नीतीश खोज रहे हैं I.N.D.I.A से अलग होने का बहाना?

City Post Live

 

सिटी पोस्ट लाइव : देश भर में बीजेपी के खिलाफ विपक्ष को गोलबंद करने की मुहीम टांय-टांय फिस होती दिखाई दे रही है. विपक्ष  बीजेपी का विकल्प नहीं बन पा रहा. कांग्रेस विकल्प बन सकती थी, लेकिन राहुल गांधी को तीसरी बार आजमाने की उसकी जिद ने लोगों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. विपक्षी गठबंधन में शामिल दलों के बेदाग नेताओं में यकीनन कोई भी मोदी का विकल्प बन सकता है .लेकिन कांग्रेस राहुल  गांधी  के अलावा किसी को आगे करने के मूड में नहीं है.

 

विपक्षी खेमे में तो खींचतान मची है. आरजेडी जैसे कुछ दलों को छोड़ कर कोई राहुल गांधी को अपना नेता मानने को तैयार ही नहीं. बिहार के सीएम नीतीश कुमार की रष्ट्रीय स्तर पर पहचान नहीं बन पाई. ममता बनर्जी भी सिर्फ बंगाल में स्वीकार्य हैं. अखिलेश यादव अपने ही सूबे यूपी में अपनी पार्टी के अस्तित्व की जंग लड़ रहे हैं. जून से विपक्षी एकता की कवायद शुरू हुई. चार महीने के अंदर ही विपक्ष की  एकजुटता का प्रयास बिफल होता नजर आ रहा है. पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में ही एकता तार-तार हो गई है. समाजवादी पार्टी ने मध्य प्रदेश में 22 उम्मीदवार उतार दिए तो बिना जनाधार के नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने भी अपने पांच उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी है.

 

विपक्षी एकता की कवायद शुरू करनेवाले नीतीश कुमार आज  बगावती तेवर में नजर आ रहे हैं. राजनीतिक पंडितों के अनुसार  जब भी उनके मन मुताबिक काम नहीं होता तो वो अलग होने के बहाने ढूंढने लगते हैं. वर्ष 2013 में नरेंद्र मोदी को मुद्दा बनाकर  बीजेपी से रिश्ता तोड़ लिया था. मोदी भी बहाना थे .वे अपनी ताकत आजमाना चाहते थे. मुसलमान वोटरों को खुश कर उन्हें अपने पाले में करना चाहते थे. उन्हें तब होश आया, जब लोकसभा चुनाव में  दो सीटों से ज्यादा पर उन्हें कामयाबी नहीं मिली.  उन्होंने साल 2015 में महागठबंधन के साथ विधानसभा का चुनाव लड़ा और सत्ता में लौट आए. दो साल भी नहीं हुए थे कि नीतीश महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी आरजेडी से वे ऊबने लगे. तेजस्वी यादव पर सीबीआई ने जब मामला दर्ज किया तो उन्होंने जनता से क्लीन चिट लेकर आने की उन्हें सलाह दी.

 

उन्होंने इस्तीफा देकर भाजपा के समर्थन से अगले दिन सरकार बना ली. दोबारा उन्होंने वर्ष 2022 में दबाव की बात कह कर भाजपा से खुद को अलग कर लिया और बड़े भाई लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी के साथ सरकार बना ली.महागठबंधन के सबसे बड़े दल आरजेडी ने सुविचारित रणनीति के तहत नीतीश को बिहार की सरदारी सौंप दी. नीतीश को पीएम उम्मीदवार बनाने का राग आरजेडी ने छेड़ दिया. जेडीयू के नेता भी आरजेडी के सुर में सुर मिलाने लगे. नीतीश पहले तो खामोश रहे, लेकिन बाद में पीएम पद की रेस से अपने को बाहर बताना शुरू कर दिया.

 

आरजेडी को आश्वस्त करने के लिए उन्होंने तेजस्वी के नेतृत्व में वर्ष 2025 का विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी. इसके पीछे  2025 तक सीएम बने रहने की गारंटी सुनिश्चित करने की रणनीति थी. इस बीच आरजेडी के कुछ नेताओं ने तेजस्वी यादव के लिए कुर्सी खाली करने का नीतीश पर दबाव बनाना शुरू कर दिया. सुधाकर सिंह, सुनील कुमार सिंह जैसे नेता अपने बयानों से नीतीश की खाट खड़ी करने की जुगत में लग गए. उन पर दबाव तो है, लेकिन फिलहाल आरजेडी के पास सत्ता सुख पाने का कोई विकल्प नहीं है. नीतीश इसी का लाभ उठाते हुए समय काटना चाहते हैं.

 

नीतीश की बातों पर गौर करें तो वे न पीएम बनेंगे और न 2025 के बाद सीएम ही रह पाएंगे. तो क्या वे संन्यास लेंगे या आरजेडी को झांसा दे रहे हैं?सच तो यह है कि नीतीश कुमार का मन अब विपक्षी एकता से भी उकता गया है. हर बार की तरह इस बार भी वे I.N.D.I.A से अलग होने का बहाना ढूंढ रहे हैं. चूकि उन्हें अभी आरजेडी के समर्थन की जरूरत है, इसलिए वे सीधे अलग होने की बात तो नहीं कह सकते. वे उपयुक्त अवसर या बहाने की तलाश कर रहे हैं. मध्य प्रदेश चूंकि यूपी से सटा राज्य है, इसलिए वहां समाजवादी पार्टी की जड़ें हैं. सपा ने वहां कांग्रेस या विपक्षी एकता की परवाह किए बिना अपने उम्मीदवार उतारे तो इसकी बुनियादी वजह है. लेकिन जेडीयू के उम्मीदवारों का मैदान में उतरना किसी की भी समझ से परे है.

 

नीतीश कुमार I.N.D.I.A से अलग होने का बहाना ढूंढ रहे हैं. आरंभ में नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता के लिए जिस तरह का उत्साह दिखाया, अब वैसा उत्साह उनमें नहीं दिख रहा. अव्वल तो पीएम पद की रेस में उनके नाम की चर्चा बिहार से बाहर किसी पार्टी के नेता ने कभी नहीं की. दूसरे, उन्हें संयोजक बनाए जाने की उम्मीद थी, पर यह भी नहीं हुआ. नीतीश ने विपक्षी नेताओं को पटना में जुटाया, लेकिन कांग्रेस और आरजेडी के शीर्ष नेतृत्व ने नीतीश को किनारे कर दिया. लालू यादव और राहुल गांधी दो बारे मिले. बाद में संयोजक पद खत्म किए जाने की पहली सूचना लालू ने ही जाहिर कर दी. यानी कांग्रेस और आरजेडी का पेट अभी एक है.। नीतीश इससे ही नाराज हैं.

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