सिटी पोस्ट लाइव : अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने सियासी चाल चलना शुरू कर दिया है.उनकी इस कोशिश से RJD सुप्रीमो लालू यादव की चिंता बढ़ गई है. सियासी जानकारों के मुताबिक नीतीश कुमार हमेशा एक सियासी इक्का अपने पास रखकर चलते हैं. उन्होंने आरजेडी से इतर पार्टी की प्लानिंग को विस्तार देना शुरू किया है. जातीय जनगणना के बाद से उन्होंने लोगों के मिजाज को भांपा है. उसके बाद वो सवर्णों को रिझाने की कवायद में जुटे हैं.इसके साथ साथ सभी जातियों में अपना प्रभाव कायम रखने का भी प्रयास कर रहे हैं.
नीतीश कुमार भी जानते हैं कि जाति सर्वेक्षण से बिहार में सवर्णों का तबका नाखुश है. हालांकि उसे भयभीत होने की कोई वजह नहीं दिखती. इसलिए कि आर्थिक रूप से पिछड़ों को छोड़ कर सवर्ण समाज को आरक्षण नहीं मिलता, जिसके छिन जाने का कोई खतरा हो. दलित और पिछड़ी जातियों की तरह सरकारी इमदाद भी सवर्ण समाज को नहीं मिलती. सवर्ण समाज की नाराजगी दूर करने के लिए ही नीतीश कुमार ने आनंद मोहन से तब मुलाकात की, जब लालू ने उनसे मिलने से मना कर दिया. इतना ही नहीं, ‘ठाकुर का कुआं’ के खिलाफ आनंद मोहन और उनके बेटे के बयान पर लालू ने नाराजगी भी जताई थी. नीतीश के लिए यह अनुकूल अवसर था. सियासी ठौर तलाश रहे आनंद मोहन से उन्होंने करीब आधे घंटे तक मुलाकात की. माना जा रहा है कि आनंद मोहन की राजनीति शुरू से ही लालू के खिलाफ रही है. आरजेडी के साथ रह कर आनंद महन कंफर्ट फील नहीं कर रहे. इसलिए उन्होंने नीतीश के साथ तालमेल बिठाने को तरजीह दी है.
राजपूत समाज के बाद नीतीश की नजर ब्राह्मणों पर है. अपने मंत्रिमंडल में नीतीश ने संजय कुमार झा को पहले से ही शामिल कर रखा है. संजय उनके बेहद भरोसेमंद मंत्रियों में माने जाते हैं. अब नीतीश ने ब्राह्मण बिरादरी पर पकड़ मजबूत करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद के बेटे राजवर्धन आजाद को अपनी पार्टी से एमएलसी बना दिया है. यह सीट उपेंद्र कुशवाहा के इस्तीफे से खाली हुई थी.। कायदे से कुशवाहा समाज के कोटे की यह सीट किसी कुशवाहा नेता को ही मिलनी चाहिए थी. पर, जेडीयू के कुशवाहा नेता ताकते रह गए और राजवर्धन को यह अवसर मिल गया. नीतीश ने ब्राह्मण समाज से देवेश चंद्र ठाकुर को पहले मंत्री और फिर बिहार विधान परिषद का सभापति बनाया.
नीतीश कुमार ने हाल ही जेडीयू के मुस्लिम नेताओं के साथ बैठक की थी. उन्हें पार्टी की नीतियों को सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों के लिए किए जा रहे काम की जानकारी दी. मुसलमानों में जेडीयू की पकड़ कमजोर हुई है. साल 2020 के विधानसभा चुनाव में नाराजगी साफ दिखी थी. जेडीयू ने अपने 11 उम्मीदवार मैदान में उतारे, लेकिन कोई जीत नहीं पाया. हालांकि आरजेडी के लंबे समय तक नेपथ्य में रहने के कारण मुस्लिम वोटर जेडीयू की तरफ मुखातिब हो गए थे. मुसलमानों को खुश करने के लिए नीतीश ने नरेंद्र मोदी से पंगा ले लिया था. बिहार में बाढ़ राहत के लिए भेजे उनके न सिर्फ पैसे लौटा दिए थे, बल्कि उनके साथ भोज का कार्यक्रम ऐन मौके पर कैंसल कर दिया था.
बिहार देश का पहला राज्य है, जहां जाति सर्वेक्षण का काम हुआ है. नीतीश ऐसा जरूर मानते होंगे कि अपनी जाति की आबादी देख कर अति पिछड़े और दलित काफी खुश होंगे. इसका चुनावी लाभ भी मिल सकता है. जैसा कि नीतीश कुमार कहते हैं कि अगले विधानसभा सत्र के दौरान जाति सर्वेक्षण के आंकड़ों पर चर्चा होगी और इसके लिए सर्वसम्मति से नीतियां बनाई जएंगी. सनद रहे कि जाति सर्वेक्षण के लिए भी नीतीश कुमार ने आम सहमति बना ली थी.