सिटी पोस्ट लाइव : दुर्लभ बीमारियों से जूझ रहे मरीजों को बड़ी राहत मिलनेवाली है. सरकार ने भारतीय कंपनियों द्वारा बनाई गई चार दवाओं की मार्केटिंग को मंजूरी दे दी है. ये दवाएं आयातित दवाओं की तुलना में काफी सस्ती हैं. उदाहरण के लिए टायरोसिनेमिया टाइप वन बीमारी के इलाज में काम आने वाली दवा Nitisinone कैप्सूल की सालाना कीमत 2.2 करोड़ रुपये है. इसे विदेशों से आयात किया जाता है. लेकिन देश में बनी दवा की कीमत 2.5 लाख रुपये होगी. यह दुर्लभ बीमारी एक लाख में किसी एक को होता है.
आयात की जाने वाली Eliglustat कैप्सूल की सालाना खुराक की कीमत 1.8 से 3.6 करोड़ रुपये है. लेकिन देश में बनी इस दवा की कीमत तीन से छह लाख रुपये होगी. यह दवा Gaucher’s बीमारी के इलाज में काम आती है. अधिकारियों के मुताबिक Wilson’s नाम की बीमारी के इलाज में काम आने वाली Trientine कैप्सूल के आयात पर सालाना 2.2 करोड़ रुपये खर्च होते हैं. लेकिन देश में बनी इसकी दवा पर सालाना मात्र 2.2 लाख रुपये खर्च होंगे.
Gravel-Lennox Gastaut Syndrome के इलाज में काम आने वाली दवा Cannabidiol के आयात पर सालाना सात से 34 लाख रुपये तक खर्च आता है. लेकिन देश में बनी इसकी दवा एक लाख से पांच लाख रुपये तक में उपलब्ध होगी. अधिकारियों का कहना है कि सिकल सेल एनीमिया के इलाज में काम आने वाली दवा Hydroxyurea Syrup की कमर्शियल सप्लाई मार्च 2024 में शुरू होने की संभावना है. इसकी कीमत 405 रुपये प्रति शीशी हो सकती है. अभी इसकी 100 मिली की शीशी की कीमत 840 डॉलर यानी 70,000 रुपये है. ये सभी दवाएं अब तक भारत में नहीं बनती थीं.
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