकता भर बाकी रह गई है. अगर ऐसा होता है तो सरयू राय झारखंड में जेडीयू के झंडाबरदार बन जाएंगे. निश्चित ही यह बीजेपी को अच्छा नहीं लगेगा. इसलिए कि बीजेपी  ने पहले सरयू राय का टिकट काटा और बागी होने पर पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था. सरयू राय की वजह से 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी  को नुकसान भी उठाना पड़ा. बीजेपी  को सबक सिखाने के लिए ही सरयू राय ने नीतीश कुमार के साथ अपने संबंधों को पुनर्जीवित किया है. इसका साफ संकेत है कि झारखंड में अकेले चुनाव लड़ती रही बीजेपी को इस बार गठबंधन धर्म का पालन करते हुए अपनी घोषित सहयोगी आजसू पार्टी के अलावा जेडीयू के लिए भी सीटों में हिस्सेदारी देनी होगी. ऐसा नहीं होने पर जेडीयू अकेले भी चुनाव मैदान में उतर सकता है. इसलिए कि अब झारखंड में उसके साथ सरयू राय होंगे. चर्चा तो यह भी है कि जेडीयू झारखंड के अलावा दिल्ली में भी विधानसभा चुनाव लड़ेगा.

बीजेपी  के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के इनकार के बाद नीतीश कुमार ने बिहार में जाति सर्वेक्षण कराया. सर्वेक्षण के आंकड़ों के हिसाब से आरक्षण सीमा बढ़ाई. उन्होंने अपनी सरकार के इस फैसले को नौवीं अनुसूची में शामिल करने का केंद्र से आग्रह किया, लेकिन यह काम अभी तक अटका हुआ है. इस बीच पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार के फैसले पर रोक लगा दी है. इसे अब राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी में है. नौवीं अनुसूची में शामिल करने का आग्रह नीतीश सरकार ने इसलिए किया था कि उसके बाद यह न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर हो जाता.। पूर्व में तमिलनाडु ने ऐसा किया भी है. नीतीश की नाराजगी का यह भी एक आधार हो सकता है. जाति सर्वेक्षण और आरक्षण नीतीश की चुनावी रणनीति के ब्रह्मास्त्र हैं. जातिगत सर्वेक्षण के आधार पर आरक्षण सीमा बढ़ा कर नीतीश ने तो इतिहास रच ही दिया है. ये कुछ ऐसे संकेत हैं, जो साबित करते हैं कि नीतीश बीजेपी से पंगा लेने का मूड बनाने लगे हैं.

केंद्रीय जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की टीम ने मंगलवार को पटना, दिल्ली, अमृतसर, चंडीगढ़ और पुणे में करीब 20 ठिकानों की तलाशी ली. इनमें बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी संजीव हंस के ठिकाने भी हैं. संजीव हंस को नीतीश कुमार का बेहद करीबी अधिकारी माना जाता है. वे ऊर्जा विभाग के प्रधान सचिव हैं. अपनी छवि को लेकर संवेदनशील नीतीश कुमार को यकीनन यह पसंद नहीं आया होगा.

सरकारी अधिकारियों पर नीतीश का भरोसा भी काफी रहा है. वे अपने विधायकों या नेताओं तक की बात न मानने की अफसरों को काफी पहले सलाह दे चुके हैं.। इसके पीछे उनका मकसद यही रहा है कि अधिकारी किसी के दबाव में फैसले न लें. उनका यह फरमान अधिकारियों का मोरल बनाए रखने के उद्देश्य से है. इतना ही नहीं, सरकारी बाबुओं की अवैध कमाई पर नजर रखने के लिए नीतीश की आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू) भी काफी सक्रिय रही है. इसके बावजूद ईडी की कार्रवाई उन्हें नहीं सुहाई होगी, क्योंकि संजीव हंस उनके भरोसेमंद अफसर रहे हैं.ये तमाम कारण है जिसकी वजह से नीतीश कुमार बीजेपी से अलग राह पकड़ सकते हैं.

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