सिटी पोस्ट लाइव : पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों ने विपक्षी एकता की हवा निकाल दी है. बिहार में विपक्षी दलों के महागठबंधन की सरकार बनने के बाद एकता की जो कवायद शुरू हुई वह खत्म होती नजर आ रही है. अपने बूते उन्होंने तीन दशक से अधिक समय तक बंगाल की सत्ता पर काबिज पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी का शुरू से ही एकला चलो की नीति रही है. जिस तरह उन्हें वाम दलों से सत्ता के लिए लड़ाई लड़नी पड़ी, ठीक उसी तर्ज पर भाजपा से उनका पिछले विधानसभा चुनाव में मुकाबला हुआ.
भाजपा ने पीएम और गृह मंत्री समेत अपने मंत्रियों-नेताओं का हुजूम बंगाल विधानसभा चुनाव में उतार दिया, उससे लगता था कि ममता बनर्जी हवा में उड़ जाएंगी. पर, ऐसा नहीं हुआ। ममता पूरे दमखम से न सिर्फ सत्ता में लौटीं, बल्कि देश भर में यह संदेश देने में भी वे कामयाब रहीं कि पीएम मोदी को परास्त करने की कूबत उन्हीं में है. यही वजह रही कि विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद वे पीएम मोदी को सत्ता से बेदखल करने की जुगत में जुट गईं. यह अलग बात है कि देश के दूसरे हिस्से में उन्हें विपक्षी दलों का समर्थन नहीं मिला.
उन्हें समर्थन न मिलने के पीछे कांग्रेस को किनारे करने की जिद थी. हालांकि ममता बनर्जी बाद में बिहार के सीएम नीतीश के आग्रह पर कांग्रेस के साथ आने को तैयार तो हो गईं, लेकिन इस आश्वस्ति के बाद कि नीतीश पीएम पद की रेस में नहीं हैं. ममता की कांग्रेस की ताजा नाराजगी इस बात को लेकर है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने दूसरे विपक्षी दलों को कोई भाव नहीं दिया. पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की दुर्गति के बाद ममता 6 दिसंबर को हो रही विपक्षी दलों की बैठक से भी ममता के अलग रहने के आसार हैं.
उत्तर प्रदेश के सीएम रह चुके और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादन वे लोकसभा चुनाव के पहले ही कांग्रेस को अपने तेवर दिखा दिए हैं. मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने भी अपने उम्मीदवार मैदान में उतार दिए. नतीजा सबके सामने है. अखिलेश के कैंडिडेट जीते तो नहीं, पर लकांग्रेस उम्मीदवारों को हराने में कोई कसर भी नहीं छोड़ी. अगर विपक्षी एकता लोकसभा चुनाव में बन भी जाती है तो सीटों के बंटवारे पर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच तनातनी की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता.
जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव हुए, वहां कांग्रेस की स्थिति मजबूत रही है. राजस्थान और छत्तीसगढ़ में तो कांग्रेस की सरकार ही रही है. इसी मुगालते में कांग्रेस ने सहयोगी विपक्षी दलों को किनारे कर दिया. नतीजतन आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने अपने उम्मीदवारों की भी घोषणा कर दी. केजरीवाल ने चुनाव वाले राज्यों में अपने वादों के साथ रैलियां भी कीं. यानी भाजपा के साथ कांग्रेस के वोट काटने में भी उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी. कांग्रेस दिल्ली और पंजाब में भी आम आदमी पार्टी के साथ समझौते के मूड में नहीं दिखती. दोनों राज्यों के नेता केजरीवाल से किसी तरह के संबंध को कांग्रेस के लिए आत्मघाती कदम मानते रहे हैं. ऐसे में लोकसभा चुनाव तक केजरीवाल कांग्रेस के साथ विपक्षी गठबंधन में बने रह पाएंगे, इस पर संदेह है. अब तक विपक्षी गठबंधन की बैठकों में भी केजरीवाल का रूखा रुख ही रहा है.
बिहार के सीएम नीतीश कुमार की नाराजगी जगजाहिर हो चुकी है. बिहार में सीएम बने रहने के लिए वे भले आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद की सलाह पर कांग्रेस को कबूल करने के लिए बाध्य हुए हों, पर कांग्रेस ने उनके साथ जैसा सलूक किया, उससे वे बेहद खफा है. समय-समय पर कांग्रेस के प्रति नाराजगी का इजहार वे संयमित अंदाज में करते रहे हैं. नीतीश चाहते थे कि बीजेपी को हराना है तो गठबंधन की गतिविधियों में तेजी से काम करने की जरूरत है, लेकिन कांग्रेस आनाकानी करती रही है. कांग्रेस की वजह से ही विधानसभा चुनावों तक विपक्षी गठबंधन की गतिविधियां ठप पड़ गई थीं. अब सुगबुगाहट शुरू भी हुई है तो नीतीश कुमार बीमार पड़े हुए हैं. भाजपा के नेताओं के साथ उनकी नजदीकी के चर्चे भी समय-समय पर होते रहे हैं. ऐसे में नीतीश ऐन मौके पर गच्चा दे जाएं तो कोई आश्चर्य नहीं.
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