सिटी पोस्ट लाइव : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जेडीयू की कमान अपने हाथों में ले लिया है.मतलब बिहार की राजनीती में आगे कुछ बहुत बड़ा होनेवाला है.नीतीश कुमार और लालू यादव की बढती दुरी से बीजेपी के साथ जेडीयू के जाने के रास्ते खुल गये हैं. बीजेपी के नेता भले ये दावा करें कि नीतीश कुमार के लिए उसके दरवाजे बंद हो चुके हैं लेकिन नीतीश कुमार ने अपनी खिड़की खोलकर बीजेपी को अपना दरवाजा खोलने के लिए मजबूर कर दिया है. चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर कह चुके हैं कि नीतीश कुमार ने तो सिर्फ दरवाजे बंद किए, विंडो खुला है. शायद वही विंडो अब नीतीश कुमार खोलकर, लालू-कांग्रेस को जोरदार झटका देंगे.
ललन सिंह 2021 में जेडीयू अध्यक्ष बने थे. आरसीपी के पद खाली करने के बाद नीतीश कुमार ने ललन सिंह को अध्यक्ष बनाया था. कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार के कहने पर ही ललन सिंह ने अध्यक्ष पद छोड़ दिया. अध्यक्ष बनने के बाद ललन सिंह ने सबसे पहले आरसीपी को पैदल किया था. बाद में आरसीपी को मंत्री पद से ही हाथ धोना पड़ा था. फिर पार्टी से भी बाहर हो गए. आरसीपी अभी बीजेपी में हैं. आये दिन नीतीश कुमार और ललन सिंह के खिलाफ बयानबाजी करते रहते हैं. कहा जाता है कि ललन सिंह और उनकी टीम ने हर उस शख्स को पार्टी से बाहर निकाला या फिर निकलने को मजबूर कर दिया जो उनकी जगह पार्टी में ले सकते थे.
ललन सिंह और उनकी टीम ने, नीतीश कुमार के सबसे खास और राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश को भी नहीं बख्शा था. नये संसद भवन के उद्घाटन के मौके पर उपसभापति की हैसियत से हरिवंश ने राष्ट्रपति के संदेश को पढ़ा तो जेडीयू नेताओं ने हरिवंश के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. जेडीयू नेताओं ने तो यहां तक कह दिया था कि हरिवंश ने कुर्सी के लिए अपना जमीर तक बेच दिया. आने वाली पीढ़ी कभी माफ नहीं करेगी. हालांकि नीतीश कुमार कभी भी सार्वजनिक तौर पर हरिवंश के लिए कुछ नहीं कहा.
कहा जाता है कि 2017 में जेडीयू की एनडीए में वापसी करवाने में हरिवंश नारायण सिंह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. कई बार जेडीयू नेताओं ने भी इस बात का जिक्र सार्वजनिक तौर पर किया. नीतीश कुमार जब एनडीए से अलग होकर महागठबंधन के साथ भी गए तो ना बीजेपी ने राज्यसभा के उपसभापति पद से हरिवंश को हटाने की कोशिश की, ना ही नीतीश कुमार ने कभी पहल की. समझा जा सकता है कि नीतीश कुमार एनडीए से बाहर रहकर भी कौन सा सियासी खेल खेल रहे थे.
नीतीश कुमार 20 साल से बिहार की राजनीति के अबूझ पहेली बने हुए हैं. नीतीश कुमार जब भी किसी के लिए दरवाजे बंद करते हैं तो पीछे एक खिड़की खुली रखते हैं तकि समय आने पर उसे दरवाजा बनाया जा सके. यही कारण है कि लालू-नीतीश हों या बीजेपी के दिग्गज रणनीतिकारण, आज तक नीतीश का तोड़ नहीं निकाल पाए. प्रशांत किशोर जिस विंडो की बात कर रहे थे, वो और कोई नहीं हरिवंश ही हैं. अब कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार हरिवंश के माध्यम से विंडो को खिड़की बनाएंगे. यानी बिहार में हरिवंश वाली पॉलिटिक्स का समय आ गया है.