जेडीयू ने कर्पूरी रथ व नारी रथ को हरि झंडी दिखाकर किया रवाना,  माई बहिन मान योजना को कहा ‘गेमिक’

Manshi Sah

सिटी पोस्ट लाइव

पटना। जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) पार्टी ने बिहार में महिला सशक्तिकरण और पिछड़ा वर्ग के अधिकारों को लेकर एक अहम कदम उठाया है। जेडीयू के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय झा और प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा ने हरि झंडी दिखाकर कर्पूरी रथ और नारी शक्ति रथ को रवाना किया। इस कार्यक्रम में बिहार सरकार के मंत्री मदन साहनी, एमएलसी संजय गांधी समेत पार्टी के कई नेता और कार्यकर्ता मौजूद थे।

संजय झा का बयान

इस मौके पर संजय झा ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महिला सशक्तिकरण और अति पिछड़े वर्ग को सशक्त बनाने में ऐतिहासिक योगदान दिया है। उन्होंने कहा, “जब नीतीश कुमार की सरकार बनी थी, तो महिलाओं को 50% आरक्षण, शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण की दिशा में अहम कदम उठाए गए।”

संजय झा ने यह भी कहा कि नीतीश कुमार ने बिहार में पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग को पंचायतों में आरक्षण देने का काम शुरू किया। उनका कहना था कि नीतीश कुमार के कार्यकाल में कई सुविधाएं दी गईं, जिसमें कर्पूरी छात्रावास और अन्य योजनाएं शामिल हैं।

तेजस्वी यादव पर प्रतिक्रिया

तेजस्वी यादव द्वारा बीएससी अभ्यर्थियों के सत्याग्रह आंदोलन में शामिल होने पर संजय झा ने कहा कि सरकार हमेशा सही और उचित काम करती है और इसे लेकर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते। उन्होंने यह भी कहा कि बिहार सरकार की बहाली प्रक्रिया में पारदर्शिता रखी गई है, जिससे कोई शिकायत नहीं आई है।

प्रगति यात्रा पर संजय झा का बयान

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रगति यात्रा पर बात करते हुए संजय झा ने कहा कि नीतीश कुमार की यात्रा एक नायक की तरह लोगों से जुड़ने का प्रयास है, जो पिछले 19 वर्षों से लगातार कार्य कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि नीतीश कुमार की यात्रा का उद्देश्य जमीन पर चल रहे कार्यों की समीक्षा करना और उनका फीडबैक लेना है।

माई बहिन मान योजना पर टिप्पणी

तेजस्वी यादव के माई बहिन मान योजना पर संजय झा ने कहा कि नीतीश कुमार ने कभी किसी तरह का “गेमिक” नहीं किया। उन्होंने बिहार में महिलाओं के जीवन में बदलाव लाने के लिए काम किया है, और यह बदलाव सच्चे दिल से किया गया है।

वन नेशन वन इलेक्शन पर बयान

जेडीयू के नेता ने वन नेशन वन इलेक्शन पर विपक्ष के विरोध पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि 1952 से देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हो रहे थे, लेकिन 1967 से गड़बड़ियां शुरू हुईं। उनका मानना है कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ किया जाना चाहिए, ताकि सरकार का काम निर्बाध रूप से जारी रहे और चुनावों में खर्च की बचत हो सके।

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