सिटी पोस्ट लाइव : नीतीश के लिए ‘अपनों’ को ‘पराया’ और ‘पराए’ को ‘अपना’ बनाना कोई नई बात नहीं है. नीतीश पहले भी ‘सुविधानुसार’ पाला बदलते रहे हैं. यही कारण है कि नीतीश के विरोधी उन्हें ‘पलटीमार’ कहते हैं. नीतीश अपने सुविधानुसार यू-टर्न लेते रहते हैं. अब एक बार फिर उनकी राजनीति 360 डिग्री पर घूम गई है. अपने पुराने सहयोगी बीजेपी के साथ आ गए.
नीतीश बिहार की सत्ता पर नीतीश कुमार तब काबिज हुए जब लालू यादव का साथ छोड़े थे. साल 1994 में पुराने सहयोगी रहे लालू प्रसाद यादव का साथ छोड़कर नीतीश कुमार अलग हुए थे और जॉर्ज फर्नांडिस के साथ मिलकर समता पार्टी का गठन कर लिया था.इसके बाद 1995 के चुनाव में दोनों सहयोगी यानी लालू प्रसाद और नीतीश कुमार आमने सामने हुए. लेकिन नीतीश को भारी पराजय का मुंह देखना पड़ा. ऐसी परिस्थिति में नीतीश को एक बड़े ऐसे साथी की तलाश थी, जिसके सहारे बिहार की सत्ता पर काबिज कर सकें.वर्ष 1996 में उन्हें बिहार में कमजोर मानी जाने वाली पार्टी भाजपा का साथ मिल गया. भाजपा और समता पार्टी में गठबंधन हुआ. इसके बाद 2003 में समता पार्टी दूसरे दल जनता दल यूनाइटेड के रूप में परिवर्तित हो गई.
भाजपा और जदयू को दोस्ती कालांतर में गहरी होती जा रही थी और सफल भी होने लगी थी. इसी बीच, 2005 विधानसभा चुनाव में दोनों दलों ने मिलकर 15 साल से चल रहे राजद सरकार को उखाड़ फेंका और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बन गए. इसके बाद दोनों की दोस्ती 17 सालों तक चली.इसी बीच, जब केंद्र में भाजपा ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को बतौर प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया तो ये बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को नागवार गुजरा और भाजपा को पराया कर राजद के साथ हो लिए. हालांकि, लोकसभा चुनाव में जदयू को करारी हार हुई.
वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा से हार चुके नीतीश कुमार ने साल 2015 में पुराने सहयोगी लालू यादव की राजद और कांग्रेस के साथ महागठबंधन कर विधानसभा चुनाव लड़ा और यह गठबंधन विजयी हुआ और नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री बन गए.लेकिन, ‘अपना’ बना राजद बहुत दिनों तक नीतीश का ‘अपना’ बन कर नहीं रह सका और 2017 में नीतीश ने अपने पुराने साथी भाजपा के पास लौट आए और नीतीश फिर से सीएम बन गए.नीतीश कुमार ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव और 2020 बिहार विधानसभा चुनाव एनडीए के साथ लड़ा. अगस्त, 2022 में नीतीश कुमार ने फिर से भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए से नाता तोड़ लिया और महागठबंधन के साथ होकर मुख्यमंत्री बन गए.
अब जनवरी 2024 में एक बार फिर आरजेडी से नाता तोड़ लिए और बीजेपी के सहयोग से मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं.विरोधी ही नहीं बल्कि नीतीश कुमार के साथ सरकार बनाने जा रही बीजेपी के नेता भी यहीं मानते हैं कि नीतीश कुमार सही अर्थ में सत्ता की कुर्सी के लिए कुछ भी कर सकते हैं. इनके पास न नीति है, न सिद्धांत. इनकी महत्वकांक्षा पीएम बनने की रही थी, जब वो पूरी नहीं हुई तो फिर से पलटी मार दिए.कबतक बीजेपी के साथ बने रहेगें, ये कह पाना भी मुश्किल है.चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के अनुसार आगामी विधान सभा चुनाव में फिर से वो पलटी मारेगें.