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पटना। बिहार में अगले 7 महीनों में चुनाव होने वाली है। सभी पार्टियां अपने-अपने स्तर से चुनावी तैयारियों में जुट चुकी हैं। खासकर राजधानी पटना में सियासी पारा अपने चरम पर है। इसी बीच प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी को एक बड़ा झटका लगा है। बिहार की राजनीति में एक बार फिर हलचल तेज हो गई है। समाज और राजनीति में व्यापक बदलाव लाने के उद्देश्य से शुरू किए गए जन सुराज आंदोलन को लेकर नए सवाल खड़े हो गए हैं। जन सुराज आंदोलन से जुड़े एक प्रमुख गांधीवादी नेता ने इससे अलग होने का ऐलान कर दिया है, जिससे न केवल जन सुराज के भविष्य पर प्रश्नचिह्न लगा है, बल्कि बिहार की राजनीति में भी नई अटकलें तेज हो गई हैं।
जन सुराज पार्टी के संस्थापक और कोर कमिटी के सदस्य प्रोफेसर डॉ. विजय कुमार ने पार्टी छोड़ दी है। उन्होंने प्रशांत किशोर को पत्र लिखकर इस बात की जानकारी दी है। डॉ विजय कुमार ने अपने पत्र में पार्टी छोड़ने के कारणों का भी उल्लेख किया है। उन्होंने नाराजगी जताते हुए लिखा है कि जन सुराज अपने आदर्शों से भटक गया है।

पत्र में उन्होंने कहा है कि जन सुराज आंदोलन, जिसने अभिनव बिहार के निर्माण का सपना दिखाया था, अब अपने मूल आदर्शों से भटकता नजर आ रहा है। आंदोलन से जुड़े एक प्रमुख नेता ने इससे अलग होने की घोषणा कर दी है। उनका कहना है कि यह आंदोलन अब गांधीवादी विचारधारा के अनुरूप नहीं रह गया है, इसलिए वे इससे अलग हो रहे हैं।
पत्र में कहा गया है कि जन सुराज आंदोलन की नींव गांधीवादी मूल्यों और समाज के सर्वांगीण विकास के आधार पर रखी गई थी, लेकिन वर्तमान में इसके निर्णय और नीतियां उन सिद्धांतों से मेल नहीं खातीं। उन्होंने स्पष्ट किया कि गांधी जी की विचारधारा को किसी भी तरह के उपयोगितावाद के शस्त्र के रूप में नहीं इस्तेमाल किया जाना चाहिए, बल्कि इसके अनुयायियों को अनुशासन का पालन करना चाहिए।

पत्र में आगे लिखा गया कि गांधीवाद केवल उनकी तस्वीर लगाने से नहीं अपनाया जा सकता, बल्कि उनके रास्ते पर चलने से ही इसे सार्थक किया जा सकता है। जन सुराज आंदोलन अब गांधीवादी दृष्टिकोण से भटक गया है, इसलिए इससे अलग होने का निर्णय लिया गया है।
बिहार की वर्तमान सामाजिक और राजनीतिक स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि समाज को किसी भी नए छल से बचाने के लिए वे अपने तरीके से प्रदेशवासियों की सेवा करने के लिए नए राजनीतिक विकल्प पर विचार कर रहे हैं। उनके इस फैसले को बिहार की राजनीति में एक नए बदलाव की संभावनाओं के रूप में देखा जा रहा है।
इस पत्र के सामने आते हीं जन सुराज के साथ-साथ बिहार की राजनीतिक गलियारों में भी हलचल मच गई है। बिहार में परिवर्तन और नव निर्माण के संकल्प के साथ शुरू हुए जन सुराज आंदोलन के भविष्य पर सवाल खड़े हो गए हैं। गांधीवादी मूल्यों को आधार बनाकर आगे बढ़ने वाले इस आंदोलन के एक प्रमुख नेता ने इससे अलग होने की घोषणा कर दी है। उनका मानना है कि जन सुराज अब अपने मूल उद्देश्यों और सिद्धांतों से भटक रहा है, जिससे इसकी विचारधारा पर संकट गहरा गया है।
बिहार की राजनीतिक स्थिति पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि वे जनता की सेवा के लिए किसी नए राजनीतिक विकल्प पर विचार कर रहे हैं। उनका यह बयान जन सुराज के भविष्य को लेकर नए सवाल खड़े करता है। क्या आंदोलन अपनी खोई दिशा वापस पा सकेगा, या यह धीरे-धीरे कमजोर हो जाएगा? यह सवाल अब जन सुराज समर्थकों के मन में उठने लगा है।